नियुक्ति रद्द, फिर भी हाईकोर्ट से मिली राहत: पंचायत विद्यालय विवाद पर उठा बड़ा सवाल।

नियुक्ति रद्द, फिर भी हाईकोर्ट से मिली राहत: पंचायत विद्यालय विवाद पर उठा बड़ा सवाल।

बीएसए महराजगंज ने 15 सितम्बर को दी नियुक्ति निरस्ती का आदेश, हाईकोर्ट ने 18 सितम्बर को वेतन रोकने पर लगाई रोक – अब शिक्षकों में उलझन कि आदेश का वास्तविक लाभ क्या होगा

 

महराजगंज।
जिले के पंचायत पूर्व माध्यमिक विद्यालय, मिठौरा बाजार के प्रधानाध्यापक श्री दुर्गेश कुमार पाण्डेय की नियुक्ति और वेतन विवाद अब पेचीदा मोड़ पर पहुँच गया है। एक ओर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पाण्डेय के पक्ष में अंतरिम आदेश देते हुए वेतन भुगतान रोकने पर रोक लगा दी है, वहीं दूसरी ओर जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी (डीबीएसईओ) महराजगंज ने हाईकोर्ट के आदेश से तीन दिन पूर्व ही उनकी नियुक्ति निरस्त करने का आदेश जारी कर दिया था।

मामला कैसे शुरू हुआ?

2 मई 2016 से प्रधानाध्यापक के पद पर कार्यरत दुर्गेश पाण्डेय का अनुमोदन उस समय के बीएसए कार्यालय से विधिवत स्वीकृत हुआ था। वे नियमित रूप से वेतन प्राप्त कर रहे थे। किंतु 22 अगस्त 2025 को बीएसईओ ने अचानक उनका वेतन रोकने और अनुमोदन निरस्ती की कार्यवाही शुरू कर दी। इसके विरुद्ध पाण्डेय ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

हाईकोर्ट का रुख

न्यायमूर्ति श्रीमती मंजू रानी चौहान की एकलपीठ ने 18 सितम्बर को सुनवाई करते हुए कहा कि नौ साल बाद किसी “अजनबी शिकायत” के आधार पर नियुक्ति को चुनौती देना न्यायसंगत नहीं है। अदालत ने टिप्पणी की कि बिना नोटिस और विधिक प्रक्रिया के वेतन रोकना पूरी तरह अवैध है। इसी के साथ अदालत ने आदेश दिया कि पाण्डेय को नियमित वेतन मिलता रहे और वे अपने पद पर बने रहें।

बीएसए का आदेश

लेकिन इस बीच बीएसए महराजगंज (रिद्धि पाण्डेय) ने 15 सितम्बर 2025 को ही आदेश जारी कर दिया था, जिसमें पाण्डेय की नियुक्ति का अनुमोदन तत्काल प्रभाव से निरस्त कर दिया गया। आदेश में यह उल्लेख है कि उप शिक्षा निदेशक, लखनऊ से मिली जांच आख्या के आधार पर यह कार्रवाई की गई है।

उठते सवाल

अब बड़ा सवाल यह है कि जब नियुक्ति ही निरस्त कर दी गई है, तो क्या हाईकोर्ट द्वारा वेतन भुगतान पर दी गई रोक-राहत का कोई वास्तविक लाभ पाण्डेय को मिलेगा? कानूनी जानकारों का कहना है कि अदालत ने फिलहाल “वेतन रोकने” के आदेश को अवैध ठहराया है, लेकिन यदि नियुक्ति रद्द का आदेश प्रभावी रहता है तो वेतन भुगतान अपने आप संदिग्ध हो जाएगा।

शिक्षक समाज में हलचल

इस विरोधाभास ने शिक्षक समाज में गहरी हलचल पैदा कर दी है। शिक्षकों का कहना है कि प्रशासनिक स्तर पर बिना स्पष्ट प्रक्रिया अपनाए गए आदेश न्यायालय के समक्ष टिक नहीं पाएंगे। वहीं शिक्षा विभाग की अगली कार्यवाही और 3 नवम्बर को होने वाली अगली सुनवाई का शिक्षकों को बेसब्री से इंतजार है।

यह मामला अब सिर्फ एक प्रधानाध्यापक का व्यक्तिगत विवाद नहीं रहा, बल्कि पूरे प्रदेश के शिक्षकों के लिए नजीर बनने जा रहा है। अदालत का अंतिम निर्णय तय करेगा कि ऐसे मामलों में शिक्षकों को वास्तविक सुरक्षा मिलेगी या नहीं।

 

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