“‘हर घर जल’ या ‘हर घर छल’? — लक्ष्मीपुर एकडंगा में पेयजल योजना बनी कागज़ी ढांचा, ज़मीनी हकीकत बेहद शर्मनाक”

“‘हर घर जल’ या ‘हर घर छल’? — लक्ष्मीपुर एकडंगा में पेयजल योजना बनी कागज़ी ढांचा, ज़मीनी हकीकत बेहद शर्मनाक”

गुगल से लिया गया फोटो अपलोड 

220.32 लाख की जल जीवन मिशन योजना का ‘सौ फीसदी पूरा’ होने का दावा निकला खोखला, नल तो लगे लेकिन पानी नदारद; शौचालयों से स्कूलों तक जल संकट जारी, ग्रामीणों ने लगाए भ्रष्टाचार के आरोप

ग्राम प्रधान और सचिव पवन कुमार का कारनामा 
कागज में सारे कोरम पुर्ण 

लक्ष्मी पुर एकडंगा का जमीनी हकीकत 

महराजगंज (उत्तर प्रदेश)।
जहाँ सरकारें कागजों में गांवों को “हर घर जल” घोषित कर गौरवशाली लक्ष्य प्राप्त करने का दावा कर रही हैं, वहीं हकीकत इससे एकदम उलट है। महराजगंज जनपद के सिसवा ब्लॉक स्थित ग्राम पंचायत लक्ष्मीपुर एकडंगा में जल जीवन मिशन के तहत 220.32 लाख रुपये की लागत से शुरू हुई पेयजल योजना की असल तस्वीर सामने आने पर सरकारी दावों की पोल खुल गई है।

ग्राम पंचायत को 25 जून 2024 को ‘हर घर जल’ घोषित किया गया। ग्राम सभा में पारित प्रस्ताव के अनुसार 868 घरों में नल कनेक्शन दिया जा चुका है, सभी सार्वजनिक स्थलों — विद्यालय, पंचायत भवन, आंगनबाड़ी, स्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक शौचालय — में भी जल आपूर्ति उपलब्ध है, और जल शुद्धता की नियमित जांच भी की जा रही है।

यहां कोई टोंटी नहीं लेकिन दांव लाजवाब है 

लेकिन जमीनी सच्चाई इन तमाम सरकारी दावों को झूठा करार देती है।

झूठ का टैंक और खोखली पाइपलाइन

रिपोर्टर की पड़ताल में सामने आया कि कई घरों के बाहर लगे नल पूरी तरह बेकार पड़े हैं। कहीं प्लेटफॉर्म नहीं, कहीं पाइप अधूरे हैं, और अधिकतर स्थानों पर पानी आता ही नहीं। पाइपलाइनें कई जगह टूटी हुई हैं, जिससे न पानी पहुंचता है न ही कोई देखभाल करने वाला नजर आता है।

विद्यालयों में जल संकट सबसे गंभीर है। प्राथमिक और पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में नल लगे तो हैं, लेकिन इनमें पानी की आपूर्ति नहीं है। वाल्व क्लैम्प टूटी हुई, पाइप ज़मीन में आधे गड़े, और नल खोलने पर सिर्फ हवा निकलती है।

सामुदायिक शौचालयों की हालत और भी खराब है। ‘हर घर जल’ के तहत इनके चालू होने की पुष्टि की गई है, लेकिन हकीकत में कोई भी नल कार्यरत नहीं मिला। न सफाई, न पानी, न कोई जिम्मेदार अधिकारी।

              गुगल की तस्वीरें 

वेबसाइट पर झूठी तस्वीरें, गूगल से लिए गए फोटो?

