महराजगंज में करोड़ों के पोषाहार घोटाले पर पर्दा! विशेष सचिव खाद्कीय एवं रसद के समीक्षा यात्रा में नहीं उठी गंभीर गड़बड़ियों की बात

ICDS योजना के अंतर्गत खाद्यान्न वितरण में व्यापक भ्रष्टाचार, लेकिन जांच के नाम पर दिखावा? जिला अधिकारियों पर गंभीर आरोप, दस्तावेजों की गुमशुदगी दर्ज कर बचाव का प्रयास
महराजगंज (उत्तर प्रदेश)।
जिले में तीन दिवसीय समीक्षा यात्रा पर पहुंचे खाद्य एवं रसद विभाग के विशेष सचिव ने योजनाओं की समीक्षा तो की, लेकिन सबसे बड़ी चिंता का विषय रहा कि वर्षों से विचाराधीन करोड़ों रुपये के खाद्यान्न घोटाले की ओर न तो उनका ध्यान गया और न ही स्थानीय अधिकारियों ने इस दिशा में उन्हें अवगत कराने की कोशिश की।
बताया जा रहा है कि विशेष सचिव की यह यात्रा “सरकारी योजनाओं की जमीनी हकीकत” जानने और “समीक्षा के माध्यम से सुधार की दिशा” में थी। हालांकि जमीनी हकीकत में गड़बड़ियों का अंबार है, विशेष रूप से Integrated Child Development Services (ICDS) के अंतर्गत संचालित पोषाहार योजना में, जहां पोषाहार वितरण और चावल की आपूर्ति में बड़े पैमाने पर धांधली उजागर हुई है।
विशेष सचिव ने दौरे के दौरान कुछ योजनाओं की स्थल निरीक्षण कर रिपोर्ट तैयार की, लेकिन सबसे बड़ी और चर्चित जांच—आईसीडीएस योजना के तहत किए गए करोड़ों के खाद्यान्न घोटाले पर चुप्पी बनी रही।
क्या है मामला?
जिला पूर्ति अधिकारी, विपणन अधिकारी, कोटेदार और अन्य विभागीय कर्मचारियों की मिलीभगत से आंगनबाड़ी केंद्रों में वितरण के लिए आए चावल और अन्य पोषाहार सामग्री को या तो काला बाजारी में बेच दिया गया या फिर वितरण रजिस्टर और लाभार्थियों की सूची में फर्जीवाड़ा कर रिपोर्टिंग कर दी गई।
प्रदेश सरकार द्वारा 19 जुलाई 2021 को जारी एसओपी (SOP) के अनुसार, ICDS के अंतर्गत चिन्हित लाभार्थियों को पोषाहार एवं फोर्टिफाइड चावल सीधे सरकारी कोटे से प्राप्त होना था। लेकिन महराजगंज जिले के कई गांवों में न तो यह वितरण हुआ और न ही लाभार्थियों को इसकी जानकारी दी गई।
बदतर स्थिति यह रही कि कई गांवों में कोटेदारों ने खाद्यान्न को खुले बाजार में बेच दिया। जब ग्रामीणों ने आवाज उठाई, तो विभागीय अधिकारियों ने कागजी खानापूर्ति शुरू की और रजिस्टर तक गायब कर दिए गए। इसके बाद उन्हीं दस्तावेजों की गुमशुदगी की रिपोर्ट थाने में दर्ज करा दी गई, जिससे जांच आगे बढ़ ही न सके।
स्मरण पत्र से उठा पर्दा
गोरखपुर मंडल के आयुक्त को भेजे गए एक स्मरण पत्र में इस घोटाले की गंभीरता को उजागर किया गया है। इस पत्र में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जिला पूर्ति अधिकारी श्री ए.पी. सिंह द्वारा इस पूरे घोटाले पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं की गई है। कोटेदारों के खिलाफ शिकायतों के बावजूद उनके खिलाफ न कोई निलंबन, न एफआईआर और न ही रिकवरी की प्रक्रिया चलाई गई।
यही नहीं, आरोप यह भी है कि विभागीय अधिकारी जानबूझकर इस घोटाले को दबाने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि जिम्मेदारों को बचाया जा सके।
