कूटरचित नियुक्ति का भंडाफोड़: भ्रष्टाचार में घिरे विद्यालय प्रबंधक व प्रधानाध्यापिका के खिलाफ एफआईआर दर्ज” किन्तु प्रबंधक के विरुद्ध विभागीय कार्रवाई शून्य

कूटरचित नियुक्ति का भंडाफोड़: भ्रष्टाचार में घिरे विद्यालय प्रबंधक व प्रधानाध्यापिका के खिलाफ एफआईआर दर्ज” किन्तु प्रबंधक के विरुद्ध विभागीय कार्रवाई शून्य

“जांच में सामने आई निधि सिंह की फर्जी नियुक्ति, हाईकोर्ट ने कहा- सेवा समाप्त करने से पहले देना था सुनवाई का अवसर”

लखनऊ/महराजगंज।
प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था को झकझोर देने वाला एक बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया है। जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय महराजगंज में कार्यरत वरिष्ठ सहायक यशवंत सिंह पर उनकी बहन निधि सिंह की फर्जी नियुक्ति कराने का गंभीर आरोप सिद्ध हुआ है। सिद्धार्थ पूर्व माध्यमिक विद्यालय, पिपरा रसूलपुर, विकास क्षेत्र-सदर, जनपद महराजगंज में हुई इस अवैध नियुक्ति में नियमों की जमकर अनदेखी की गई, जिसे लेकर अब शिक्षा विभाग से लेकर न्यायालय तक हलचल मच गई है।इस मामले में माननीय उच्च न्यायालय को भी गुमराह किया गया है यह पुरा कृत्य न्यायालय सम्बंधित पटल देखते हुए यशवंत सिंह के द्वारा तत्कालीन जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी आशिष सिंह के द्वारा मिलीभगत से रिट संख्या 6632/2023 में पारित आदेश के निस्तारण के समय किया गया उस समय यशवंत सिंह ने सम्बंधित पटल का कार्य देख रहे थे अगर तत्कालीन बी एस ए अशिष सिंह द्वारा उक्त रिट में रिव्यू दाखिल कर पैरवी किया गया होता तो इस तरिके का अनियमितता नहीं होता। लेकिन अपनी सगी बहन निधि सिंह के लिए इस तरिके का कृत्य किया गया

शिकायतकर्ता उमेश प्रसाद की ओर से महानिदेशक, स्कूल शिक्षा एवं राज्य परियोजना निदेशक कार्यालय को की गई शिकायत के आधार पर यह सारा मामला प्रकाश में आया। जांच में यह स्पष्ट हुआ कि निधि सिंह की नियुक्ति नियमों को दरकिनार करते हुए दिखाई गई थी, जिसकी पुष्टि मण्डलीय सहायक शिक्षा निदेशक (बेसिक), गोरखपुर द्वारा की गई।

 

फर्जी नियुक्ति की पूरी साजिश

मामले की तह में जाने पर जो तथ्य सामने आए, वे चौंकाने वाले हैं। निधि सिंह को वर्ष 2015 में विद्यालय की प्रधानाध्यापिका के रूप में नियुक्त किया गया, जबकि नियुक्ति प्रक्रिया में आवश्यक विज्ञापन दो समाचार पत्रों में प्रकाशित नहीं किया गया। नियमों के अनुसार एक राज्यस्तरीय और एक स्थानीय अखबार में विज्ञापन आवश्यक होता है। लेकिन मात्र एक कम प्रचारित स्थानीय अखबार में विज्ञापन देकर प्रक्रिया पूरी कर ली गई।

साथ ही, निधि सिंह द्वारा प्रस्तुत अनुभव प्रमाण पत्र भी राधा कुमारी लघु माध्यमिक विद्यालय, खैचा का फर्जी निकला। स्थलीय निरीक्षण में पाया गया कि उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए दस्तावेज अपूर्ण व अविश्वसनीय हैं। उनके पूर्व कार्यस्थल की उपस्थिति पंजिका अधूरी पाई गई और प्रमाण पत्र जारी करने वाले तत्कालीन प्रबंधक की मृत्यु हो चुकी थी। इस कारण प्रमाणन की पुष्टि नहीं हो सकी।

