PCF सिद्धार्थनगर में 14 करोड़ से अधिक का घोटाला: निलंबन के बाद भी खातों से हुआ करोड़ों का भुगतान जनपद महराजगंज से जुड़ा घोटाले का तार



पूर्व जिला प्रबंधक अमित कुमार चौधरी और सहायक गणक उमानंद उपाध्याय पर गंभीर आर्थिक अपराध के आरोप, फर्जी फर्मों और व्यक्तिगत खातों में करोड़ों का ट्रांसफर, FIR दर्ज
सिद्धार्थनगर, 25 जुलाई 2025
उत्तर प्रदेश कोऑपरेटिव फेडरेशन (UPPCF) की सिद्धार्थनगर इकाई में ₹14.22 करोड़ रुपये से अधिक के गबन का चौंकाने वाला मामला सामने आया है। इस घोटाले ने न सिर्फ शासन और प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि यह भी उजागर किया है कि कैसे निलंबित अधिकारी खुलेआम विभागीय खाते संचालित करते रहे और नियमों को ताक पर रखकर फर्जी भुगतान करते रहे।
निलंबन के बाद भी खाते से हुआ भुगतान






UPPCF के तत्कालीन जिला प्रबंधक अमित कुमार चौधरी और सहायक गणक उमानंद उपाध्याय को 17 अगस्त 2024 को भारी अनियमितताओं के आरोप में निलंबित कर दिया गया था। लेकिन हैरानी की बात यह रही कि निलंबन के बावजूद 20 अगस्त 2024 तक गेहूं क्रय खाते संख्या 50100411673888 से लगभग ₹14.22 करोड़ रुपये का भुगतान विभिन्न खातों में किया गया।
ये भुगतान चेक और आरटीजीएस के माध्यम से उन व्यक्तियों और फर्मों को किए गए जिनका विभाग से कोई विधिक या व्यावसायिक संबंध नहीं था।
संदिग्ध भुगतान प्राप्त करने वालों की सूची में चौंकाने वाले नाम






जिला प्रबंधक विजय प्रताप पाल द्वारा शासन को भेजी गई जांच रिपोर्ट के अनुसार, जिन व्यक्तियों और फर्मों को यह भारी भुगतान हुआ, उनमें शामिल हैं:
अभय पाठक – ₹85 लाख
आनंद शुक्ल – ₹20 लाख
काव्य ट्रेडर्स – ₹1.25 करोड़
HK ट्रेडर्स – ₹30 लाख
प्रियंका त्रिपाठी – ₹4.13 करोड़
नरसिंह – ₹2.25 करोड़
ताहिरा खातून – ₹48 लाख
वैशू इंडस्ट्रीज, लक्ष्मी एग्रो, यादव ट्रेडर्स – लाखों रुपये
इन नामों में से कई तो ऐसे हैं जो पहले सिर्फ एक मोटरसाइकिल के मालिक थे और अब फॉर्च्यूनर जैसी लग्जरी गाड़ियों से घूमते देखे जा रहे हैं। जनपद महराजगंज के कुछ कथित “दलाल” और कमीशन एजेंट जिनके पास बीते वर्षों तक कोई आय का स्थायी स्रोत नहीं था, आज इस घोटाले के बाद लापता हैं।
गायब हुए अभिलेख और रजिस्टर
जांच रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि जिन चेकों और आरटीजीएस से भुगतान किया गया, उनके वितरण रजिस्टर, भुगतान आदेश, और अन्य जरूरी दस्तावेज कार्यालय से गायब कर दिए गए हैं। इससे संदेह और गहरा हो गया है कि घोटाले को छिपाने और सबूत मिटाने के लिए सुनियोजित तरीके से साजिश रची गई।
रिपोर्ट में साफ लिखा गया है कि यह पूरा घोटाला पूर्व नियोजित था और इसमें कई अधिकारियों की मिलीभगत की आशंका है।
बैंक अधिकारियों की भूमिका भी संदेह के घेरे में
सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि निलंबित अधिकारियों को विभागीय खातों से भुगतान करने की अनुमति कैसे मिली? क्या बैंक को उनके निलंबन की सूचना नहीं थी, या उन्होंने जानबूझकर नजरअंदाज किया?
बैंकिंग प्रक्रिया में जिला प्रबंधक, बैंक प्रबंधक, लेखा सहायक, और अनुमोदनकर्ता सभी शामिल होते हैं। ऐसे में बिना बैंक कर्मियों की जानकारी और सहयोग के इतने बड़े पैमाने पर गबन संभव नहीं माना जा रहा।
FIR दर्ज, EOW से जांच की मांग
इस प्रकरण में सिद्धार्थनगर के सदर थाने में एफआईआर दर्ज कर ली गई है। साथ ही शासन से मांग की गई है कि इस मामले की जांच आर्थिक अपराध शाखा (EOW) से कराई जाए।
रिपोर्ट में करीब 185 संदिग्ध भुगतान प्रविष्टियाँ सूचीबद्ध हैं, जिनकी विस्तृत जांच आवश्यक बताई गई है।
जनता में रोष, राजनीतिक दबाव बढ़ा
जैसे ही इस घोटाले की जानकारी सार्वजनिक हुई, सिद्धार्थनगर और महराजगंज में लोगों में भारी आक्रोश देखा गया। किसान संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने तत्काल दोषियों की संपत्ति जब्त करने और धन की रिकवरी की मांग उठाई है।
कई स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने इसे “जनता के राशन और खाद्यान्न से जुड़ा संगठित अपराध” करार दिया है। आरोपियों की गिरफ्तारी और कठोर दंड की मांग को लेकर लगातार ज्ञापन और विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं।
जबाबदेही और पारदर्शिता की अग्निपरीक्षा
PCF सिद्धार्थनगर में हुआ यह घोटाला महज एक वित्तीय अनियमितता नहीं, बल्कि सरकारी तंत्र की कमजोर निगरानी, भ्रष्टाचार और जवाबदेही की कमी को उजागर करता है। यदि इस पर शीघ्र कार्रवाई नहीं हुई, तो यह मामला आने वाले समय में बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन सकता है।
अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि—
क्या दोषी अधिकारी व दलाल गिरफ्तार होंगे?
क्या ₹14 करोड़ से अधिक की धनराशि वसूली जाएगी?
क्या PCF जैसी संस्थाओं में पारदर्शिता सुनिश्चित हो पाएगगी ।