“स्थानांतरण नीति की खुली अवहेलना: गोरखपुर मंडल में 9 वर्षों से जमे सहायक आयुक्त सुनील कुमार गुप्ता पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप”

“उत्तर प्रदेश शासन की 2025-26 की स्थानांतरण नीति के बावजूद जनपद महाराजगंज में वर्षों से पदस्थ अधिकारी पर कार्रवाई शून्य, सवालों के घेरे में सहकारिता विभाग”
गोरखपुर/महाराजगंज, 4 जून 2025।
उत्तर प्रदेश सरकार ने 6 मई 2025 को वार्षिक स्थानांतरण नीति 2025-26 जारी की, जिसका उद्देश्य प्रदेश भर के सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों का पारदर्शी, नियंत्रित और निष्पक्ष स्थानांतरण सुनिश्चित करना था। लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट नजर आ रही है—विशेषकर गोरखपुर मंडल में, जहां सहकारिता विभाग के सहायक आयुक्त एवं सहायक निबंधक श्री सुनील कुमार गुप्ता वर्ष 2015 से लगातार मंडल में जमे हुए हैं, और 1 जुलाई 2023 से जनपद महाराजगंज में कार्यरत हैं।
इनका कार्यकाल स्थानांतरण नीति के स्पष्ट प्रावधानों के प्रतिकूल है, जिसमें कहा गया है कि कोई भी समूह ‘क’ या ‘ख’ अधिकारी 3 वर्ष से अधिक एक जनपद में और 7 वर्ष से अधिक एक मंडल में तैनात नहीं रह सकता। इसके बावजूद सुनील कुमार गुप्ता लगभग 9 वर्षों से गोरखपुर मंडल में अपनी तैनाती बनाए हुए हैं।
भ्रष्टाचार के आरोप और साठगांठ का संगीन मामला
जनपद महाराजगंज में सुनील कुमार गुप्ता का नाम भ्रष्टाचार का पर्याय बन गया है। सहकारिता विभाग से जुड़े सूत्रों का कहना है कि इन्होंने जनपद की अधिकांश राइस मिलों से गहरे संबंध स्थापित किए हैं, और इनके माध्यम से कई करोड़ों रुपये की अवैध संपत्ति अर्जित की है। यह संपत्ति इन्होंने अपने परिजनों और रिश्तेदारों के नाम पर दर्ज करवा रखी है।
स्थानीय नागरिकों और सामाजिक संगठनों का कहना है कि श्री गुप्ता को जनपद की कुछ राजनीतिक हस्तियों का संरक्षण प्राप्त है, जिसके चलते न तो कोई विभागीय जांच होती है और न ही स्थानांतरण की प्रक्रिया इनके लिए लागू होती दिख रही है।
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स्थानांतरण नीति 2025-26: क्या केवल कागज़ों तक सीमित?
सरकार की ओर से 6 मई 2025 को जारी स्थानांतरण नीति के अनुसार:
समूह ‘क’ और ‘ख’ के अधिकारी अगर 3 वर्ष से अधिक किसी जनपद और 7 वर्ष से अधिक किसी मंडल में हैं, तो उनका स्थानांतरण अनिवार्य है।
15 मई से 15 जून तक स्थानांतरण की समय-सीमा निर्धारित की गई है।
मानव संपदा पोर्टल पर मेरिट-बेस्ड ऑनलाइन ट्रांसफर सिस्टम के ज़रिए स्थानांतरण होना चाहिए।
अनुशासनहीनता या भ्रष्टाचार की स्थिति में सेवा संघ पदाधिकारियों को भी हटाया जा सकता है।
इन सभी निर्देशों की अवहेलना सुनील कुमार गुप्ता के मामले में खुलकर सामने आ रही है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि शासनादेशों की सिर्फ औपचारिकता निभाई जा रही है, जबकि जमीनी स्तर पर प्रभावशाली अफसर अभी भी नियमों को ताक पर रखकर पद पर बने हुए हैं।
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सिर्फ सुनील गुप्ता नहीं, पूरी व्यवस्था सवालों के घेरे में
सहकारिता विभाग से जुड़े जानकार बताते हैं कि श्री गुप्ता अकेले ऐसे अधिकारी नहीं हैं, जो लंबे समय से एक ही स्थान पर तैनात हैं। महाराजगंज जनपद में कई कर्मचारी, बाबू और अधिकारी ऐसे हैं, जो 5 वर्ष से लेकर 15 वर्षों तक एक ही स्थान पर डटे हुए हैं, और उन्होंने यहां अपनी साख नहीं, बल्कि सत्ता जैसी पकड़ बना रखी है।
कुछ कर्मचारियों ने गुमनाम शिकायतों के ज़रिए शासन को सूचित किया है, लेकिन आज तक न तो कोई जाँच बैठाई गई और न ही कोई प्रभावी कार्रवाई हुई।
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जनता में आक्रोश, लेकिन कार्रवाई नहीं
जनपद के सामाजिक संगठनों, जागरूक नागरिकों और RTI कार्यकर्ताओं ने कई बार मांग की कि ऐसे अधिकारियों का तत्काल तबादला हो और इनकी संपत्ति की जाँच की जाए, लेकिन अब तक केवल आश्वासनों के सिवा कुछ हाथ नहीं आया।
स्थानीय निवासी श्री रामजी यादव कहते हैं, “हमने कई बार जिलाधिकारी कार्यालय से लेकर लखनऊ तक शिकायत की है, लेकिन जिनके ऊपर हाथ रखने हैं, वही इस पूरे सिस्टम को अपनी उंगलियों पर नचा रहे हैं।”
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क्या 2025-26 की ट्रांसफर नीति में होगा सुधार?
अब जब स्थानांतरण सत्र 15 जून तक सीमित है, ऐसे में सरकार और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर नज़रें टिकी हैं कि क्या वे अपनी ही जारी की गई नीति को गंभीरता से लागू कर पाएंगे या फिर यह भी बाकी आदेशों की तरह केवल कागज़ों में कैद रह जाएगा।
नीति के अनुसार, मुख्यमंत्री के पास विशेषाधिकार है कि वे किसी भी अधिकारी को जनहित में स्थानांतरित कर सकते हैं, और नीति से विचलन भी उन्हीं की स्वीकृति से हो सकता है। यदि सुनील गुप्ता जैसे मामलों पर मुख्यमंत्री कार्यालय संज्ञान लेता है तो यह शासन की पारदर्शिता और प्रशासनिक ईमानदारी का परिचायक होगा।
उत्तर प्रदेश की स्थानांतरण नीति 2025-26 ने एक बार फिर उम्मीदें जगाई हैं कि लंबे समय से जमे भ्रष्ट अधिकारियों पर नकेल कसी जाएगी, लेकिन जब तक राजनीतिक संरक्षण और प्रशासनिक लापरवाही बनी रहेगी, तब तक ऐसे नियम केवल एक दिखावा ही साबित होंगे।
अब देखना यह है कि क्या 15 जून, 2025 से पहले श्री सुनील कुमार गुप्ता और इनके जैसे अन्य अधिकारियों पर कार्रवाई होती है या फिर यह अवसर भी इतिहास की धूल में दब जाएगा। जनपद महाराजगंज की जनता और कर्मचारी दोनों अब शासन की नियत और नीति की परीक्षा की प्रतीक्षा कर रहे हैं।