सनातन परंपरा का लोक पर्व: होली

सनातन परंपरा का लोक पर्व: होली

मनोज कुमार तिवारी की कलम से 

रंगों और उल्लास का सांस्कृतिक पर्व

भारत में मनाए जाने वाले सभी त्योहारों में होली का स्थान विशेष है। यह केवल एक रंगों का पर्व नहीं, बल्कि प्रेम, सौहार्द, भाईचारे और आध्यात्मिक ऊर्जा का संगम है। सनातन परंपरा में होली को विशिष्ट स्थान प्राप्त है क्योंकि यह केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।

होली मुख्य रूप से फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। यह दो दिनों तक चलने वाला पर्व होता है—पहले दिन ‘होलिका दहन’ किया जाता है, जिसमें बुराई का अंत और अच्छाई की विजय का संदेश मिलता है, और दूसरे दिन ‘रंगों की होली’ खेली जाती है, जो प्रेम, आनंद और उत्साह का प्रतीक होती है।

इस पर्व का संबंध ऋतु परिवर्तन से भी है। जब सर्दी समाप्त होकर ग्रीष्म ऋतु का आगमन होता है, तब वातावरण में नई ऊर्जा और उमंग का संचार होता है। इस पर्व के माध्यम से लोग पुराने गिले-शिकवे मिटाकर प्रेमपूर्वक एक-दूसरे को गले लगाते हैं और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देते हैं।


होली का पौराणिक महत्व

सनातन परंपरा में होली का उल्लेख विभिन्न पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। इस पर्व से जुड़ी कई पौराणिक कथाएँ हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख कथाएँ निम्नलिखित हैं:

1. भक्त प्रह्लाद और होलिका की कथा

यह कथा बुराई पर अच्छाई की विजय को दर्शाती है। हिरण्यकश्यप नामक असुर ने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान प्राप्त किया था। वह स्वयं को ईश्वर मानता था और चाहता था कि सभी उसकी पूजा करें। लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के कई प्रयास किए, लेकिन हर बार भगवान विष्णु ने उसकी रक्षा की।

आखिरकार, उसने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को अग्नि में जलाने का आदेश दिया। होलिका को वरदान था कि आग उसे जला नहीं सकती, लेकिन जैसे ही वह प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठी, वह स्वयं जलकर भस्म हो गई और प्रह्लाद सुरक्षित बच गए। तभी से होलिका दहन की परंपरा चली आ रही है, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है।

2. राधा-कृष्ण और ब्रज की होली

भगवान श्रीकृष्ण और राधा की होली अत्यंत प्रसिद्ध है। मान्यता है कि श्रीकृष्ण के गहरे रंग को देखकर वे चिंतित रहते थे कि राधा और गोपियां उन्हें स्वीकार करेंगी या नहीं। उनकी माता यशोदा ने उन्हें सुझाव दिया कि वे राधा और उनकी सखियों को अपने पसंदीदा रंगों से रंग दें। तभी से ब्रज, मथुरा और वृंदावन में होली खेलने की यह परंपरा शुरू हुई।

आज भी बरसाना और नंदगांव में होली धूमधाम से मनाई जाती है। बरसाना की लट्ठमार होली तो पूरे विश्व में प्रसिद्ध है, जहां महिलाएँ पुरुषों को लाठियों से मारकर होली खेलती हैं।


होली का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व

1. सामाजिक समरसता और भाईचारे का पर्व

होली एक ऐसा पर्व है, जब सभी लोग मिलकर इसे मनाते हैं। इस दिन जाति, धर्म, ऊँच-नीच और अमीरी-गरीबी का भेद समाप्त हो जाता है। लोग एक-दूसरे को रंग और गुलाल लगाकर भाईचारे और एकता का संदेश देते हैं।

2. होली के लोकगीत और नृत्य

होली के अवसर पर फाग और होरी गीतों की विशेष परंपरा है। ढोल, मंजीरा और मृदंग की धुन पर गाए जाने वाले लोकगीत इस त्योहार में चार चांद लगा देते हैं।

3. पकवानों की मिठास

होली के अवसर पर विशेष व्यंजन बनाए जाते हैं, जिनमें गुजिया, मालपुआ, दही भल्ले, ठंडाई, पापड़ और कांजी का विशेष महत्व होता है। इन पकवानों के बिना होली अधूरी मानी जाती है।


पर्यावरण संरक्षण: प्राकृतिक रंगों का उपयोग

आजकल रासायनिक रंगों का अत्यधिक उपयोग हो रहा है, जो त्वचा और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। पहले के समय में लोग टेसू के फूलों, हल्दी, चुकंदर, और अन्य प्राकृतिक रंगों से होली खेलते थे।

हमें फिर से इको-फ्रेंडली होली मनाने की दिशा में कदम बढ़ाने चाहिए। इससे न केवल हमारा स्वास्थ्य सुरक्षित रहेगा, बल्कि पर्यावरण प्रदूषण भी कम होगा।


होली और आध्यात्मिकता

1. आत्मशुद्धि का पर्व

होलिका दहन केवल बाहरी बुराइयों को जलाने का प्रतीक नहीं, बल्कि यह हमारे अंदर के नकारात्मक विचारों, क्रोध, अहंकार और द्वेष को समाप्त करने का संदेश देता है।

2. होली में भक्ति और कीर्तन

वृंदावन, मथुरा और हरिद्वार जैसे तीर्थ स्थलों पर होली केवल रंगों का नहीं, बल्कि भक्ति का भी पर्व है। यहां कीर्तन, रासलीला और भजन के माध्यम से भगवान कृष्ण की भक्ति की जाती है।


होली को और भी खास कैसे बनाएं?

  1. प्राकृतिक रंगों का उपयोग करें
  2. बच्चों और बुजुर्गों का विशेष ध्यान रखें
  3. पर्यावरण को बचाने के लिए पानी की बचत करें
  4. शराब और नशीले पदार्थों का सेवन न करें
  5. अश्लीलता और जबरदस्ती से बचें, प्रेमपूर्वक होली मनाएं

निष्कर्ष

होली केवल एक रंगों का उत्सव नहीं, बल्कि यह हमारी संस्कृति, परंपरा और सनातन धर्म की महानता को दर्शाने वाला पर्व है। यह हमें सिखाता है कि बुराई पर अच्छाई की विजय होती है, और जीवन में प्रेम, समरसता और भाईचारा सबसे महत्वपूर्ण हैं।

इस होली पर हम संकल्प लें कि इसे सुरक्षित, पर्यावरण हितैषी और प्रेम से भरपूर बनाएंगे।

“रंगों में रचे-बसे, प्रेम से भरी होली, हर द्वार जाए संदेशा, मंगलमय होली!”