स्थानांतरण नीति की खुली अवहेलना: सोहागी बरवां वन्यजीव प्रभाग में वर्षों से जमे हैं अधिकारी, शासनादेश का नहीं हो रहा पालन

स्थानांतरण नीति की खुली अवहेलना: सोहागी बरवां वन्यजीव प्रभाग में वर्षों से जमे हैं अधिकारी, शासनादेश का नहीं हो रहा पालन

 

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी स्थानांतरण नीति के स्पष्ट दिशा-निर्देशों के बावजूद, महाराजगंज के सोहागी बरवां वन्यजीव प्रभाग में कुछ अधिकारी-कर्मचारी वर्षों से एक ही स्थान पर तैनात, पारदर्शिता और जवाबदेही पर उठे सवाल

 

 

महराजगंज, जून 2025।

उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2025-26 की वार्षिक स्थानांतरण नीति को पारदर्शी, उत्तरदायी और निष्पक्ष बनाने के उद्देश्य से विस्तृत शासनादेश जारी किया है। इसमें स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि कार्मिकों को निर्धारित समयसीमा में स्थानांतरित किया जाए और आकांक्षी जनपदों तथा विकासखंडों में तैनात कर्मचारियों को प्रतिस्थानी के आगमन तक कार्यमुक्त न किया जाए। लेकिन सोहागी बरवां वन्यजीव प्रभाग, महाराजगंज में इस नीति की खुली अवहेलना हो रही है।

 

शासनादेश के विरुद्ध वर्षों से जमे अधिकारी

शासन की नीति कहती है कि कार्मिकों को निर्धारित अवधि में स्थानांतरित किया जाए, और किसी भी जनपद या कार्यालय में अत्यधिक समय तक न रखा जाए। परंतु सोहागी बरवां वन्यजीव प्रभाग के अधिकारी – जैसे रेंजर निचलौल सुनील कुमार राव, फारेस्टर कासिम अली, फारेस्टर कपिल मुनि मिश्रा, मधवलिया में अब्दुल कलाम, निचलौल रेंज में रविंद्र कुमार, अशोक कुमार सिंह, पकड़ी रेंज में रामानंद मौर्य, शिवपुरी रेंज फारेस्टर रामफेर, मधवलिया में अभिषेक सिंह आदि – कई वर्षों से इसी एक ही वन्यजीव प्रभाग में जमे हुए हैं।

 

सूत्रों की मानें तो इनमें से कुछ अधिकारी अपनी नियुक्ति के समय से अब तक इसी डिवीजन में हैं और उन्होंने कभी किसी अन्य जनपद या वन प्रभाग में कार्य नहीं किया। यह न केवल शासन की स्थानांतरण नीति का उल्लंघन है बल्कि पद की निष्पक्षता और उत्तरदायित्व पर भी प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।

 

क्या है 2025-26 की स्थानांतरण नीति?

सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि:

 

 

समूह ‘ग’ एवं ‘घ’ के दो वर्ष में सेवानिवृत्त होने वाले कार्मिकों को गृह जनपद में तैनाती दी जा सकती है।

 

सभी स्थानांतरण 15 मई से 15 जून 2025 तक अनिवार्य रूप से पूर्ण किए जाएं।

 

आकांक्षी जनपदों में प्रतिस्थानी की नियुक्ति से पहले अधिकारी को कार्यमुक्त न किया जाए।

 

ऑनलाइन मेरिट बेस्ड ट्रांसफर सिस्टम को प्राथमिकता दी जाए।

 

 

इसके अतिरिक्त, स्थानांतरण के आदेशों की अवहेलना करने वाले अधिकारियों के विरुद्ध अनुशासनिक कार्रवाई और वेतन भुगतान पर रोक की भी बात कही गई है।

 

सोहागी बरवां में अपवाद क्यों?

सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब पूरी राज्य सरकार एक निर्धारित नीति पर चल रही है, तो सोहागी बरवां वन्यजीव प्रभाग को क्यों अपवाद बना रखा गया है? क्या यह किसी राजनीतिक संरक्षण या आंतरिक मिलीभगत का परिणाम है? क्यों वर्षों से एक ही स्थान पर तैनात कर्मचारियों का रिकॉर्ड संज्ञान में नहीं लिया गया?

 

पारदर्शिता पर सवाल और निष्पक्षता की मांग

इस स्थिति ने स्थानीय लोगों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं के बीच चिंता और असंतोष बढ़ा दिया है। वन विभाग जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में यदि अधिकारी-कर्मचारी एक ही स्थान पर वर्षों से टिके रहेंगे, तो विभागीय कार्यों की पारदर्शिता, कार्यक्षमता और जवाबदेही पर स्वाभाविक रूप से सवाल उठेंगे।

 

जनहित में हस्तक्षेप की जरूरत

मांग की जा रही है कि शासन इस मामले का संज्ञान लेकर तुरंत उच्च स्तरीय जांच कराए और स्थानांतरण नीति का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करे। जिन अधिकारियों ने अपनी पूरी सेवा अवधि एक ही जनपद या कार्यालय में बिताई है, उन्हें तत्काल स्थानांतरित किया जाए।

 

यदि राज्य सरकार अपने ही बनाए नियमों की अनदेखी करेगी, तो इससे अन्य कार्मिकों में भी असंतोष फैलेगा और नीति की साख पर असर पड़ेगा।