ग्रामीण विकास या भ्रष्टाचार का खेल: ठूठीबारी की कच्ची सड़क पर दिखाया गया खड़ंजा और हुआ भुगतान
ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं की अनदेखी और भ्रष्टाचार का मामला ।
भारत के ग्रामीण विकास के दावों में ठूठीबारी बारी की कच्ची सड़क पर खड़ंजा दिखाकर किए गए भुगतान का मामला एक ज्वलंत उदाहरण बनकर उभरा है। उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले के ठूठीबारी गांव की यह घटना बताती है कि किस प्रकार विकास के नाम पर हो रही धांधली से ग्रामीण जनता ठगी जा रही है। ग्राम प्रधान, ग्राम सचिव, और ब्लाक के कई जिम्मेदार अधिकारियों की मिलीभगत से इस घोटाले को अंजाम दिया गया, जबकि स्थानीय समाजसेवी उमाकांत पांडे लगातार एक साल से इस मुद्दे पर जांच की मांग कर रहे हैं। यह घोटाला न केवल भ्रष्टाचार का प्रतीक है बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में हो रही विकास परियोजनाओं में पारदर्शिता की कमी और सरकारी नीतियों के क्रियान्वयन में व्याप्त खामियों को भी उजागर करता है।
घटना की पृष्ठभूमि:
ठूठीबारी बारी गांव के आराजी बैरीयां टोला में जलालुद्दिन के घर से टैक्सी स्टैंड तक की यह सड़क परियोजना ग्रामीण विकास योजना के पन्द्रहवां वित्त के तहत शुरू की गई थी। कच्ची सड़क को पक्का करने के लिए खड़ंजा लगाना था और इसके लिए सरकारी फंड आवंटित किया गया था। लेकिन स्थानीय ग्राम प्रधान और सचिव ने विना कार्य कराएं ही 1,36,250 रुपए दिनांक 22-12-2023 को ही खड़ंजा दिखाकर पूरी राशि का भुगतान करा लिया, जबकि वास्तव में सड़क कच्ची ही रह गई। इस घोटाले की खबर सामने आते ही स्थानीय समाजसेवी उमाकांत पांडे ने एक साल पहले ही अधिकारियों को इस मामले की जांच के लिए निवेदन पत्र सौंपा था, लेकिन अभी तक जांच के नाम पर केवल आश्वासन ही मिला है।
ग्रामीण जनता की उपेक्षा और भ्रष्टाचार:
ठूठीबारी के निवासी इस घटना से काफी आक्रोशित हैं। उनका कहना है कि गांव की सड़कें कच्ची होने के कारण बारिश के मौसम में स्थिति और भी विकट हो जाती है। ग्रामीणों ने उम्मीद की थी कि सड़क पर खड़ंजा बिछने से उनकी समस्या हल हो जाएगी, लेकिन भ्रष्टाचार के चलते उन्हें ठगा हुआ महसूस हो रहा है।
समाजसेवी उमाकांत पांडे ने बार-बार प्रशासन से इस घोटाले की जांच की मांग की है, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। ग्रामीण जनता की उम्मीदें टूट चुकी हैं और उनका विश्वास प्रशासन पर से उठता जा रहा है। इस तरह की घटनाएं केवल एक गांव तक सीमित नहीं हैं, बल्कि पूरे देश में सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार और लापरवाही के मामले अक्सर सामने आते हैं।
जांच की मांग और अधिकारियों की भूमिका:
घोटाले की गंभीरता को देखते हुए उमाकांत पांडे ने न केवल स्थानीय अधिकारियों बल्कि महाराजगंज के जिलाधिकारी (DM) और मुख्य विकास अधिकारी (CDO) को भी कई बार ज्ञापन सौंपा है। उन्होंने हर बार जांच की मांग उठाई, लेकिन हर बार केवल आश्वासन ही मिला।
कुछ जांचकर्ताओं ने मामले की जांच शुरू भी की थी, लेकिन उनके द्वारा की गई जांच में भी पारदर्शिता की कमी पाई गई। जांच को केवल भ्रमित करने के लिए किया गया, ताकि वास्तविकता को छिपाया जा सके। जहां एक ओर कागजों पर खड़ंजा बिछाकर भुगतान कर दिया गया, वहीं दूसरी ओर सड़क कच्ची की कच्ची ही रह गई।
सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन:
सरकारी योजनाओं का उद्देश्य होता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में विकास के कार्य तेजी से हों और लोगों को बुनियादी सुविधाएं मिल सकें। लेकिन अगर इस तरह की योजनाओं में धांधली होती रहेगी तो जनता तक लाभ कैसे पहुंचेगा? ग्रामीण विकास के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च होते हैं, लेकिन अगर भ्रष्टाचार इसी तरह जारी रहेगा, तो विकास केवल कागजों पर ही सिमट कर रह जाएगा।
ग्रामीण जनता को सड़क, पानी, बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं का अधिकार है। लेकिन प्रशासन की लापरवाही और भ्रष्टाचार के कारण उन्हें इन सुविधाओं से वंचित रखा जा रहा है।
भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने का महत्व:
उमाकांत पांडे जैसे समाजसेवी जब इस तरह की धांधली के खिलाफ आवाज उठाते हैं, तो वे उन तमाम ग्रामीणों की आवाज बन जाते हैं जो अपने हक के लिए लड़ने में असमर्थ होते हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाना जरूरी है, क्योंकि अगर इसे समय पर रोका न जाए, तो इसका असर आने वाली पीढ़ियों पर भी पड़ेगा।
ग्रामीण जनता को भी जागरूक होने की आवश्यकता है। उन्हें यह समझना होगा कि अगर वे अपने अधिकारों के लिए आवाज नहीं उठाएंगे, तो उनका शोषण होता रहेगा। पंचायत स्तर पर होने वाले भ्रष्टाचार को रोकने के लिए जनता को सक्रिय भूमिका निभानी होगी।
भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग:
ठूठीबारी के इस घोटाले में शामिल सभी लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। जो भी लोग इस घोटाले में शामिल हैं, चाहे वह ग्राम प्रधान हो, सचिव हो या अन्य जिम्मेदार अधिकारी, उन पर कड़ी कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए। साथ ही, इस मामले की निष्पक्ष और पारदर्शी जांच होनी चाहिए, ताकि असली दोषियों को सजा मिल सके और भविष्य में इस तरह की घटनाएं न हों।
निष्कर्ष:
ठूठीबारी की इस घटना ने एक बार फिर से यह साबित कर दिया है कि भ्रष्टाचार हमारे समाज की जड़ों में गहराई से बैठा हुआ है। जब तक इस पर कड़ा प्रहार नहीं किया जाएगा, तब तक विकास के नाम पर हो रही धांधलियों से ग्रामीण जनता का शोषण होता रहेगा। समाजसेवी उमाकांत पांडे जैसे लोगों की कोशिशों से उम्मीद की जा सकती है कि एक दिन इस घोटाले की सच्चाई सामने आएगी और दोषियों को सजा मिलेगी।
प्रशासन को चाहिए कि वह इस मामले को गंभीरता से ले और दोषियों के खिलाफ सख्त कदम उठाए, ताकि ग्रामीण विकास की योजनाएं सही ढंग से क्रियान्वित हो सकें और जनता को उसका लाभ मिल सके।