गोरखपुर सहकारी समितियों में नियुक्ति घोटाला: सुनील कुमार गुप्ता पर गंभीर आरोप

2020 से 2025 तक सैकड़ों फर्जी नियुक्तियां, नियमों की खुली धज्जियां और करोड़ों की अवैध कमाई की आशंका
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर ज़िले की सहकारी समितियों में एक बड़ा घोटाला उजागर हुआ है, जिसने सहकारिता विभाग की पारदर्शिता और नियमों की साख पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस घोटाले के केंद्र में हैं गोरखपुर के पूर्व सहायक निबंधक (एआर) सुनील कुमार गुप्ता, जो वर्तमान में महराजगंज में तैनात हैं। आरोप हैं कि वर्ष 2020 से 2025 के बीच सैकड़ों नियुक्तियां उत्तर प्रदेश पैक्स कर्मचारी सेवा नियमावली 2020 के विपरीत की गईं।
नियमावली के अनुसार, जुलाई 2020 के बाद से किसी भी नियुक्ति के लिए चयन समिति की संस्तुति आवश्यक थी। लेकिन इन नियुक्तियों में चयन समिति की भूमिका को पूरी तरह से दरकिनार करते हुए मनमाने तरीके से नियुक्तियां की गईं, जिनमें कई नियुक्तियां एआर के सगे-संबंधियों की भी पाई गई हैं।
पहला मामला पाली विकासखंड के साधन सहकारी समिति लिमिटेड मिनवा का है, जहां सुनील कुमार गुप्ता ने अपने रिश्तेदार नीरज कुमार साहू को वर्ष 2021 में नियुक्त कर दिया, लेकिन दस्तावेजों में नियुक्ति की तिथि 2020 दिखाई गई। इससे यह साबित होता है कि यह नियुक्ति न केवल फर्जी थी, बल्कि जानबूझकर नियमों को तोड़ते हुए की गई।
दूसरे मामले में, बी0 पैक्स लिमिटेड बेलघाट में दीपक की नियुक्ति को फर्जी बताया गया है, जबकि तीसरे मामले में, बी0 पैक्स लिमिटेड मीरपुर में संदीप भारती को अवैध रूप से सहायक लेखाकार/पब्लिक विक्रेता पद पर नियुक्त किया गया।
चौथी गड़बड़ी सहकारी संघ लिमिटेड राप्ती गोरा कछार में देखी गई, जहां वर्ष 2021-22 में धान खरीद से जुड़ी एक बड़ी साजिश के तहत मनोज कुमार को फर्जी तरीके से नियुक्त किया गया।
पांचवा मामला बी0 पैक्स लिमिटेड मीठाबेल (विकासखंड ब्रह्मपुर) से जुड़ा है, जहां गोमतेश्वर तिवारी की नियुक्ति नियमों के स्पष्ट उल्लंघन के बावजूद कर दी गई।
इन सभी नियुक्तियों में यह बात सामने आई है कि या तो दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़ की गई, या फिर नियमों को ताक पर रखकर अपने करीबी लोगों को फायदा पहुंचाया गया। जानकारों का मानना है कि यह एक सुव्यवस्थित योजना के तहत किया गया घोटाला है, जिससे लाखों रुपये की अवैध कमाई की गई हो सकती है।
उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक आचरण नियमावली के अनुसार, कोई भी सरकारी अधिकारी अपने रिश्तेदारों को बिना शासन की पूर्व अनुमति के नियुक्त नहीं कर सकता है। नियमों में यह भी स्पष्ट किया गया है कि रक्त संबंधी या विवाह से जुड़े संबंधियों की नियुक्ति सरकारी पदों पर नहीं की जा सकती है।
इस घोटाले की गंभीरता को देखते हुए उच्च स्तरीय जांच की मांग उठ रही है। यदि आरोप सिद्ध होते हैं, तो यह न केवल सहकारिता विभाग की साख के लिए झटका होगा, बल्कि उत्तर प्रदेश प्रशासन के लिए भी एक बड़ी चुनौती बन सकता है।
निष्कर्षतः, इस पूरे मामले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कैसे सत्ता और पद का दुरुपयोग कर सरकारी नियमों को ताक पर रखकर भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया गया। अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या जांच एजेंसियां इस घोटाले में शामिल लोगों को कानून के दायरे में लाकर कड़ी सजा दिला पाएंगी या नहीं।