गांधी-शास्त्री जयंती: सत्य, अहिंसा और सादगी से देश को नई दिशा देने वाले दो महानायक
2 अक्टूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की जयंती पर पूरा देश श्रद्धा-सुमन अर्पित कर उनके आदर्शों को जीवन में उतारने का संकल्प ले रहा है। गांधी जी ने दुनिया को सत्य और अहिंसा का मार्ग दिखाया, तो शास्त्री जी ने सादगी, ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा की मिसाल पेश की।
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संवाददाता, नई दिल्ली।
2 अक्टूबर भारतीय इतिहास का वह दिन है जो पूरे विश्व को भारतीय मूल्यों की झलक दिखाता है। यह दिन केवल भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में बड़े सम्मान के साथ मनाया जाता है। 2 अक्टूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की जयंती एक साथ आती है। इस दिन को मनाते हुए देशवासी न केवल इन दोनों महानायकों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, बल्कि उनके विचारों और जीवन मूल्यों को आत्मसात करने का संकल्प भी लेते हैं।
गांधी जी का जीवन सादगी और त्याग से परिपूर्ण था, लेकिन उनके विचार इतने गहरे और व्यापक थे कि उन्होंने पूरी दुनिया की दिशा बदल दी। सत्य, अहिंसा, स्वदेशी, स्वराज और स्वभाषा जैसे उनके सिद्धांतों ने न केवल भारत की स्वतंत्रता की राह को प्रशस्त किया, बल्कि पूरी दुनिया को शांति और सद्भाव की ओर प्रेरित किया। गांधी जी का कहना था—”सत्य मेरा भगवान है और अहिंसा उसे पाने का साधन।” यही विचार आज भी समाज में न्याय, समानता और शांति की राह दिखाते हैं।
आजादी की लड़ाई में गांधी जी का योगदान अतुलनीय रहा। उन्होंने बिना हथियार उठाए अंग्रेजों की नींव हिला दी। उनका ‘असहयोग आंदोलन’, ‘नमक सत्याग्रह’, ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ जैसे कई आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की नींव बने। उन्होंने सिखाया कि अन्याय और अत्याचार का विरोध हिंसा से नहीं, बल्कि सत्य और अहिंसा से किया जा सकता है। यही कारण है कि दुनिया के कई देशों में गांधी विचारधारा ने स्वतंत्रता आंदोलनों को प्रभावित किया। नेल्सन मंडेला, मार्टिन लूथर किंग जूनियर जैसे कई नेताओं ने गांधी से प्रेरणा लेकर अपने समाज में बदलाव की लड़ाई लड़ी।
गांधी जयंती केवल बापू को स्मरण करने का दिन नहीं है, बल्कि यह अवसर है उनकी शिक्षा और मूल्यों को व्यवहार में उतारने का। आज जब समाज भौतिकता और प्रतिस्पर्धा के दौर से गुजर रहा है, तो गांधी जी के आदर्श हमें संतुलन और नैतिकता का मार्ग दिखाते हैं।
शास्त्री जी: सादगी और ईमानदारी के प्रतीक

इसी दिन देश को एक और महान नेता का जन्म मिला—लाल बहादुर शास्त्री। भारत के दूसरे प्रधानमंत्री शास्त्री जी का जीवन सादगी, ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा और देशप्रेम की मिसाल है। उनका व्यक्तित्व भले ही शांत और विनम्र था, लेकिन उनकी कार्यशैली और निर्णय दूरगामी प्रभाव डालने वाली थी।
