महराजगंज में जमे हैं वर्षों से सेक्रेटरी: शासनादेश के बाद भी नहीं हो रहे तबादले

महराजगंज में जमे हैं वर्षों से सेक्रेटरी: शासनादेश के बाद भी नहीं हो रहे तबादले

स्थानांतरण नीति के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद जनपद के कई सचिव वर्षों से एक ही ब्लॉक में जमे हैं, सवालों के घेरे में प्रशासनिक निष्क्रियता

महराजगंज, उत्तर प्रदेश – उत्तर प्रदेश शासन द्वारा दिनांक 06 मई, 2025 को जारी किए गए स्थानांतरण नीति के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद जनपद महाराजगंज में वर्षों से एक ही स्थान पर तैनात ब्लॉक सेक्रेटरी अभी भी अपनी कुर्सियों से चिपके हुए हैं। जनपद के 12 ब्लॉकों में ऐसे कई सचिव हैं, जो 3 वर्ष तो छोड़िए, 20 से 25 वर्षों से एक ही ब्लॉक में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। शासन के निर्देशों की खुलेआम अनदेखी करते हुए जिले के उच्च अधिकारी भी इनका स्थानांतरण करने से बचते नजर आ रहे हैं।

Oplus_131072

स्थानांतरण नीति 2025-26 के अनुसार, समूह ‘क’ और ‘ख’ के अधिकारियों को अधिकतम 3 वर्षों से अधिक एक जनपद में और 7 वर्षों से अधिक एक मंडल में नहीं रखा जा सकता। वहीं समूह ‘ग’ और ‘घ’ के कर्मचारियों के लिए भी अधिकतम 10 प्रतिशत स्थानांतरण अनिवार्य किया गया है। इसके बावजूद जनपद महाराजगंज के निचलौल ब्लॉक में तैनात मनोज प्रजापति नामक सेक्रेटरी पिछले 24 से 25 वर्षों से लगातार उसी स्थान पर पदस्थ हैं।

Oplus_131072

केवल मनोज प्रजापति ही नहीं, बल्कि फिरोज आलम, बैकटेस्वर पटेल और रामकिशोर वर्मा जैसे अन्य सेक्रेटरी भी अपने तीन वर्ष से अधिक के कार्यकाल को पार कर चुके हैं, फिर भी उनके स्थानांतरण की कोई प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है। यह स्थिति प्रशासनिक उदासीनता को दर्शाती है और नीति के लागू होने पर गंभीर सवाल खड़े करती है।

Oplus_131072

सूत्रों के अनुसार, कुछ सेक्रेटरी ब्लॉक प्रमुखों के इतने करीबी बन चुके हैं कि उनका स्थानांतरण करवाना लगभग असंभव सा हो गया है। यह नजदीकी कई बार ब्लॉक प्रमुखों के निजी कार्यों और योजनाओं के लेखा-जोखा से जुड़ी गोपनीय जानकारी को अपने नियंत्रण में रखने का भी माध्यम बन चुकी है। परिणामस्वरूप, कई बार विकास योजनाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही पर भी प्रश्नचिह्न लग जाते हैं।

Oplus_131072

उत्तर प्रदेश सरकार की नई स्थानांतरण नीति का मुख्य उद्देश्य पारदर्शिता, जवाबदेही और प्रशासनिक निष्पक्षता को सुनिश्चित करना है। लेकिन जब अधिकारी ही नियमों की अनदेखी करें और स्थानांतरण जैसे सामान्य प्रशासनिक कदम को भी सत्ता की नजदीकियों के आधार पर नियंत्रित किया जाने लगे, तो इसका असर सीधा आम जनता की योजनाओं और सेवाओं पर पड़ता है।

Oplus_131072

स्थानांतरण नीति के उल्लंघन को नियम-27 के अंतर्गत अनुशासनहीनता माना गया है। बावजूद इसके, जनपद में न तो कोई कार्रवाई हुई, न ही किसी अधिकारी को कारण बताओ नोटिस भेजा गया। इससे साफ प्रतीत होता है कि नीति का अनुपालन सिर्फ कागजों तक सीमित है।

Oplus_131072

अब सवाल उठता है कि जब शासनादेश में मुख्यमंत्री को यह विशेषाधिकार प्राप्त है कि वे जनहित में किसी भी कार्मिक का स्थानांतरण कर सकते हैं, तो फिर ऐसे मामलों में मुख्यमंत्री कार्यालय को स्वतः संज्ञान लेना चाहिए। क्या मुख्यमंत्री कार्यालय तक यह शिकायतें नहीं पहुंच रहीं? या फिर स्थानीय प्रशासनिक तंत्र ही इतना मजबूत है कि वह स्थानांतरण जैसी नीति को भी निष्क्रिय बना देता है?

जनपद की आम जनता और ईमानदार कर्मचारियों में इस मुद्दे को लेकर भारी असंतोष है। लोगों का मानना है कि जब एक स्थान पर वर्षों तक कोई कर्मचारी जमा रहता है, तो वहां की कार्यप्रणाली में निष्पक्षता की जगह व्यक्तिगत समीकरण हावी हो जाते हैं, जिससे भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद को बल मिलता है।

अब देखना यह होगा कि शासन स्तर से इस गंभीर प्रशासनिक चूक पर क्या संज्ञान लिया जाता है। क्या वर्षों से जमे इन अधिकारियों का स्थानांतरण होगा? या फिर शासनादेश केवल फाइलों और बैठकों तक सीमित रह जाएगा? जनता उत्तर की प्रतीक्षा कर रही है।

error: Content is protected !!