महराजगंज में मनरेगा घोटाले का पर्दाफाश: फर्जी उपस्थिति और योजनाओं में भारी अनियमितताएं

महराजगंज में मनरेगा घोटाले का पर्दाफाश: फर्जी उपस्थिति और योजनाओं में भारी अनियमितताएं

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बगापार पंचायत में श्रमिकों की फर्जी उपस्थिति, मनरेगा फंड के दुरुपयोग पर सवाल 

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उत्तर प्रदेश के महराजगंज जिले में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत चल रहे विकास कार्यों में बड़े पैमाने पर अनियमितताओं का खुलासा हुआ है। महराजगंज सदर ब्लॉक का ग्राम पंचायत बगापार में चकबंद कार्य में फर्जी मस्टर रोल, कम श्रमिकों की वास्तविक उपस्थिति, और सरकारी फंड का दुरुपयोग गंभीर चिंता का विषय बन गए हैं।

फर्जी मस्टर रोल का मामला

जांच में यह सामने आया कि ग्राम पंचायत बगापार में चकबंद कार्य और खेल मैदान निर्माण कार्यों में भारी फर्जीवाड़ा हुआ है। 18 नवंबर 2024 को कार्यस्थल पर जहां केवल 25 श्रमिक काम करते पाए गए, वहीं मस्टर रोल में 78 श्रमिकों की उपस्थिति दर्ज की गई। इसके अगले दिन, 19 नवंबर को, तीन अलग-अलग स्थानों पर 12 मस्टर रोल के तहत कुल 100 श्रमिक दिखाए गए, जबकि मौके पर केवल 15-16 लोग काम करते हुए नजर आए।

कैसे हुआ फर्जीवाड़ा ?

इस पूरे मामले में रोजगार सेवक मनोज गौतम और उनके भाई उमेश गौतम की भूमिका संदिग्ध है। रोजगार सेवक मनोज गौतम लंबे समय से बीमार हैं और उनके कार्यों को उनका भाई उमेश गौतम संभाल रहा है। उमेश गौतम मनरेगा कार्यों के संचालन में मनमानी कर रहे हैं। उन्होंने मस्टर रोल में फर्जी आंकड़े भरकर सरकारी धन का दुरुपयोग किया।

मुख्य बिंदु:

1. फर्जी उपस्थिति:

श्रमिकों की वास्तविक संख्या और मस्टर रोल में दर्ज उपस्थिति में बड़ा अंतर।

18 नवंबर को 78 श्रमिक दिखाए गए, जबकि केवल 25 काम कर रहे थे।

19 नवंबर को 100 श्रमिक दर्ज किए गए, लेकिन मौके पर 15-16 श्रमिक ही थे।

 

2. फर्जी फोटो अपलोड:

श्रमिकों की उपस्थिति दर्ज करने के लिए NMMS (नेशनल मोबाइल मॉनिटरिंग सिस्टम) ऐप का इस्तेमाल किया गया।

हालांकि, ऐप पर अपलोड की गई तस्वीरें वास्तविक कार्य स्थल की स्थिति से मेल नहीं खातीं।

उदाहरण के लिए,  चकबंद कार्य में लगे अटेंडेंस और अपलोड फोटो में मात्र 14-15 लोग हैं जो बड़ा अंतर  मैदान पर खड़े श्रमिकों की तस्वीरें अपलोड की गईं।

 

3. मनरेगा फंड का दुरुपयोग:

वास्तविक कार्य और मस्टर रोल के बीच अंतर से स्पष्ट है कि सरकारी फंड का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग हुआ।

 

स्थानीय निवासियों का आरोप

ग्राम पंचायत के निवासियों ने इस मामले को लेकर प्रशासन के खिलाफ आक्रोश जताया है। ग्रामीणों का कहना है कि मनरेगा के तहत रोजगार के बजाय कागजी कार्यवाही और फर्जीवाड़ा हो रहा है।

गांव के निवासी राम सेवक ने कहा, “हमारा नाम मस्टर रोल में है, लेकिन हमें काम नहीं दिया गया। जो लोग काम करते हैं, उन्हें भी समय पर भुगतान नहीं मिलता।”

गीता देवी ने कहा, “सरकार की योजना तो अच्छी है, लेकिन अधिकारी और कर्मचारी इसे खराब कर रहे हैं।”

प्रशासन की भूमिका पर सवाल

ग्रामीणों का कहना है कि रोजगार सेवक और स्थानीय अधिकारियों की मिलीभगत से यह घोटाला लंबे समय से चल रहा है। स्थानीय प्रशासन इस पर कोई कार्रवाई करने में नाकाम रहा है।

एक ग्रामीण नेता ने कहा, “अगर इस घोटाले की जांच ठीक से की जाए, तो बड़े अधिकारियों की संलिप्तता भी उजागर होगी।”

मनरेगा का उद्देश्य और वास्तविकता

मनरेगा का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर प्रदान करना और बुनियादी ढांचे का विकास करना है। लेकिन महराजगंज के इन मामलों में यह योजना अपने उद्देश्य से भटक गई है।

योजना के तहत अपेक्षाएं:

श्रमिकों को समय पर मजदूरी का भुगतान।

कार्यस्थल पर पारदर्शिता और निगरानी।

स्थानीय विकास कार्यों को गति देना।

वास्तविक स्थिति:

श्रमिकों को रोजगार नहीं मिल रहा।

फर्जी मस्टर रोल के जरिए सरकारी धन का दुरुपयोग।

कार्यस्थल पर पारदर्शिता और निगरानी की कमी।

क्या कहता है कानून?

मनरेगा अधिनियम के तहत फर्जी मस्टर रोल तैयार करना और सरकारी धन का दुरुपयोग गंभीर अपराध है। इसके लिए दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का प्रावधान है।

घोटाले के दुष्परिणाम

1. वास्तविक श्रमिकों को नुकसान:

फर्जी मस्टर रोल के कारण असली श्रमिकों को काम और मजदूरी नहीं मिल पा रही।

 

2. विकास कार्य ठप:

योजनाओं में अनियमितताओं के कारण विकास कार्य बाधित हो रहे हैं।

 

3. योजनाओं पर प्रश्नचिह्न:

ऐसे मामलों से मनरेगा जैसी महत्वाकांक्षी योजना की साख पर सवाल उठ रहे हैं।

 

ग्रामीणों की मांग

ग्राम वासियों ने इस मामले की उच्च स्तरीय जांच और दोषियों पर कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने कहा कि जब तक भ्रष्टाचारियों पर सख्त कार्रवाई नहीं होगी, तब तक इस योजना का लाभ आम जनता तक नहीं पहुंचेगा।

 

महराजगंज जिले में मनरेगा के तहत चल रहे कार्यों में हुए फर्जीवाड़े ने इस योजना की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। शासन-प्रशासन को इस मामले में त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई जा सके और ग्रामीणों को रोजगार का लाभ मिल सके।

ग्रामीणों का कहना है कि अगर प्रशासन ने इस मामले में सख्ती नहीं दिखाई, तो वे बड़े आंदोलन का सहारा लेंगे। मनरेगा जैसी योजना को बचाने और इसे सही मायने में लागू करने के लिए शासन की जवाबदेही तय करना अनिवार्य है।