महराजगंज में विधायक का एप्पल फोन विवाद: अधिकारी की बेइज्जती से उठा सियासी तूफ़ान, जनता स्टेट परिवार की राजनीति को याद करने लगी

महराजगंज में विधायक का एप्पल फोन विवाद: अधिकारी की बेइज्जती से उठा सियासी तूफ़ान, जनता स्टेट परिवार की राजनीति को याद करने लगी

 

गरीबी से अमीरी तक का सफर तय करने वाले विधायक पर लगे अहंकार के आरोप, सिसवा विधानसभा के चुनावी इतिहास ने फिर दिलाई स्टेट परिवार की याद

 

महराजगंज।
सिसवा विधानसभा की राजनीति एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार वजह कोई चुनावी रैली नहीं, बल्कि एप्पल फोन विवाद है। बताया जा रहा है कि क्षेत्र के एक विधायक एप्पल का नया फोन न मिलने से नाराज़ होकर मंच से ही एक अधिकारी की सरेआम बेइज्जती कर बैठे। सूत्रों के अनुसार, असली कारण यह था कि अधिकारी उनके कार्यक्रम में पर्याप्त भीड़ नहीं जुटा पाया था। विधायक ने गुस्से में आकर उस अधिकारी को प्रभार मुक्त करने का भी आदेश दे दिया।

यह पूरा घटनाक्रम न केवल प्रशासनिक हलकों में चर्चा का विषय बना, बल्कि आम जनता के बीच भी नाराज़गी का कारण बना है। लोगों का कहना है कि गरीबी से उठकर नेता बनने वाले विधायक अब सत्ता के नशे में चूर हैं और छोटे-छोटे बहानों पर सरकारी अधिकारियों को अपमानित करने लगे हैं।

गरीबी से अरबपति तक का सफर

विधायक अक्सर सार्वजनिक मंचों पर दावा करते रहे हैं कि उन्होंने गरीबी को बहुत नजदीक से देखा है और गरीबों के लिए राजनीति में आए हैं। लेकिन आज तस्वीर बिल्कुल बदल चुकी है। महराजगंज, गोरखपुर और लखनऊ जैसे शहरों में अरबों की भूमि, आलीशान मकान और सुख-सुविधाओं से लैस जीवनशैली उनके ऐशो-आराम की गवाही देती है।
जनता में चर्चा है कि गरीबों का नेता कहलाने वाले अब खुद अरबपति बन चुके हैं।

स्टेट परिवार की राजनीति की याद

सिसवा विधानसभा का राजनीतिक इतिहास हमेशा स्टेट परिवार के इर्द-गिर्द घूमता रहा है। इस परिवार ने अपनी निष्ठा, जनता से जुड़ाव और सेवा भावना के कारण क्षेत्र में गहरी पैठ बनाई। यही वजह है कि आज भी लोग मौजूदा नेताओं की तुलना स्टेट परिवार से करते हैं।

 

सिसवा विधानसभा चुनावी सफर: 1952 से अब तक

1. 1952 – पहली बार हुए विधानसभा चुनाव में सिसवा स्टेट परिवार के स्वर्गीय राम प्रसाद सिंह उर्फ निक्कन बाबू विधायक बने।

2. 1962-1985 – लंबे समय तक स्टेट परिवार के सदस्य यादवेंद्र सिंह उर्फ लल्लन जी ने विधानसभा में क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।

3. 1990 का दशक – राजनीति में कई उतार-चढ़ाव आए, लेकिन स्टेट परिवार का असर बरकरार रहा।

4. 2002 – स्टेट परिवार के शिवेंद्र सिंह उर्फ शिव बाबू राजनीति में सक्रिय हुए और क्षेत्र में मजबूत पकड़ बनाई।

5. 2007 – समाजवादी पार्टी से प्रत्याशी बने शिवेंद्र सिंह चुनाव लड़े, लेकिन भाजपा के अवनेंद्र नाथ द्विवेदी उर्फ महंत दुबे से हार गए।

6. 2012 – समाजवादी पार्टी ने उन्हें फिर मौका दिया और उन्होंने भारी मतों से जीत दर्ज की।

7. 2017 – भाजपा प्रत्याशी प्रेम सागर पटेल से उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

8. 2022 – टिकट न मिलने पर शिवेंद्र सिंह ने चुनाव नहीं लड़ा और भाजपा प्रत्याशी का समर्थन किया।

9. 2025 (वर्तमान) – ग्रामीण क्षेत्रों में जनता उन्हें लगातार बुला रही है, जगह-जगह सम्मान कर रही है और वे भी अगले चुनाव की तैयारी में जुट गए हैं।

 

जनता का मूड बदलाव की ओर

स्थानीय लोगों का कहना है कि स्टेट परिवार के कार्यकाल में जनता के काम बिना रिश्वत के और आसानी से हो जाते थे। अधिकारी और कर्मचारी जनता के प्रति जवाबदेह रहते थे। जबकि मौजूदा समय में सुविधा शुल्क दिए बिना कोई भी काम कराना मुश्किल हो गया है।

एप्पल फोन विवाद के बाद जनता की नाराज़गी और गहरी हो गई है। लोग कहते हैं कि जब एक विधायक अपने अहंकार में अधिकारी को अपमानित कर सकता है तो आम जनता की क्या बिसात। ऐसे में लोग इस बार बदलाव के मूड में हैं और स्टेट परिवार से एक बार फिर उम्मीदें जोड़ने लगे हैं।

 

एप्पल फोन विवाद ने सिसवा विधानसभा की राजनीति को नए सिरे से गरमा दिया है। एक तरफ वर्तमान विधायक पर अहंकार और भ्रष्टाचार के आरोप हैं, तो दूसरी तरफ स्टेट परिवार की साफ-सुथरी छवि और जनता से जुड़ाव को लोग याद कर रहे हैं। आने वाला विधानसभा चुनाव इस क्षेत्र के लिए बेहद अहम होगा, क्योंकि जनता अब बदलाव के मूड में दिखाई दे रही है।

 

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