पैकौली में भूमि न्याय का संघर्ष: 22 वर्षों के बाद भी न्याय अधूरा, कब्जे की साजिश और प्रशासनिक लापरवाही से पीड़ित परिवार बेहाल

पैकौली में भूमि न्याय का संघर्ष: 22 वर्षों के बाद भी न्याय अधूरा, कब्जे की साजिश और प्रशासनिक लापरवाही से पीड़ित परिवार बेहाल

 

एक ओर हाईकोर्ट का आदेश और जिलाधिकारी की पुष्टि, दूसरी ओर राजस्व विभाग की मनमानी—प्रशासनिक उपेक्षा के बीच न्याय के लिए फिर अदालत की चौखट पर जाने को मजबूर अखिलेश्वर मिश्र का परिवा

महराजगंज/निचलौल:
जनपद महराजगंज के तहसील निचलौल अंतर्गत ग्राम सभा पैकौली कला और पैकौली खुर्द में एक लंबा चला आ रहा भूमि विवाद अब नए मोड़ पर आ खड़ा हुआ है। यह मामला न सिर्फ एक पुश्तैनी जमीन के कानूनी हक का है, बल्कि प्रशासनिक प्रणाली की पारदर्शिता और जवाबदेही पर भी सवाल खड़ा करता है।

अखिलेश्वर मिश्र, देवेंद्र मिश्र और करुणानिधान मिश्र—जो मूल खातेदार स्व. विश्वनाथ मिश्र के उत्तराधिकारी हैं—ने 22 वर्षों से अपने हक की लड़ाई लड़ी। यह लड़ाई वर्ष 1989 से शुरू होती है, जब उत्तर प्रदेश सरकार ने सीलिंग एक्ट के अंतर्गत ग्राम पैकौली कला और खुर्द की भूमि को ‘अतिरिक्त भूमि’ घोषित कर लिया था। इसके खिलाफ मिश्र बंधुओं ने विकल्प दिया कि पैकौली की भूमि को मुक्त कर ग्राम मिश्रौलिया की भूमि को सीलिंग में लिया जाए।

नियत प्राधिकारी ने 1995 में इस विकल्प को मान लिया और आदेश पारित किया, परंतु न तो खतौनी में संशोधन हुआ और न ही आदेश का पालन। जब बात नहीं बनी, तो पीड़ितों ने वर्ष 2006 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की शरण ली। कोर्ट ने दिनांक 01.05.2006 को स्पष्ट आदेश दिया कि 6 सप्ताह में विवादित भूमि का कब्जा पीड़ितों को दिलाया जाए।

तहसील प्रशासन ने आदेश का पालन करते हुए दिनांक 15.06.2006 को लेखपाल, तहसीलदार व राजस्व निरीक्षक की उपस्थिति में कब्जा दिलवाया और दखलनामा भी तैयार किया गया। इसी के आधार पर जिलाधिकारी ने हाईकोर्ट में शपथपत्र दाखिल कर आदेश के अनुपालन की पुष्टि भी की।

इसके बाद सह खातेदार वेंकटेश्वर मिश्र को भी समान प्रकृति की भूमि पर कब्जा दिलाया गया और उनका नाम खतौनी में दर्ज भी हुआ। लेकिन अखिलेश्वर मिश्र व उनके भाइयों का नाम अब तक खतौनी में नहीं चढ़ाया गया था।

इस अन्याय को सुधारते हुए तत्कालीन जिलाधिकारी श्री अमरनाथ उपाध्याय ने दिनांक 10.01.2019 को आदेश पारित किया कि ग्राम पैकौली कला और खुर्द के गाटा संख्याओं से वर्तमान इंद्राज हटाकर पीड़ितों के नाम संक्रमणीय भूमिधर के रूप में दर्ज किया जाए।

न्याय के बाद भी नया अन्याय

जहां एक ओर उच्च न्यायालय और जिलाधिकारी स्तर पर स्पष्ट आदेश मिल चुका था, वहीं दूसरी ओर स्थानीय राजस्व विभाग की कार्यशैली ने इस न्याय को धूमिल कर दिया। दिनांक 10.07.2025 को बिना किसी सूचना के हल्का लेखपाल और राजस्व निरीक्षक पैकौली पहुंचे और खेत में फसल लगी होने के बावजूद जमीन का चिन्हांकन शुरू कर दिया। आरोप है कि न केवल चिन्हांकन किया गया बल्कि खेत की फसल को ट्रैक्टर से रौंदकर नष्ट भी कर दिया गया।

पीड़ितों के अनुसार, यह कार्यवाही न केवल विधि विरुद्ध थी, बल्कि जानबूझकर प्रताड़ित करने के उद्देश्य से की गई थी। पक्षकारों को न तो कोई सूचना दी गई, न ही कोई नोटिस, और न ही मौके पर बुलाया गया।

फिर से कब्जे की साजिश?

पीड़ितों ने उपजिलाधिकारी निचलौल को सौंपे गए प्रार्थना पत्र में स्पष्ट किया है कि पूर्व में सीलिंग से मुक्त कर दी गई भूमि पर अब कुछ दबंगों द्वारा पुनः अवैध कब्जा करने की कोशिश की जा रही है, जिसमें स्थानीय राजस्व कर्मियों की मिलीभगत की भी आशंका जताई गई है।

पीड़ित पक्ष ने मांग की है कि:

संबंधित लेखपाल और राजस्व निरीक्षक के खिलाफ विभागीय जांच कराई जाए।

फसल क्षति का आकलन कर उन्हें क्षतिपूर्ति दी जाए।

दोषियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर कानूनी कार्रवाई की जाए।

पुनः भूमि पर कब्जा करने की कोशिश को रोका जाए।

 

समर्थन में ग्रामीण भी आए आगे

इस विवाद की जानकारी जैसे ही स्थानीय ग्रामीणों को हुई, उन्होंने भी पीड़ित परिवार के समर्थन में आवाज उठाई। कई ग्रामीणों का कहना है कि न्यायालय के आदेश के बाद भी यदि जमीन पर अवैध कब्जे की कोशिश होती है और प्रशासन मौ