पत्रकारों की हत्या पर उठे सवाल: कब तक कलम के सिपाहियों पर चलेंगी गोलियां?

सहारनपुर में पत्रकार राघवेंद्र बाजपेई की हत्या के बाद देशभर में आक्रोश, पत्रकारों की सुरक्षा की मांग तेज

सहारनपुर/महाराजगंज: भारत में निष्पक्ष पत्रकारिता करना अब जोखिम भरा होता जा रहा है। देश में लगातार पत्रकारों पर हमले हो रहे हैं, और कई मामलों में उनकी हत्या तक कर दी जाती है। ताजा मामला उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले का है, जहां पत्रकार राघवेंद्र बाजपेई की निर्मम हत्या कर दी गई। इस घटना ने पूरे देश के पत्रकारों को झकझोर कर रख दिया है। पत्रकार संगठनों ने इस घटना की कड़ी निंदा करते हुए सरकार से कठोर कार्रवाई और पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की है।
देशभर में पत्रकारों पर हो रहे हमलों की घटनाएं यह सवाल खड़ा करती हैं कि क्या अब भारत में निष्पक्ष पत्रकारिता करना संभव नहीं रह गया है? क्या भ्रष्टाचार को उजागर करना सबसे बड़ा अपराध बन गया है? क्या भारतीय संविधान पत्रकारों की रक्षा करने में सक्षम नहीं है, या फिर संवैधानिक तंत्र भ्रष्टाचार के सामने घुटने टेक चुका है?
पत्रकारों की सुरक्षा पर उठते सवाल
पिछले कुछ वर्षों में देशभर में पत्रकारों पर हमलों की घटनाएं बढ़ी हैं। महाराष्ट्र, झारखंड, बिहार, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में पत्रकारों को सच उजागर करने की कीमत अपनी जान गंवाकर चुकानी पड़ी है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि इन घटनाओं में अपराधी प्रवृत्ति के लोगों के साथ-साथ भ्रष्ट अधिकारी और राजनेता भी शामिल पाए जाते हैं, जो अपने भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए पत्रकारों की आवाज को दबाने का प्रयास करते हैं।
पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर मौजूदा कानून और व्यवस्थाएं नाकाफी साबित हो रही हैं। जब किसी पत्रकार की हत्या होती है, तब सरकारें केवल जांच के आदेश देकर अपना पल्ला झाड़ लेती हैं, लेकिन धरातल पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता। नतीजा यह होता है कि अपराधी बेखौफ होकर अपने मंसूबों को अंजाम देते रहते हैं और चौथे स्तंभ की आवाज को कुचलने का प्रयास करते हैं।
राघवेंद्र बाजपेई की हत्या: एक और कलम का सिपाही शहीद
सहारनपुर में पत्रकार राघवेंद्र बाजपेई की हत्या एक बार फिर इस कड़वी सच्चाई को उजागर करती है कि पत्रकारों की जान कितनी असुरक्षित है। सूत्रों के मुताबिक, राघवेंद्र बाजपेई लंबे समय से स्थानीय प्रशासन और कुछ प्रभावशाली लोगों के भ्रष्टाचार को उजागर कर रहे थे। इस हत्या के पीछे भी यही वजह बताई जा रही है।
पत्रकार संगठनों ने इस घटना पर कड़ा विरोध जताया है और इसे लोकतंत्र पर हमला करार दिया है। देशभर में पत्रकारों ने विरोध प्रदर्शन किए और राज्यपाल को ज्ञापन सौंपकर पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की।
पत्रकारों की मांग: सुरक्षा, न्याय और मुआवजा
इस हत्या के बाद पत्रकार संगठनों ने सरकार के सामने तीन प्रमुख मांगे रखी हैं—
- पत्रकार सुरक्षा कानून: पत्रकारों की सुरक्षा के लिए एक ठोस और प्रभावी कानून बनाया जाए, जिससे पत्रकारों पर होने वाले हमलों को रोका जा सके।
- न्याय और कठोर कार्रवाई: दोषियों की गिरफ्तारी सुनिश्चित की जाए और उन्हें कठोरतम सजा दी जाए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
- मुआवजा और परिजनों की सहायता: मृतक पत्रकार के परिवार को उचित मुआवजा दिया जाए और उनके आश्रितों की आर्थिक सहायता सुनिश्चित की जाए।
महाराजगंज में पत्रकार संगठनों का ज्ञापन सौंपा गया
प पुर्वांचल पत्रकार एसोसिएशन संघ महराजगंज
सहारनपुर में हुई इस जघन्य हत्या के विरोध में देशभर के पत्रकार एकजुट हो रहे हैं। उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले में पूर्वांचल पत्रकार एसोसिएशन संघ के सदस्यों ने अपर जिलाधिकारी महराजगंज और जर्नलिस्ट प्रेस क्लब संगठन के निचलौल इकाई के सदस्यों ने एस डी एम को ज्ञापन सौंपते हुए अपनी मांगों को रखा।
जर्नलिस्ट प्रेस क्लब संगठन महराजगंज तहसील ईकाई निचलौल
पत्रकारों ने स्पष्ट रूप से कहा कि अगर सरकार पत्रकारों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम नहीं उठाती है, तो पूरे प्रदेश और देशभर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए जाएंगे।
निष्कर्ष: कब तक होती रहेंगी पत्रकारों की हत्याएं?
पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, लेकिन जब इस स्तंभ पर लगातार हमले होते हैं और सरकार मूकदर्शक बनी रहती है, तो यह लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरे का संकेत है।
अब समय आ गया है कि सरकारें सिर्फ बयानबाजी तक सीमित न रहें, बल्कि ठोस कदम उठाकर पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करें। जब तक पत्रकार सुरक्षित नहीं रहेंगे, तब तक लोकतंत्र की सच्ची भावना भी सुरक्षित नहीं रह सकती।
अब यह देखना होगा कि क्या सरकार इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाती है या फिर पत्रकारों को अपनी जान जोखिम में डालकर ही सच की लड़ाई लड़नी पड़ेगी।