सोहागी बरवां वन्य जीव प्रभाग में इको-टूरिज्म का सपना टूटा

भ्रष्टाचार और अवैध कटान से वन्य जीवन और पर्यटन उद्योग पर संकट
महाराजगंज (उत्तर प्रदेश): सोहागी बरवां वन्य जीव प्रभाग, जो कभी इको-टूरिज्म का आदर्श केंद्र बनने का सपना देख रहा था, अब प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया है। सरकारी योजनाओं के तहत करोड़ों रुपये खर्च कर इको-टूरिज्म को बढ़ावा देने के प्रयास किए गए थे, लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों की लापरवाही ने इन योजनाओं को जमीनी स्तर पर असफल बना दिया है।
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सरकारी प्रयासों पर पानी फिरा
सोहागी बरवां वन्य जीव प्रभाग में पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए जंगल सफारी, कैम्पिंग, बर्ड-वॉचिंग और अन्य सुविधाएं विकसित की गईं। इन प्रयासों का उद्देश्य न केवल जैव-विविधता को संरक्षित करना था, बल्कि स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी बढ़ाना था। प्रभाग के रखरखाव और इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए हर वर्ष भारी राशि आवंटित की गई।

हालांकि, योजनाओं का सही क्रियान्वयन नहीं हो पाया। पर्यटकों के लिए आवश्यक बुनियादी सुविधाएं अधूरी पड़ी रहीं, और जो तैयार की गईं, वे रखरखाव के अभाव में जर्जर हो गईं। इसके चलते पर्यटक अब इस क्षेत्र में आने से परहेज कर रहे हैं, जिससे इको-टूरिज्म का सपना धराशायी हो गया है।
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भ्रष्टाचार और प्रशासनिक लापरवाही ने बिगाड़ी स्थिति
स्थानीय लोगों और पर्यावरणविदों का आरोप है कि भ्रष्ट अधिकारियों के कारण इको-टूरिज्म परियोजना बुरी तरह प्रभावित हुई है। कई सुविधाएं केवल कागजों पर दिखाई जा रही हैं, जबकि वास्तविकता में उनका कोई अस्तित्व नहीं है। पर्यटकों के ठहरने के लिए बनाए गए रेस्ट हाउस और सुविधाएं अब जर्जर हो चुकी हैं।

दरजानिया ताल जैसे महत्वपूर्ण स्थल, जो पर्यटकों के बीच खासा लोकप्रिय था, प्रशासनिक उपेक्षा के कारण अपनी पहचान खोता जा रहा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि वन विभाग द्वारा थोपी गई 50 रुपये की एंट्री फीस के कारण भी पर्यटकों का मोहभंग हुआ है।
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अवैध कटान से वन्य जीवों का जीवन संकट में
प्रभाग में भ्रष्टाचार के साथ-साथ जंगलों में अवैध कटान की घटनाएं भी तेजी से बढ़ी हैं। सोहागी बरवां के घने जंगल, जो कभी अपनी जैव-विविधता के लिए जाने जाते थे, अब अवैध गतिविधियों का केंद्र बनते जा रहे हैं। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और अवैध शिकार की बढ़ती घटनाओं ने वन्य जीवों का आवास बर्बाद कर दिया है।

स्थानीय पर्यावरणविदों ने चेतावनी दी है कि यदि जल्द ही अवैध कटान पर कड़ी कार्रवाई नहीं की गई, तो क्षेत्र का पारिस्थितिकी तंत्र पूरी तरह से नष्ट हो सकता है। इसके अलावा, इको-टूरिज्म से मिलने वाली संभावनाएं भी समाप्त हो जाएंगी।
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स्थानीय लोगों पर गहरा असर
पर्यटन उद्योग के ठप होने का सबसे ज्यादा असर स्थानीय समुदायों पर पड़ा है। जिन लोगों ने होटल, रेस्टोरेंट और गाइड सेवाओं के माध्यम से रोजगार तलाशा था, वे अब बेरोजगार हो गए हैं। महाराजगंज के चौक और उसके आसपास के क्षेत्रों में कई लोगों ने पर्यटन के लिए निवेश किया था, लेकिन इको-टूरिज्म की विफलता ने उनके सपनों को चकनाचूर कर दिया।
सोहागी बरवां वन्य जीव प्रभाग के शिवपुरी रेंज जैसे क्षेत्रों, जो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनाने का सपना अब धुमील हो पड़े हैं। पर्यटन के ठप होने से लोग अन्य शहरों में पलायन करने पर मजबूर हो गए हैं।
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समाधान की संभावनाएं और भविष्य की राह
पर्यावरणविदों और स्थानीय लोगों का मानना है कि स्थिति को सुधारने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है। सबसे पहले, जंगलों में अवैध कटान और शिकार पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। इको-टूरिज्म परियोजनाओं का नियमित ऑडिट होना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सरकारी धन का सही उपयोग हो रहा है।
इसके अलावा, स्थानीय समुदायों को पर्यटन और पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों में शामिल करना जरूरी है। यदि स्थानीय लोगों को रोजगार के बेहतर अवसर दिए जाएं और उन्हें इको-टूरिज्म प्रबंधन में भागीदार बनाया जाए, तो इससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हो सकेगा और वन्य जीवन की सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी।
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निष्कर्ष
सोहागी बरवां वन्य जीव प्रभाग में इको-टूरिज्म का सपना भ्रष्टाचार, लापरवाही और अवैध कटान के कारण बर्बाद हो गया है। पर्यटकों के आकर्षण में गिरावट और वन्य जीवों के आवास के नष्ट होने से क्षेत्र का भविष्य अधर में लटक गया है।
आवश्यक है कि जिम्मेदार अधिकारी अपनी जिम्मेदारियों को गंभीरता से लें और समय रहते सुधारात्मक कदम उठाएं। यदि जल्द ही प्रभावी कार्यवाही नहीं की गई, तो न केवल पर्यटन उद्योग पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा, बल्कि वन्य जीवन भी हमेशा के लिए खत्म हो सकता है।
सरकार और स्थानीय प्रशासन को मिलकर पर्यावरण संरक्षण और पर्यटन विकास के बीच संतुलन स्थापित करना होगा, ताकि न केवल क्षेत्र का प्राकृतिक सौंदर्य बचा रहे, बल्कि स्थानीय समुदायों का भविष्य भी सुरक्षित हो सके।