यूपी सरकार का ऐतिहासिक निर्णय: पुलिस अभिलेखों से हटेगा जाति का जिक्र

यूपी सरकार का ऐतिहासिक निर्णय: पुलिस अभिलेखों से हटेगा जाति का जिक्र

हाईकोर्ट के आदेश पर कार्रवाई, सार्वजनिक स्थलों और सोशल मीडिया पर जातीय महिमामंडन पर भी रहेगा प्रतिबंध

लखनऊ, 22 सितम्बर।
उत्तर प्रदेश सरकार ने समाज में जातिगत भेदभाव और विभाजनकारी प्रवृत्तियों पर अंकुश लगाने के लिए ऐतिहासिक कदम उठाया है। अब प्रदेश में पुलिस अभिलेखों, सीसीटीएनएस पोर्टल, गिरफ्तारी मेमो, पंचनामा, नोटिस बोर्ड और अन्य सरकारी दस्तावेजों में अभियुक्तों की जाति का उल्लेख नहीं किया जाएगा। साथ ही, वाहनों पर जातीय स्लोगन-स्टीकर और सार्वजनिक स्थानों पर जाति आधारित बोर्डों को भी तत्काल हटाने के आदेश दिए गए हैं।

यह आदेश मुख्य सचिव दीपक कुमार द्वारा 21 सितम्बर 2025 को जारी किया गया। इसका सीधा संबंध इलाहाबाद हाईकोर्ट के हालिया आदेश से है। क्रिमिनल मिस. अप्लीकेशन 482 संख्या-31545/2024 प्रवीण छेत्री बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में हाईकोर्ट ने 16 सितम्बर को साफ कहा था कि जातिगत पहचान का सार्वजनिक प्रदर्शन सामाजिक सद्भावना के विपरीत है और इसे तत्काल बंद किया जाना चाहिए।


पुलिस अभिलेखों में व्यापक सुधार

हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि अब अभियुक्तों, शिकायतकर्ताओं और गवाहों के नाम के साथ पिता/पति के अलावा माता का नाम भी दर्ज किया जाए। इसके साथ ही पुलिस दस्तावेजों में जाति से संबंधित कॉलम को पूरी तरह हटाने का निर्देश दिया गया। शासन ने NCRB को सीसीटीएनएस पोर्टल अपडेट करने के लिए पत्र भेजने का निर्णय लिया है। जब तक तकनीकी बदलाव नहीं होता, तब तक पुलिसकर्मी जाति संबंधी कॉलम को खाली छोड़ेंगे।

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थानों में लगे नोटिस बोर्ड पर भी अब अभियुक्तों की जाति का उल्लेख नहीं होगा। गिरफ्तारी मेमो, तलाशी मेमो, संपत्ति जब्ती पत्र और पुलिस फाइनल रिपोर्ट जैसे दस्तावेजों से भी जाति का जिक्र पूरी तरह समाप्त कर दिया जाएगा।


वाहनों और सार्वजनिक स्थलों पर सख्ती

प्रदेश सरकार ने स्पष्ट किया है कि किसी भी वाहन पर जाति आधारित स्लोगन, स्टीकर या झंडा लगाना अब दंडनीय अपराध होगा। ऐसे वाहनों का चालान मोटर व्हीकल एक्ट के तहत किया जाएगा। इसके अलावा, कस्बों, तहसीलों और गांवों में लगे जातिगत गौरव वाले बोर्ड या किसी जाति विशेष को क्षेत्रीय मालिकाना हक जताने वाले साइनबोर्ड तुरंत हटाए जाएंगे। जिलाधिकारी और पुलिस अधिकारियों को ऐसे मामलों पर कड़ी कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं।

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सोशल मीडिया पर निगरानी

शासन ने यह भी तय किया है कि सोशल मीडिया पर जातीय गौरव या निंदा से संबंधित किसी भी प्रकार की सामग्री पर सख्त कार्रवाई होगी। पुलिस साइबर सेल को इसके लिए विशेष जिम्मेदारी दी गई है। जातिगत नफरत फैलाने वाले संदेश, वीडियो और पोस्ट साझा करने वालों के खिलाफ कठोर दंडात्मक कदम उठाए जाएंगे।


राजनीतिक रैलियों पर भी रोक

सरकार ने निर्देश दिया है कि राजनीतिक उद्देश्यों से आयोजित जाति आधारित रैलियां समाज में तनाव पैदा करती हैं। ऐसे आयोजनों को “लोक व्यवस्था और राष्ट्रीय एकता” के लिए हानिकारक बताते हुए उन पर प्रदेश में पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया है।

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जागरूकता और प्रशिक्षण पर जोर

मुख्य सचिव ने सभी वरिष्ठ अधिकारियों को आदेश दिया है कि अधीनस्थों को नए निर्देशों के अनुरूप प्रशिक्षित किया जाए। साथ ही, जनता में जागरूकता फैलाने के लिए व्यापक अभियान चलाया जाए ताकि लोग समझ सकें कि जातिगत प्रदर्शनों से सामाजिक समरसता को नुकसान होता है।

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निष्कर्ष और सवाल

हाईकोर्ट के आदेश के बाद उत्तर प्रदेश सरकार की यह पहल सामाजिक समरसता और समानता की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे पुलिस कार्यप्रणाली अधिक पारदर्शी और निष्पक्ष बनेगी। हालांकि, यह भी चुनौती है कि दशकों से समाज और राजनीति में गहराई तक जड़ें जमाए जातिगत सोच को कैसे बदला जाएगा।

अब जनता के बीच यह सवाल उठने लगे हैं कि—

  1. क्या राजनीति में भी जाति का इस्तेमाल बंद होगा?
  2. क्या चुनावी प्रचार में जातीय समीकरणों का खेल खत्म होगा?
  3. क्या आरक्षण की व्यवस्था भी इसी तर्क से प्रभावित होगी?
  4. क्या जातिगत जनगणना पर पुनर्विचार होगा?
  5. क्या जाति के आधार पर बने संगठन और रैलियां बंद होंगी?
  6. क्या प्रशासनिक नियुक्तियों और पदोन्नतियों में भी जातिगत संतुलन की चर्चा बंद होगी?

इन प्रश्नों के उत्तर आने बाकी हैं। लेकिन इतना तय है कि उत्तर प्रदेश सरकार का यह फैसला सामाजिक न्याय और संवैधानिक मूल्यों की दिशा में बड़ा कदम है, जिसकी गूंज राजनीति और समाज दोनों में लंबे समय तक सुनाई देगी।

 

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