महराजगंज जनपद के नगर पंचायत निचलौल में स्थित मदरसा अरबिया अजीजिया मजहरूल उलूम कभी क्षेत्र में तालीम का एक मजबूत और भरोसेमंद मरकज़ माना जाता था। इस मदरसे ने न सिर्फ धार्मिक शिक्षा बल्कि सामाजिक चेतना और नैतिक मूल्यों को भी मजबूती दी। लेकिन आज यही संस्थान कथित अनियमितताओं, अपारदर्शी फैसलों और निजी स्वार्थ के आरोपों के चलते गंभीर संकट के दौर से गुजर रहा है।

स्थानीय लोगों और सूत्रों के अनुसार, वर्तमान प्रबंधक आबिद अली पर आरोप है कि उन्होंने अपने कुछ सहयोगियों के साथ मिलकर तत्कालीन प्रबंधक मोहम्मदुल्लाह को कथित छल-कपट के मामलों में फँसाकर मदरसे के प्रबंधन पर कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद सहायक रजिस्ट्रार कार्यालय, गोरखपुर में मदरसे के मूल बायलॉज के विपरीत जाकर 15 सदस्यों के स्थान पर 20 सदस्यों वाली प्रबंध समिति का पंजीकरण कराया गया।

आरोप है कि इस नई समिति के गठन में योग्यता और सामाजिक प्रतिनिधित्व को दरकिनार कर परिवार और करीबी लोगों को प्राथमिकता दी गई। नियमों के अनुसार जहाँ एक सदर, दो नायब सदर, एक सरपरस्त और दो नायब सरपरस्त का प्रावधान है, वहीं कथित तौर पर सभी नियमों को ताक पर रखकर प्रबंधक ने अपने सगे पुत्र को सदर (अध्यक्ष) बना दिया, जिससे निर्णय प्रक्रिया पूरी तरह एकतरफा हो गई।
नियुक्तियों को लेकर भी गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। स्थानीय योग्य अभ्यर्थियों की अनदेखी कर बिहार, कुशीनगर और रिश्तेदारी के दायरे से लोगों की नियुक्ति किए जाने के आरोप हैं। इन नियुक्तियों में कथित धन-लेनदेन की चर्चाएँ भी सामने आई हैं। शिक्षकों की पदोन्नति में मेरिट के बजाय पारिवारिक लाभ को तरजीह देने और पुत्र को अनुचित लाभ पहुँचाने के आरोपों ने मदरसे की साख को और नुकसान पहुँचाया है।
विरोध के स्वर तेज़ होने पर चंदे की राशि के कथित दुरुपयोग और समिति के सदस्यों को प्रभावित करने की कोशिशों के आरोप भी लगाए जा रहे हैं। पूरा मामला फिलहाल निचलौल तहसील में धारा 25(1) के तहत विचाराधीन है।

क्षेत्र के लोग बताते हैं कि यह वही मदरसा है, जिसके निर्माण और विकास में पूर्व मंत्री शिवेंद्र सिंह का सहयोग इसकी इमारतों में झलकता है। मुस्लिम समुदाय के सामाजिक और शैक्षणिक स्तर को ऊँचा उठाने की दूरदर्शी सोच के साथ पूर्व विधायक शिवेंद्र सिंह ने भी इस मदरसे को संवारने के लिए लगातार प्रयास किए। लेकिन आरोप है कि वर्तमान प्रबंध समिति ने इस पवित्र शिक्षण संस्थान को कथित भ्रष्टाचार का अड्डा बना दिया है।
सबसे बड़ा सवाल यही है कि जिन पर नियम-विरुद्ध कार्यप्रणाली, भाई-भतीजावाद और कथित भ्रष्टाचार के इतने गंभीर आरोप हों, क्या उन्हें तालीम के इस केंद्र की बागडोर संभालने का नैतिक और कानूनी अधिकार है? यदि समय रहते निष्पक्ष जाँच और ठोस कार्रवाई नहीं हुई, तो उजालों का यह मरकज़ पूरी तरह अंधेरों में समा सकता है।