कार्यालयीय मिलीभगत की पुष्टि

इस घोटाले में सबसे अहम भूमिका निभाई वरिष्ठ सहायक यशवंत सिंह ने, जो जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय में तैनात थे। जांच में यह भी सामने आया कि नियुक्ति की अनुमति व पर्यवेक्षण के लिए जिन अधिकारियों के हस्ताक्षर प्रस्तुत किए गए, उन्होंने उन हस्ताक्षरों को फर्जी बताया है। इस प्रकार स्पष्ट हो गया कि शासकीय अभिलेखों में कूटरचना की गई।

यही नहीं, शिकायत में यह भी आरोप लगाया गया है कि यशवंत सिंह पूर्व में सर्व शिक्षा अभियान से संबंधित भ्रष्टाचार में भी लिप्त रहे हैं और उनकी पत्नी की नियुक्ति में भी अनियमितताएं पाई गई हैं। जांच में इन पहलुओं की भी गहराई से पड़ताल की जा रही है।

हाईकोर्ट का हस्तक्षेप और टिप्पणी

निधि सिंह ने नियुक्ति निरस्त होने के खिलाफ माननीय उच्च न्यायालय, इलाहाबाद में याचिका (संख्या 14066/2024) दाखिल की थी। न्यायालय ने दिनांक 10.09.2024 को दिए आदेश में स्पष्ट किया कि सेवा समाप्त करने से पूर्व प्राकृतिक न्याय सिद्धांतों के तहत सुनवाई का अवसर दिया जाना अनिवार्य था, जो इस मामले में नहीं किया गया। इस आधार पर न्यायालय ने जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा पारित सेवा समाप्ति आदेश को निरस्त कर दिया।

हालांकि, न्यायालय ने यह भी कहा कि विभाग चाहे तो विधिसम्मत अनुशासनात्मक कार्यवाही कर सकता है। वर्तमान में मामले की दोबारा जांच चल रही है।

एफआईआर दर्ज, साक्ष्य गायब

मामले की गंभीरता को देखते हुए जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, महराजगंज ने सिद्धार्थ पूर्व मा०वि०पि० रसूलपुर के प्रबंधक और प्रधानाचार्य के विरुद्ध थाना कोतवाली, महराजगंज में एफआईआर दर्ज कराई है। वहीं निधि सिंह के संदिग्ध अनुभव प्रमाण पत्र को लेकर दो सदस्यीय जांच समिति भी गठित की गई है, जिसने अपनी आख्या में सभी आरोपों को पुष्ट किया है।

जांच रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया गया है कि कई बार पत्राचार और मौके पर बुलाने के बावजूद विद्यालय प्रबंधक व प्रधानाचार्य ने जरूरी अभिलेख उपलब्ध नहीं कराए। इससे संदेह और गहरा गया है कि साक्ष्य या तो नष्ट कर दिए गए हैं या जानबूझकर छुपाए जा रहे हैं।

शासन का रुख सख्त, कार्रवाई के निर्देश

महानिदेशक, स्कूल शिक्षा एवं राज्य परियोजना निदेशक कार्यालय ने इस मामले को अत्यंत गंभीर और जनहित से जुड़ा मानते हुए इसे ‘महत्वपूर्ण / समयबद्ध’ के रूप में चिन्हित किया है और संबंधित अधिकारियों को 15 दिवस के भीतर विधिसम्मत कार्यवाही कर रिपोर्ट भेजने के निर्देश दिए हैं।

विभाग के उच्च अधिकारियों की मानें तो यदि आगामी जांच में यशवंत सिंह की संलिप्तता पूर्ण रूप से सिद्ध होती है, तो उनके विरुद्ध अनुशासनिक कार्यवाही, सेवा समाप्ति एवं अभियोजन की प्रक्रिया भी शुरू की जा सकती है।

जनता में आक्रोश, पारदर्शिता की उठी मांग

इस घोटाले के उजागर होने से महराजगंज जनपद की शिक्षा व्यवस्था पर बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा हो गया है। शिक्षक संगठन और अभिभावक समितियों ने इस पूरे मामले में दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई और नियुक्तियों में पारदर्शिता की मांग की है।

 

इस पूरे प्रकरण ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया है कि यदि शिकायतकर्ता दृढ़ संकल्प और साक्ष्यों के साथ सामने आए तो भ्रष्टाचार का कितना भी जाल क्यों न हो, उसे उजागर किया जा सकता है। अब देखना यह होगा कि प्रशासन इस पूरे मामले में कितनी तत्परता से कार्रवाई करता है और न्यायालय के आदेशों का कितना सम्मान करता है।

रिपोर्ट: मनोज तिवारी
स्थान: लखनऊ/महराजगंज