कागजों पर फलती फर्जी फर्म: मिठौरा ब्लॉक से ग्राम पंचायत तक फैला ओमप्रकाश पटेल इंटरप्राइजेज का पेमेंट जाल
भाजपा नेता से जुड़ी फर्म को ज़मीनी अस्तित्व के बिना लाखों का भुगतान, क्षेत्र पंचायत ही नहीं, ग्राम पंचायत से भी हो रहा ट्रांजैक्शन | प्रशासनिक चुप्पी पर उठे सवाल
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महराजगंज (उत्तर प्रदेश), 18 जुलाई 2025:
जनपद महराजगंज के मिठौरा विकास खंड से उठे एक कथित भ्रष्टाचार के मामले ने अब जिला पंचायत स्तर तक अपने पैर पसार लिए हैं। “ओमप्रकाश पटेल इंटरप्राइजेज” नामक फर्म, जो न तो ज़मीन पर मौजूद है, न ही किसी अधिकृत व्यावसायिक रजिस्ट्रेशन में दिखती है, फिर भी इसे पंचायत स्तर से लेकर जिला पंचायत योजना तक लाखों रुपये का भुगतान लगातार किया जा रहा है।
इस प्रकरण ने न सिर्फ कार्यदायी संस्थाओं की नीयत पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि यह भी साफ कर दिया है कि सत्ता का संरक्षण और तंत्र की मिलीभगत किस हद तक फर्जीवाड़े को सरकारी वैधता प्रदान कर सकती है।
भुगतान का सिलसिला सिर्फ क्षेत्र पंचायत तक सीमित नहीं
अब तक मिली जानकारी में यह स्पष्ट हो चुका है कि ओमप्रकाश पटेल इंटरप्राइजेज को केवल क्षेत्र पंचायत मिठौरा के कार्यों में ही नहीं, बल्कि जिला पंचायत योजनाओं में भी शामिल किया गया है।
क्षेत्र पंचायत द्वारा किया गया भुगतान:
कार्य: बरोहिया में ड्रेन पर पुलिया निर्माण हेतु सामग्री क्रय
वाउचर संख्या: 5THSFC/2025-26/P/11
भुगतान की तिथि: 1 मई 2025
राशि: ₹4,16,782
पोर्टल: eGramSwaraj के PFMS माध्यम से
फर्म का नाम: MS OMPRAKASH PATEL ENTERPRISES
एकाउंट नंबर: *4135
यह भुगतान जिला प्रशासन (PRI) योजना अंतर्गत हुआ है, जिसमें “ग्रेस वॉटर प्रबंधन हेतु नाला निर्माण” का उद्देश्य दर्शाया गया है। ऐसे में यह और भी चौंकाने वाला है कि यह फर्म हर स्तर पर भुगतान पाने में सफल रही है — जबकि इसकी भौतिक उपस्थिति संदिग्ध है।
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क्या है फर्म की असलियत?
स्थानीय स्तर पर की गई छानबीन में स्पष्ट रूप से सामने आया है कि “ओमप्रकाश पटेल इंटरप्राइजेज” नामक कोई दुकान हरिहरपुर या आसपास मौजूद नहीं है। न इसका बोर्ड, न दुकान, न गोदाम — कुछ भी नहीं।
इस संदर्भ में भाजपा नेता ओमप्रकाश पटेल के पुत्र सचिन पटेल द्वारा स्वयं पत्रकार को कॉल कर सफाई दी गई कि सप्लाई वह “पटेल इंटरप्राइजेज” नामक हरिहरपुर की दुकान से कराते हैं, जो उनके पाटीदार की है।
पर सवाल ये उठता है —
अगर सप्लाई पटेल इंटरप्राइजेज से हो रही है, तो पेमेंट “ओमप्रकाश पटेल इंटरप्राइजेज” को क्यों?
क्या यह नाम का भ्रम और बिलिंग की सेटिंग मात्र नहीं है?
क्या यह सत्ता के प्रभाव का परिणाम है कि बिना स्थाई दुकान के भी एक नाम मात्र की इकाई को लाखों की ठेकेदारी और भुगतान मिल रहा है?
