भारतीय संस्कृति की अद्भुत झलक: डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर छठ महापर्व की उपासना 

 भारतीय संस्कृति की अद्भुत झलक: डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर छठ महापर्व की उपासना 

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आज संपूर्ण भारतवर्ष में लोक उपासना का पावन पर्व छठ पूरे श्रद्धा, विश्वास और भक्ति के साथ मनाया जा रहा है। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि भारतीय संस्कृति और सनातन परंपरा की आत्मा का प्रतीक भी है। छठ पूजा वह एकमात्र पर्व है, जिसमें डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है — यह हमारी सभ्यता की उस अनूठी भावना को दर्शाता है, जो सृष्टि में “अंत” को भी आदर और आस्था से स्वीकार करती है।

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जहां विश्व के अधिकांश धर्म उगते हुए सूर्य की उपासना करते हैं, वहीं भारतीय सनातन जीवनशैली इतनी गूढ़ और आध्यात्मिक है कि वह अस्त होते सूर्य में भी सृष्टि का सौंदर्य और पुनर्जन्म देखती है। यही कारण है कि जब पूरा संसार उगते सूरज को प्रणाम करने का आदी है, तब भारत की परंपरा डूबते सूर्य को नमन कर, अगले दिन उगते सूर्य को भी प्रणाम करने का सामर्थ्य रखती है।

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इस पर्व की यही विशेषता इसे “लोक आस्था का महापर्व” बनाती है। छठ केवल सूर्य की उपासना नहीं, बल्कि प्रकृति, जल, अग्नि, वायु, आकाश और पृथ्वी — इन पंचतत्वों के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है। भक्तजन इस दिन निर्जला व्रत रखकर, सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित करते हैं और संतान, परिवार तथा समाज की मंगलकामना करते हैं।

 

जनपद महराजगंज के ग्रामसभा सिंहपुर में भी आज इस पर्व का मनमोहक दृश्य देखने को मिला। गांव की महिलाएं संध्या के समय पारंपरिक वेशभूषा में सजकर, माता स्थान के समीप स्थित बड़े पोखरे में खड़ी होकर सूर्यदेव के डूबने की प्रतीक्षा करती रहीं। जैसे ही सूर्य अस्ताचल की ओर बढ़ा, वैसे ही सभी महिलाओं ने सामूहिक रूप से सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया, गीत गाए, छठ मइया के जयकारे लगाए और परिवार की सुख-समृद्धि की कामना की।

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सूर्यास्त के पश्चात भक्तगण घर लौटते हुए अपने हृदय में भक्ति और संतोष की अनोखी अनुभूति लेकर लौटे। कल प्रातः उगते सूर्य को अर्घ्य देकर यह पर्व पूर्ण होगा।

छठ केवल एक व्रत नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा है — जो सिखाती है कि जीवन के अस्त को भी उतनी ही श्रद्धा से स्वीकारो, जितनी उगते हुए सवेरा को। यही है सनातन भारत की अमर पहचान। 🌞

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