जांच से बचने के लिए एआरटीओ कार्यालय में रची बड़ी साज़िश, हज़ारों सरकारी दस्तावेज दफन – महाराजगंज में मचा हड़कंप
महराजगंज, 8 अगस्त 2025।
जनपद महाराजगंज का संभागीय परिवहन विभाग (ARTO) एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार मामला इतना सनसनीखेज है कि जिले के प्रशासनिक गलियारों से लेकर आम जनता तक में खलबली मच गई है। आरोप है कि विभाग ने हज़ारों महत्वपूर्ण सरकारी दस्तावेजों को जेसीबी मशीन से गड्ढा खुदवाकर दफना दिया और ऊपर आम का पौधा लगाकर इस गहरी साज़िश को छिपाने की कोशिश की।
सूत्रों के मुताबिक, यह घटना 20 जुलाई 2025, रविवार को तब हुई जब सरकारी दफ्तर बंद रहते हैं। गुप्त जानकारी के आधार पर खुलासा हुआ कि उस दिन विभाग के कर्मचारियों ने कार्यालय खोला, करीब 15 फीट गहरा गड्ढा खुदवाया और 10–12 बोरियों में भरे वाहन ट्रांसफर, परमिट, फिटनेस और ड्राइविंग लाइसेंस से संबंधित हजारों दस्तावेज गुपचुप तरीके से उसमें डाल दिए। इसके बाद गड्ढे को भरकर ऊपर आम का पौधा लगा दिया गया ताकि किसी को शक न हो।
ARTO का कबूलनामा, मगर जवाब अधूरा
इस पूरे मामले पर जब एआरटीओ मनोज सिंह से सवाल किया गया तो उन्होंने यह स्वीकार किया कि पुराने, सड़े-गले और अपठनीय दस्तावेजों को उच्चाधिकारियों के आदेश पर नष्ट किया गया। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर यह कार्रवाई वैध थी, तो रविवार को, जब कार्यालय बंद रहता है, चुपके से क्यों की गई?
क्या इन दस्तावेजों की विधिवत छंटनी हुई थी?
क्या स्वीकृति आदेश और निस्तारण रजिस्टर तैयार हुआ था?
क्या विभागीय समिति की कोई संस्तुति मौजूद है?
इन सभी सवालों के जवाब फिलहाल प्रशासन के पास नहीं हैं, जिससे संदेह और गहराता जा रहा है।
स्थानीय जनता में उबाल, जांच की मांग तेज
मामले के सामने आते ही स्थानीय समाजसेवियों और जागरूक नागरिकों ने इसे बड़े घोटाले के सबूत मिटाने की कोशिश बताया है। उनका कहना है कि जिन कागजातों को नष्ट किया गया, उनमें कई पुराने विवादित आवेदन, फर्जी वाहन स्वीकृति, लाइसेंसिंग गड़बड़ियां और परमिट रैकेट से जुड़ी अहम फाइलें थीं।
सूत्रों का दावा है कि इन दस्तावेजों से कई पुराने भ्रष्ट अधिकारियों की संलिप्तता उजागर हो सकती थी, इसलिए इन्हें खत्म करने का षड्यंत्र रचा गया। लोगों ने मुख्यमंत्री से इस मामले की न्यायिक जांच या एसआईटी जांच की मांग की है।
विवादों का पुराना इतिहास
यह पहला मौका नहीं है जब महाराजगंज का एआरटीओ कार्यालय विवादों में आया हो। इससे पहले एआरटीओ विनय कुमार पर कुंभ मेले के नाम पर 10 लाख रुपये के घोटाले का आरोप लग चुका है। अब नए प्रकरण ने विभाग की छवि को और ज्यादा संदिग्ध बना दिया है।
प्रशासनिक चुप्पी पर सवाल
सबसे हैरानी की बात यह है कि इतनी बड़ी घटना के बावजूद जिले के शीर्ष अधिकारी अब तक खुलकर सामने नहीं आए हैं। न तो कोई जांच समिति गठित की गई है और न ही जिम्मेदारों पर तत्काल कार्रवाई की गई है। इससे यह आशंका और गहरी हो गई है कि कहीं प्रशासनिक स्तर पर भी इस मामले को दबाने की कोशिश तो नहीं हो रही।
स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि इस प्रकरण की निष्पक्ष जांच नहीं हुई, तो आने वाले दिनों में यह सिर्फ दस्तावेज़ नष्ट करने का मामला नहीं रहेगा, बल्कि यह जनता के विश्वास पर हमला माना जाएगा।
अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या सरकार इस मामले में पारदर्शी जांच कराएगी या यह भी महज एक और दफन हो चुकी फाइल बनकर रह जाएगा।