करबला भूमि विवाद में हाईकोर्ट ने याचिका खारिज की, डेढ़ करोड़ में बेची गई जमीन, अब केवल 21 डिसमिल कब्रिस्तान शेष
प्रयागराज। महराजगंज ज़िले के निचलौल नगर पंचायत क्षेत्र की विवादित करबला/कब्रिस्तान भूमि को लेकर चल रहे लंबे विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। न्यायमूर्ति जे.जे. मुनिर की एकलपीठ ने याचिकाकर्ता ज़हीर खान की रिट याचिका को 28 जुलाई 2025 को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि उप निदेशक चकबंदी द्वारा भूमि अभिलेखों में की गई त्रुटि सुधार की कार्यवाही विधि सम्मत है और उसमें हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है।
विवाद की पृष्ठभूमि
यह मामला पुरानी गाटा संख्या 4429/2963 से जुड़ा है, जिसकी कुल क्षेत्रफल 3.15 एकड़ दर्ज थी। चकबंदी के दौरान इस भूमि को चार हिस्सों में बाँटा गया। इनमें से एक हिस्सा, गाटा संख्या 1764, करबला के नाम पर 4 एकड़ 61 डिसमिल दर्ज कर दिया गया। लेकिन तहसील स्तर की रिपोर्ट और राजस्व अभिलेखों के अनुसार यह प्रविष्टि गलत तरीके से, बिना किसी सक्षम प्राधिकारी के आदेश के की गई थी।
लखपाल की 10 मई 2024 की रिपोर्ट और उप-जिलाधिकारी निचलौल की जाँच में स्पष्ट हुआ कि मूल अभिलेखों (फसली 1359 और आधार वर्ष) में करबला का उल्लेख कहीं नहीं था। केवल 21 डिसमिल भूमि कब्रिस्तान के रूप में दर्ज थी। इसके विपरीत 4.61 एकड़ की प्रविष्टि मनमाने ढंग से बढ़ाई गई थी। परिणामस्वरूप कुल क्षेत्रफल 3.15 एकड़ से बढ़कर 7.55 एकड़ दिखाया जाने लगा।
अदालत की सुनवाई और निष्कर्ष
याचिकाकर्ता ज़हीर खान ने दलील दी कि चकबंदी की अंतिम प्रविष्टि (सीएच फॉर्म-41) में करबला की 4.61 एकड़ भूमि दर्ज है और इसे किसी भी स्थिति में बदला नहीं जा सकता। लेकिन अदालत ने यह मानने से इंकार कर दिया। अदालत ने कहा कि यह प्रविष्टि हेरफेर कर के की गई थी और इसके समर्थन में कोई सक्षम आदेश नहीं है।
न्यायालय ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता स्वयं शिकायतकर्ता रहे हैं और मुस्लिम समाज की ओर से प्रतिनिधि क्षमता में कार्य कर रहे थे। ऐसे में यह कहना कि उन्हें या मुस्लिम समुदाय को सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया, निराधार है। न्यायालय ने यह भी याद दिलाया कि याचिकाकर्ता पहले इसी विषय पर एक जनहित याचिका भी दायर कर चुके थे, जिसे तथ्यों को छिपाने के कारण खारिज कर दिया गया था।
धर्मार्थ न्यास में दर्ज भूमि और बिक्री का मामला
इस करबला भूमि को धर्मार्थ न्यास की संपत्ति के रूप में घोषित किया गया था। न्यास के घोषणा पत्र में स्पष्ट था कि न्यास की सभी संपत्तियाँ केवल धर्मार्थ उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उपयोग होंगी। लेकिन आरोप है कि इस व्यवस्था की अनदेखी करते हुए जिम्मेदार लोगों ने करबला की समस्त भूमि एक ही व्यक्ति के हाथ लगभग डेढ़ करोड़ रुपये में बेच डाली।
जब तक यह सौदा हुआ, तब तक अदालत में मुकदमा भी लंबित था। हाईकोर्ट के आदेश के बाद अब करबला/कब्रिस्तान की भूमि केवल 21 डिसमिल ही बची है।
फैसला और असर
अदालत ने साफ़ किया कि उप निदेशक चकबंदी का आदेश पूरी तरह रिकॉर्ड, अभिलेख और जांच पर आधारित है। इसलिए उस पर सवाल उठाने की कोई गुंजाइश नहीं है। अदालत ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि वास्तविक स्थिति यही है कि करबला के नाम पर केवल 21 डिसमिल भूमि ही मान्य है।
इस फैसले के बाद मुस्लिम समाज में निराशा है, क्योंकि जिस भूमि को वे परंपरागत करबला मानते थे, उसका अधिकांश हिस्सा अब न्यास के नाम पर बेचा जा चुका है। वहीं, प्रशासन का रुख है कि यह कदम ज़मीन की वास्तविक स्थिति और अभिलेखों को दुरुस्त करने के लिए आवश्यक था।