खाद्य आपूर्ति की त्रिस्तरीय निगरानी व्यवस्था भी रही निष्क्रिय
राज्य सरकार द्वारा निर्धारित त्रिस्तरीय निगरानी प्रणाली—ग्राम निगरानी समिति (VMC), ब्लॉक निगरानी समिति (BMC), और जिला स्तर की समितियां पूरी तरह निष्क्रिय रही हैं। जिनका काम पोषाहार की गुणवत्ता और मात्रा की निगरानी करना था, उन्होंने या तो आंखें मूंद लीं या फिर मिलीभगत कर ली।
ग्राम स्तर पर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के माध्यम से लाभार्थियों की पहचान और वितरण सुनिश्चित कराना था, लेकिन इस प्रक्रिया का भी पूरी तरह से मजाक बना दिया गया।
नकली वितरण, गुम दस्तावेज और विभागीय संरक्षण
जानकारी के अनुसार, कागजों में वितरण दिखा दिया गया और जिन रजिस्टरों में लाभार्थियों के हस्ताक्षर होने चाहिए थे, वे या तो गायब हैं या फिर फर्जी दस्तावेज तैयार कर अधिकारियों को सौंप दिए गए। कई मामलों में तो थानों में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कर यह दावा किया गया कि दस्तावेज चोरी हो गए, ताकि कोई जांच न हो सके।
इस पूरे घोटाले में खाद्य एवं रसद विभाग के आईटी मंच के जरिए निगरानी की बात भी खोखली साबित हुई है, क्योंकि कोई ट्रैकिंग नहीं की गई। आईसीडीएस और खाद्य विभाग के बीच समन्वय का अभाव और जानबूझकर की गई लापरवाही ने लाभार्थियों के हक को निगल लिया।
क्या बोले ग्रामीण?
ग्राम पंचायतों से जुड़े कुछ लाभार्थियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि उन्हें कई महीनों से कोई चावल या पोषाहार नहीं मिला है। जब उन्होंने कोटेदार से पूछा, तो जवाब मिला कि “आपका नाम नहीं है” या “सरकार से माल ही नहीं आया।” लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में दिखाया गया कि वितरण हो चुका है।
विशेष सचिव की चुप्पी पर सवाल
सवाल यह उठता है कि जब इतनी बड़ी गड़बड़ियां स्थानीय स्तर पर चर्चा का विषय हैं, तो विशेष सचिव को इसकी जानकारी क्यों नहीं दी गई? क्या यह स्थानीय अधिकारियों की लापरवाही थी या फिर जानबूझकर तथ्य छिपाए गए?
इस पूरे मामले में यह भी आशंका जताई जा रही है कि विशेष सचिव को भ्रमित करने के लिए उन्हें केवल पहले से तैयार और सुचारु रूप से चल रही योजनाएं ही दिखाई गईं, जबकि जिन योजनाओं में भ्रष्टाचार है, उन्हें जानबूझकर छिपा लिया गया।
अब देखना यह है कि आयुक्त गोरखपुर मंडल द्वारा इस गंभीर मामले पर क्या कार्रवाई की जाती है। क्या दोषी अधिकारियों, कोटेदारों और कर्मचारियों पर शिकंजा कसा जाएगा, या यह घोटाला भी अन्य मामलों की तरह फाइलों में दफन हो जाएगा?
एक ओर केंद्र और राज्य सरकारें गरीबों को मुफ्त अनाज और पोषण देने के लिए हजारों करोड़ खर्च कर रही हैं, वहीं महराजगंज जैसे जिलों में योजनाओं को पलीता लगाया जा रहा है। यदि इस प्रकरण में जल्द कार्रवाई नहीं की गई, तो यह सरकारी योजनाओं में जनता के विश्वास को गहरी चोट पहुंचाएगा।
रिपोर्ट – मनोज कुमार तिवारी की विशेष रिपोर्ट, महराजगंज
तारीख – 01 जून 2025