शास्त्री जी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद भी कभी ऐश्वर्य और विलासिता का जीवन नहीं अपनाया। वे मानते थे कि नेता का जीवन जनता के लिए उदाहरण होना चाहिए। उनके जीवन से जुड़े कई प्रेरक प्रसंग हमें सिखाते हैं कि नेतृत्व का सही अर्थ क्या होता है।
सादा जीवन, उच्च विचार
दहेज का बहिष्कार:
1928 में जब उनकी शादी हुई, तब दहेज लेना आम प्रथा थी। लेकिन शास्त्री जी ने इसका साफ विरोध किया और मात्र चरखा व कुछ किताबें ही स्वीकार कीं। यह कदम समाज को नई दिशा देने वाला था।
सस्ती साड़ियां खरीदना:
प्रधानमंत्री बनने के बाद भी जब वे अपनी पत्नी के लिए साड़ी खरीदने गए, तो उन्होंने महंगी साड़ियों को लेने से इनकार कर दिया। उनका कहना था कि वे गरीब प्रधानमंत्री हैं और अपनी हैसियत के अनुसार ही साड़ी खरीदेंगे।
पुराने फर्नीचर का इस्तेमाल:
प्रधानमंत्री बनने के बाद भी उन्होंने अपने पुराने फर्नीचर का ही उपयोग किया। यह उनकी सादगी और साधारण जीवनशैली को दर्शाता है।
कर्तव्य और अनुशासन
“जय जवान, जय किसान”:
शास्त्री जी का यह नारा आज भी भारतीय जनमानस में गूंजता है। यह नारा केवल शब्द नहीं, बल्कि उस दौर की सबसे बड़ी ज़रूरत थी। देश को सुरक्षा के लिए जवानों की बहादुरी और अन्न के लिए किसानों की मेहनत की आवश्यकता थी।
नियमों का सम्मान:
शास्त्री जी नियमों का पालन सर्वोपरि मानते थे। उनका मानना था कि समाज तभी मजबूत बन सकता है, जब हर नागरिक नियमों का पालन करे।
ईमानदारी और निस्वार्थ भाव
थानेदार द्वारा न पहचाना जाना:
प्रधानमंत्री बनने के बाद भी एक बार थानेदार ने उन्हें नहीं पहचाना। लेकिन उन्होंने नाराज होने के बजाय धैर्य और विनम्रता का परिचय दिया। यह उनकी सादगी और बड़े दिल का प्रमाण है।
माली की सीख:
बचपन में जब उन्होंने बगीचे से अमरूद तोड़ा, तो माली ने उन्हें डांटा। उस दिन उन्होंने निश्चय किया कि जीवन में कभी कोई गलत काम नहीं करेंगे। यह छोटी-सी घटना उनके पूरे जीवन का आधार बन गई।
नेतृत्व और दूरदर्शिता
जनता की भावनाओं को समझना:
शास्त्री जी एक ऐसे नेता थे, जो जनता की भावनाओं को गहराई से समझते थे। वे कहते थे कि नेता का सबसे बड़ा कर्तव्य है जनता की सेवा करना।
दूरदर्शी दृष्टिकोण:
उनका नेतृत्व केवल तत्कालीन परिस्थितियों तक सीमित नहीं था, बल्कि वे भविष्य की जरूरतों को भी भांप लेते थे। हरित क्रांति को प्रोत्साहन देना और किसानों के महत्व को उजागर करना उनके दूरदर्शी दृष्टिकोण का परिणाम था।
2 अक्टूबर का दिन हमें यह याद दिलाता है कि राष्ट्र का निर्माण केवल सत्ता से नहीं, बल्कि सादगी, ईमानदारी, सत्य और कर्तव्यनिष्ठा से होता है। गांधी जी ने अहिंसा और सत्य का मार्ग दिखाया, जबकि शास्त्री जी ने सादगी और अनुशासन से आदर्श नेतृत्व की मिसाल दी।
आज जब दुनिया भौतिक सुख-सुविधाओं की ओर भाग रही है, तब गांधी और शास्त्री का जीवन हमें सिखाता है कि असली ताकत सादगी और नैतिकता में है। इस अवसर पर देशवासियों को यह संकल्प लेना चाहिए कि हम उनके विचारों को आत्मसात कर भारत को शांति, प्रगति और ईमानदारी के पथ पर आगे बढ़ाएंगे।