परतावल नगर पंचायत में बिना नंबर प्लेट की कूड़ा उठाने वाली गाड़ियां: आम नागरिकों पर सख्ती, जिम्मेदार एजेंसियों की चुप्पी!

परतावल नगर पंचायत में बिना नंबर प्लेट की कूड़ा उठाने वाली गाड़ियां: आम नागरिकों पर सख्ती, जिम्मेदार एजेंसियों की चुप्पी

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एक तरफ आम आदमी को ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन पर जुर्माना, दूसरी ओर नगर पंचायत की गाड़ियां बिना नंबर प्लेट के बेरोकटोक चल रहीं।

 

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परतावल नगर पंचायत में सरकारी तंत्र और आम नागरिकों के बीच के फर्क को स्पष्ट रूप से दर्शाने वाला एक अनोखा मामला सामने आया है। जहां आम नागरिक यदि बिना हेलमेट या बिना नंबर प्लेट के वाहन चलाता है, तो उस पर यातायात पुलिस और आरटीओ विभाग द्वारा कड़ी कार्यवाही की जाती है, वहीं दूसरी ओर नगर पंचायत की कूड़ा उठाने वाली गाड़ियां बिना नंबर प्लेट के बेरोकटोक सड़कों पर दौड़ रही हैं।

यह स्थिति एक गहरा सवाल उठाती है: जब आम नागरिकों पर हर छोटी से छोटी गलती के लिए जुर्माने लगाए जाते हैं, तो फिर सरकारी एजेंसियों की जिम्मेदारी का क्या? नगर पंचायत परतावल की इन गाड़ियों के बिना नंबर प्लेट के चलने से न केवल यातायात नियमों का उल्लंघन हो रहा है, बल्कि जनता के बीच में यह संदेश जा रहा है कि सरकारी तंत्र अपने ही बनाए नियमों का पालन नहीं करता।

आम नागरिकों पर सख्ती

आम आदमी के लिए सड़क पर बिना नंबर प्लेट या हेलमेट के चलना अपराध के समान है। यातायात पुलिस और आरटीओ विभाग द्वारा सड़क सुरक्षा के नाम पर रोजाना हजारों लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाती है। इन एजेंसियों का दावा है कि वे जनता की सुरक्षा के लिए यह कदम उठाते हैं, और यह भी कि नियमों का उल्लंघन किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

यदि कोई व्यक्ति बिना नंबर प्लेट के गाड़ी चलाते हुए पकड़ा जाता है, तो उसे तुरंत भारी जुर्माना भरना पड़ता है। इसके साथ ही अगर वह बिना हेलमेट के है, तो यह अपराध और भी गंभीर माना जाता है। इन नियमों को सख्ती से लागू किया जाता है ताकि सड़क सुरक्षा सुनिश्चित हो सके, लेकिन क्या यही सख्ती सरकारी तंत्र पर भी लागू होती है?

परतावल नगर पंचायत का मामला

परतावल नगर पंचायत में बरसों से इस्तेमाल की जा रही कूड़ा उठाने वाली गाड़ियां बिना नंबर प्लेट के चल रही हैं। यह स्थिति न केवल यातायात नियमों का उल्लंघन है, बल्कि एक तरह से कानूनी प्रावधानों की अवहेलना भी है। चौंकाने वाली बात यह है कि इस मुद्दे पर न तो नगर पंचायत ने कोई ठोस कदम उठाया है और न ही आरटीओ या यातायात पुलिस ने इस पर ध्यान दिया है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि वे इस स्थिति से काफी समय से वाकिफ हैं, लेकिन उन्होंने कभी इसे लेकर कोई आधिकारिक शिकायत नहीं की। जब आरटीओ महाराजगंज से इस बारे में सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा कि इस मामले पर प्रेस कांफ्रेंस के माध्यम से जवाब दिया जाएगा। हालांकि, यह प्रतिक्रिया भी एक तरह से मामले को टालने जैसा प्रतीत हो रहा है। प्रेस कांफ्रेंस के माध्यम से जवाब देने की बजाय सीधी कार्यवाही करने की उम्मीद जनता को थी।

सरकारी तंत्र की उदासीनता

इस पूरे मामले में सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जहां आम नागरिकों को छोटी-छोटी बातों पर दंडित किया जाता है, वहीं सरकारी एजेंसियां अपने कर्तव्यों का पालन करने में चूक रही हैं। नगर पंचायत की गाड़ियां, जिनमें कूड़ा उठाने का कार्य किया जा रहा है, बिना नंबर प्लेट के लगातार सड़कों पर दौड़ रही हैं।

इस तरह की उदासीनता न केवल जनता में असंतोष बढ़ा रही है, बल्कि सरकारी तंत्र पर भी सवाल खड़े कर रही है। नियम-कानून का पालन सभी के लिए समान होना चाहिए, चाहे वह आम नागरिक हो या सरकारी विभाग। लेकिन परतावल नगर पंचायत का यह मामला यह दिखाता है कि नियमों का पालन केवल जनता पर लागू होता है, जबकि सरकारी तंत्र अपने ही बनाए नियमों को नजरअंदाज कर रहा है।

जिम्मेदार एजेंसियों की चुप्पी

यह स्थिति केवल परतावल नगर पंचायत तक सीमित नहीं है। ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं जहां सरकारी तंत्र अपनी जिम्मेदारियों से बचता नजर आता है। लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि आखिर कब तक इस तरह की अनदेखी चलती रहेगी? आरटीओ, यातायात पुलिस, और नगर पंचायत जैसी एजेंसियों का यह दायित्व है कि वे नियमों का पालन सुनिश्चित करें, लेकिन अगर वे खुद ही नियमों का उल्लंघन करेंगी, तो जनता को क्या संदेश जाएगा?

यह मामला हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या सरकारी तंत्र अपनी जिम्मेदारियों का सही ढंग से निर्वहन कर रहा है?