सिंदुरिया शौचालय निर्माण में बड़ा घोटाला! अधूरे कार्य के बावजूद एडवांस भुगतान

सिंदुरिया शौचालय निर्माण में बड़ा घोटाला! अधूरे कार्य के बावजूद एडवांस भुगतान

पेमेंट वाउचर में लाखों की निकासी, जमीनी हकीकत में अधूरा निर्माण, ‘ओमप्रकाश पटेल इंटरप्राइजेज’ पर उठे गंभीर सवाल

महराजगंज | मिठौरा ब्लॉक | 16 जुलाई 2025
जनपद महराजगंज के ब्लॉक मिठौरा अंतर्गत ग्राम पंचायत सिंदुरिया में सार्वजनिक शौचालय निर्माण कार्य के नाम पर बड़ा वित्तीय घोटाला सामने आया है। सरकारी पोर्टल eGramSwaraj से प्राप्त पेमेंट वाउचर डिटेल्स के अनुसार निर्माण कार्य हेतु तीन वाउचरों में कुल ₹8,89,995 की धनराशि का भुगतान किया गया, लेकिन स्थल पर शौचालय निर्माण आज तक अधूरा पड़ा है।

वाउचर विवरण:

1. वाउचर नं. XVFC/2025-26/P/3 (दिनांक 08/04/2025)

राशि: ₹2,58,317

भुगतान प्राप्तकर्ता: JAISWAL EET UDYOGE

उद्देश्य: सामग्री क्रय हेतु भुगतान

फ़ोटो संलग्न: सिंदुरिया शौचालय (jpeg)

 

2. वाउचर नं. XVFC/2025-26/P/2 (दिनांक 08/04/2025)

राशि: ₹5,12,506

भुगतान प्राप्तकर्ता: MS OMPRAKASH PATEL ENTERPRISES

उद्देश्य: शौचालय निर्माण सामग्री क्रय हेतु

खाता संख्या: समाप्ति अंक 5432

 

3. वाउचर नं. XVFC/2025-26/P/4 (दिनांक 08/04/2025)

राशि: ₹1,19,172

उद्देश्य: मजदूरी भुगतान

लाभार्थी: कमलावती देवी (₹6,636), अरविंद यादव (₹6,636) आदि

इन तीनों भुगतान वाउचरों से स्पष्ट है कि निर्माण कार्य हेतु भारी धनराशि खर्च की जा चुकी है, फिर भी वास्तविक स्थल पर न तो शौचालय पूर्ण हुआ है और न ही मजदूरी कार्य स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। इससे एक बड़ा सवाल उठता है कि सरकारी भुगतान की प्रक्रिया पारदर्शी कैसे मानी जाए, जब बिना निर्माण कार्य पूर्ण हुए ही एडवांस भुगतान कर दिया जाता है।

नकली सप्लायर और ‘कागजी इंटरप्राइजेज’ की भूमिका

विवादों का केंद्र बनी फर्म “MS OMPRAKASH PATEL ENTERPRISES” की स्थायी दुकान या कार्यस्थल कहीं भी उपलब्ध नहीं है, फिर भी इसे सामग्री आपूर्तिकर्ता दिखाकर लाखों का भुगतान किया गया है। स्थानीय लोग इसे “कागजों में चलने वाली फर्म” बताते हैं, जो केवल सरकारी बिलों और वाउचरों में मौजूद रहती है।

नियम सिर्फ आम जनता के लिए?

इस पूरे प्रकरण में आम जनता की वह कहावत चरितार्थ हो रही है – “समरथ के नहीं कोई दोष गुसाईं।” यानी जब कोई व्यक्ति या संस्था सत्ताधारी वर्ग से जुड़ी होती है, तो उसके लिए न नियम मायने रखते हैं, न कानून। इसी कारण ऐसे फर्जी फर्मों को एडवांस पेमेंट भी हो जाता है और कार्यस्थल पर कोई निगरानी भी नहीं होती।

जांच की आवश्यकता

स्थानीय ग्रामीणों ने इस मामले की जांच की मांग की है और जिला प्रशासन से आग्रह किया है कि शौचालय निर्माण कार्य की भौतिक जांच, फर्म की वैधता, तथा वित्तीय भुगतान प्रक्रिया की विस्तृत जांच की जाए। साथ ही इस प्रकरण में संलिप्त अधिकारियों व आपूर्तिकर्ताओं पर कार्रवाई सुनिश्चित की जाए।

यह मामला न केवल शौचालय निर्माण की स्थिति को उजागर करता है, बल्कि ग्राम पंचायत स्तर पर चल रहे फर्जीवाड़े और निगरानी तंत्र की विफलता का भी बड़ा प्रमाण है।