ग्राम प्रधानों के खिलाफ शिकायतों पर नई पाबंदी, भ्रष्टाचार पर उठी आवाज को दबाने की तैयारी?

ग्राम प्रधानों के खिलाफ शिकायतों पर नई पाबंदी, भ्रष्टाचार पर उठी आवाज को दबाने की तैयारी?


पंचायती राज निदेशक का आदेश – केवल ग्रामसभा का स्थानीय निवासी हलफनामे पर कर सकेगा शिकायत, झूठी शिकायत पर कार्रवाई का प्रावधान; सामाजिक कार्यकर्ताओं और जागरूक नागरिकों ने फैसले को बताया “भ्रष्टाचार बचाओ अभियान”

 

लखनऊ।
उत्तर प्रदेश के पंचायती राज विभाग की ओर से जारी एक नए आदेश ने ग्रामीण स्तर पर बढ़ते भ्रष्टाचार को उजागर करने वाली आवाजों को दबाने की आशंका पैदा कर दी है। निदेशक पंचायती राज कार्यालय से समस्त जिलाधिकारियों को भेजे गए पत्र में निर्देशित किया गया है कि किसी भी ग्राम प्रधान के खिलाफ शिकायत केवल उसी ग्रामसभा का स्थानीय निवासी हलफनामे पर कर सकेगा। यदि शिकायत झूठी पाई जाती है, तो शिकायतकर्ता पर ही कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

यह आदेश प्रदेश के ग्राम प्रधान संगठन के अध्यक्ष श्री कौशल किशोर पाण्डेय के पत्र के आधार पर जारी किया गया है। पत्र में मांग की गई थी कि ग्राम प्रधानों के खिलाफ बाहरी व्यक्तियों द्वारा की जाने वाली शिकायतों को स्वीकार न किया जाए और फर्जी शिकायतों पर शिकायतकर्ता को दंडित किया जाए। इसके बाद 31 जुलाई 2025 को संयुक्त निदेशक (पं०) एस.एन. सिंह द्वारा जारी निर्देश में सभी जिलाधिकारियों, मुख्य विकास अधिकारियों और जिला पंचायत राज अधिकारियों को स्पष्ट किया गया है कि वे इस नियम का अनुपालन सुनिश्चित करें।

भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को मिलेगा झटका

सामाजिक कार्यकर्ताओं और जागरूक नागरिकों का कहना है कि यह आदेश ग्राम पंचायतों में पहले से फैले भ्रष्टाचार को और बढ़ावा देगा। उनका तर्क है कि कई बार ग्रामसभा का कोई स्थानीय व्यक्ति, दबाव या डर के कारण शिकायत करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। ऐसे में बाहरी सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार या एनजीओ भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं।

लेकिन अब यह रास्ता पूरी तरह बंद कर दिया गया है। यदि कोई स्थानीय नागरिक भ्रष्टाचार की शिकायत करता है और जांच में, अधिकारियों की मिलीभगत या पक्षपात के कारण शिकायत “झूठी” करार दे दी जाती है, तो शिकायतकर्ता ही कानूनी कार्रवाई का शिकार बन सकता है। इससे न केवल ग्रामीणों में भय का माहौल बनेगा बल्कि भ्रष्ट प्रधानों और उनके संरक्षणकर्ताओं को खुली छूट मिल जाएगी।

‘तुगलकी फरमान’ पर मचा विरोध

कई सामाजिक संगठनों ने इस आदेश को “तुगलकी फरमान” करार दिया है। उनका कहना है कि यह नियम पारदर्शिता और जवाबदेही के सिद्धांतों के खिलाफ है। प्रशासनिक अमला पहले से ही कई मामलों में भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरा रहता है। ऐसे में शिकायतों पर रोक लगाने या उन्हें सीमित करने के बजाय उन्हें स्वतंत्र और पारदर्शी तरीके से निपटाने की व्यवस्था होनी चाहिए।

सामाजिक कार्यकर्ता मांग कर रहे हैं कि इस आदेश को तुरंत वापस लिया जाए और शिकायतों की जांच निष्पक्ष एजेंसी से कराई जाए ताकि भ्रष्टाचारियों को बचाने की बजाय उन्हें सजा मिले।

 

ग्रामीण विकास में ग्राम प्रधानों की भूमिका अहम है, लेकिन नए निर्देशों ने ईमानदार नागरिकों की आवाज उठाने के अधिकार पर खतरा पैदा कर दिया है। अब सवाल उठ रहा है कि क्या यह कदम “भ्रष्टाचार रोकने” के लिए है या “भ्रष्टाचार छिपाने” के लिए?