सरकारी पोर्टल [swachhbharatmission.gov.in] पर दर्शाया गया है कि गांव में पाँच पंप हाउस, क्लोरीनेटर, स्टोरेज स्ट्रक्चर और स्लूइस वॉल्व लगाए गए हैं — जिनके फोटो भी वेबसाइट पर अपलोड हैं।

मगर गांव में वास्तविक रूप से केवल एक ही पंप हाउस मिला, वह भी पंचायत भवन के निकट। अन्य पंप हाउस, विशेषकर धौस टोला और हुड़रहिया टोला में दिखाए गए निर्माण पूरी तरह गायब हैं। यहां तक कि स्थानीय निवासी भी इन संरचनाओं के नाम तक से अनभिज्ञ हैं।

यह संकेत देता है कि या तो ये निर्माण हुए ही नहीं या फिर सिर्फ कागज़ और पोर्टल पर दिखाकर करोड़ों रुपये का घोटाला किया गया है।

कागज़ पर ‘100% भौतिक प्रगति’, असल में सिर्फ भ्रम

जल जीवन मिशन की रिपोर्ट में यह योजना 100% भौतिक रूप से पूर्ण बताई गई है, ट्रायल रन सफल बताया गया है, और इसे मॉडल गांव के तौर पर प्रचारित किया गया है। योजना की कुल लागत ₹220.32 लाख दर्शाई गई है, और ₹240.61 लाख का व्यय बताया गया है — जिसमें राज्य सरकार का योगदान ₹214.63 लाख और सामुदायिक योगदान ₹25.98 लाख बताया गया।

परंतु गांव में सामुदायिक योगदान का कोई ठोस साक्ष्य नहीं है। न श्रमदान की सूची उपलब्ध, न ही बैंक खाते की पारदर्शी जानकारी। ग्रामवासियों से पूछने पर वे इस योगदान से पूरी तरह अनभिज्ञ दिखे।

कौन जिम्मेदार? किस पर चले कार्रवाई?

ग्राम प्रधान, पंचायत सचिव, बीडीओ, जल निगम के अभियंता, और जल एवं स्वच्छता समिति के अध्यक्ष — सभी इस कथित उपलब्धि के प्रमाणपत्र पर हस्ताक्षरकर्ता हैं। ऐसे में इन सभी की मिलीभगत के बिना इस फर्जीवाड़े की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

अगर सरकार ने यह प्रमाणपत्र सिर्फ “डेस्क पर बैठे अफसरों की रिपोर्ट” के आधार पर जारी किया है, तो यह प्रशासनिक लापरवाही और पारदर्शिता की हत्या है। अगर जानबूझ कर फर्जी घोषणा की गई है, तो यह आपराधिक षड्यंत्र है।

ग्रामवासियों की आवाज और माँगें:

गांव के बुज़ुर्ग हों या युवा — सभी का कहना है कि पेयजल संकट आज भी वैसा ही बना हुआ है। नलों से जल नियमित नहीं आता, और अगर आता भी है, तो उसका दबाव और गुणवत्ता दोनों संतोषजनक नहीं होती। बच्चे स्कूल में पानी के लिए इधर-उधर भटकते हैं और महिलाएं आज भी हैंडपंप या तालाब से पानी भरती हैं।

इस आधार पर ग्रामीणों ने निम्नलिखित मांगें रखी हैं:

1. स्वतंत्र जांच समिति गठित की जाए जो स्थलीय सत्यापन करे।

2. फील्ड वेरिफिकेशन रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए, जिससे सही और गलत का अंतर सामने आए।

3. झूठी घोषणा करने वाले अधिकारियों पर आपराधिक मामला दर्ज किया जाए।

4. गांव में वास्तविक जरूरतों के अनुसार दोबारा योजना लागू की जाए — जिससे हर घर सच में जल से जुड़ सके।

 

लक्ष्मीपुर एकडंगा की पेयजल योजना आज ‘हर घर जल’ नहीं बल्कि ‘हर घर छल’ का उदाहरण बन गई है। कागज़ों में गांव चमक रहा है, लेकिन ज़मीन पर महिलाएं पानी के लिए कतार में हैं। स्कूलों में बच्चे प्यासे हैं, और शौचालयों में सफाई तो दूर, पानी तक नहीं।

यह घटना न सिर्फ जल जीवन मिशन के उद्देश्यों का मज़ाक उड़ाती है, बल्कि सरकारी योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार की गहराई भी उजागर करती है। यदि अब भी इस मामले में जांच और सुधार नहीं हुआ, तो यह ‘हर घर जल’ अभियान की साख को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है।

क्या शासन-प्रशासन जागेगा? या एक और घोटाला दबा दिया जाएगा?
सवाल अब सिर्फ पानी का नहीं, जवाबदेही का है।