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भारी भुगतान, लेकिन पारदर्शिता गायब
वित्तीय वर्ष 2024-25 और 2025-26 में फर्म को निम्नानुसार भुगतान किया गया:
1. क्षेत्र पंचायत मिठौरा से:
बरोहिया में पुलिया निर्माण: ₹4,34,150 (कटौती के बाद ₹4,16,782)
कन्वेंशन हॉल के सामने मिट्टी भराई: ₹4,70,746 (कटौती के बाद ₹4,51,944)
कुल भुगतान: ₹9 लाख+
2. जिला पंचायत (विकास निधि):
समान पुलिया निर्माण कार्य के लिए: ₹4,16,782 (अलग मद और योजना से)
इस प्रकार सिर्फ एक ही काम को दो अलग योजनाओं के तहत दर्शाकर दो बार भुगतान का आरोप भी मजबूत होता दिख रहा है।
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अधिकारियों की चुप्पी और दस्तावेज़ी साजिश?
सभी भुगतान BDO मिठौरा उग्रसेन सिंह के दस्तखत से किए गए हैं। भुगतान PFMS के माध्यम से हुआ है, जिससे स्पष्ट होता है कि यह सभी प्रक्रिया जानबूझकर की गई।
फर्म को वैध घोषित करने से पूर्व न ही GST सत्यापन किया गया, न ही साइट इंस्पेक्शन, न ही सामग्री का भौतिक सत्यापन।
यह सारा सिस्टम एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा लगता है, जिसमें कुछ “नामधारी” फर्मों को माध्यम बनाकर सरकारी धन की बंदरबांट की जाती है।
राजनीतिक सरंक्षण और दबाव का खेल?
भाजपा नेता से जुड़े होने की वजह से ही फर्म को यह संरक्षण मिला — ऐसा स्थानीय स्तर पर आम चर्चा का विषय बन चुका है।
एक ओर भाजपा सरकार “भ्रष्टाचार मुक्त भारत” की बात करती है, दूसरी ओर उन्हीं के नेताओं से जुड़ी फर्में इस तरह से फर्जीवाड़ा करती नजर आ रही हैं।
जब नेता का पुत्र स्वयं सफाई दे रहा है तो यह भी सिद्ध हो जाता है कि उन्हें सारी प्रक्रियाओं की जानकारी है और शायद उन्हें इस खेल का संचालन करने का भी अधिकार मिला हुआ है।
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जनहित में यह आवश्यक जाँच बिंदु
अब यह ज़रूरी हो जाता है कि शासन और प्रशासन इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच करवाए, जिसमें निम्नलिखित बिंदुओं को शामिल किया जाए:
1. फर्म की वैधता की जांच – GST, पंजीकरण, मालिकाना प्रमाण, बैंक स्टेटमेंट
2. भुगतान की प्रक्रिया – भुगतान के पूर्व क्रय आदेश, आपूर्ति रसीद, निरीक्षण रिपोर्ट
3. स्थलीय सत्यापन – जिन कार्यों को दिखाकर भुगतान किया गया, उनका फिजिकल इविडेंस
4. पंचायत और ब्लॉक अधिकारियों की भूमिका की समीक्षा
5. राजनीतिक हस्तक्षेप की जांच – सत्ता का कितना और किस स्तर पर प्रभाव पड़ा?
फर्जीवाड़े पर नकेल जरूरी
“ओमप्रकाश पटेल इंटरप्राइजेज” के जरिए जो खेल खेला गया है, वह एक स्थानीय गड़बड़ी नहीं, बल्कि सत्ता, सिस्टम और सेटिंग का एक बड़ा जाल प्रतीत होता है।
यदि यह जांच में सत्य पाया गया तो यह न केवल एक वित्तीय घोटाला होगा, बल्कि यह साबित करेगा कि ई-गवर्नेंस और डिजिटल भुगतान प्रणाली के बावजूद फर्जी फर्में सरकारी धन को निगल रही हैं।
अब वक्त है कि जांच हो, दोषियों पर कठोर कार्यवाही हो और जनता की गाढ़ी कमाई की रक्षा हो।
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रिपोर्ट: मनोज तिवारी
(स्वतंत्र पत्रकार, महराजगंज)
18 जुलाई 2025