सिसवा बाजार: विकास की राह ताकता 1871 का नगर पंचायत

सिसवा बाजार: विकास की राह ताकता 1871 का नगर पंचायत

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इतिहास में दर्ज लेकिन विकास में पिछड़ा, 1871 में स्थापित सिसवा बाजार आज भी विकास के उजाले की उम्मीद में

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सिसवा बाजार, महराजगंज जनपद का ऐतिहासिक नगर पंचायत, जिसे 17 अक्टूबर 1871 में अंग्रेजी शासन के दौरान नगर पंचायत का दर्जा मिला था, आज भी विकास की रोशनी के इंतजार में है। कभी गोरखपुर के बाद व्यापारिक गतिविधियों के लिए विख्यात यह स्थान आज समय की धारा में पीछे छूट गया है। अंग्रेजी हुकूमत के समय में यहां न्यायालय चलता था, और व्यापारिक गतिविधियां चरम पर थीं। सिसवा का रेलवे स्टेशन व्यापारियों के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र था, जहां मालगाड़ियाँ व्यापारिक सामान लेकर आती थीं, और आसपास के 30 किलोमीटर के क्षेत्र के लोग यहां से अपनी जरूरत का हर सामान खरीदते थे। अनाज से लेकर अन्य व्यापारिक वस्तुओं का यह प्रमुख केंद्र था।

परंतु, 15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ और लोकतंत्र की स्थापना हुई, सिसवा बाजार के विकास की गति ठहर सी गई। 1952 से लगातार यहां से लोकसभा और विधानसभा के लिए जनप्रतिनिधि चुने जाते रहे, लेकिन इस ऐतिहासिक स्थान को विकास के नाम पर ठगने का ही कार्य किया गया। अंग्रेजी शासनकाल में जहां इस स्थान की एक विशेष पहचान थी, वहीं आज इसे उपेक्षा और अंधकार में ढकेला गया है।

आज महराजगंज, जो पहले चिउरहां ग्राम पंचायत के नाम से जाना जाता था, जिला बन गया है। निचलौल और व नौतनवा को तहसील का दर्जा मिल चुका है, लेकिन सिसवा, जो कभी इन स्थानों से कहीं अधिक प्रतिष्ठित था, आज विकास की दौड़ में पीछे छूट गया है। इसका नतीजा यह हुआ कि यहां के बड़े-बड़े व्यापारी अपना व्यापार समेटकर अन्य प्रांतों में चले गए और सिसवा व्यापारिक गतिविधियों से विरक्त हो गया।

यह विडंबना है कि जिस सिसवा ने कभी व्यापार के मामले में एक अलग पहचान बनाई थी, आज उसी सिसवा का भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा है। वर्षों से विकास की राह ताकता यह नगर पंचायत यह सवाल करता है कि क्या उसे कभी असली स्वतंत्रता और विकास का लाभ मिलेगा?

समाजसेवी विनोद तिवारी और यहां के अन्य नागरिकों के मन में यह सवाल बना हुआ है कि कब इस स्थान का विकास होगा, और कब यह नगर पंचायत अपने पुराने गौरव को वापस पा सकेगा।