जहदा ताल भूमि घोटाला: 600 प्लॉट खरीदारों से 50 से 55 करोड़ रुपए वसूले, न कब्ज़ा मिला न ज़मीन – तिरुपति गैलेक्सी का काला खेल बेनक़ाब

जहदा ताल भूमि घोटाला: 600 प्लॉट खरीदारों से 50 से 55 करोड़ रुपए वसूले, न कब्ज़ा मिला न ज़मीन – तिरुपति गैलेक्सी का काला खेल बेनक़ाब

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गोरखपुर के सदर तहसील क्षेत्र में हुआ अब तक का सबसे बड़ा भूमि घोटाला, गरीब और मध्यम वर्गीय परिवार बने शिकार

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गोरखपुर।
मौजा लालजहदा, टोपा मोराची, चंडोर, परगना हवेली, तहसील सदर की लगभग 33 एकड़ भूमि पर किए गए अवैध सौदों ने जिले में भू-माफियाओं और उनके संरक्षण में फलते-फूलते प्लॉटिंग कारोबार की हकीकत को उजागर कर दिया है। लगभग 600 प्लॉट खरीदारों से 50 से 55 करोड़ रुपये की मोटी रकम वसूली गई, लेकिन आज तक किसी को भी न तो जमीन पर कब्ज़ा मिला और न ही कोई वैध कागजात।

खास बात यह है कि यह पूरा खेल तिरुपति गैलेक्सी नाम से संचालित हो रहा था, जिसका संचालन श्रीमती निर्मला देवी पत्नी अविनाश चौरसिया द्वारा किया गया। बताया जाता है कि यह गोरखपुर में फल-फूल रहे भू-माफियाओं के नेटवर्क का एक बड़ा हिस्सा है।

 

कृषि भूमि खरीदी, आवासीय बनाकर बेची

इस घोटाले का सबसे खतरनाक पहलू यह है कि जमीन को पहले कृषि भूमि (Agriculture Land) के रूप में खरीदा गया।

तुरन्त उसी जमीन को आवासीय भूखंड (Residential Plot) बनाकर बेच दिया गया।

इसके बाद फिर दूसरी जमीन कृषि भूमि के रूप में खरीदी गई और पुनः आवासीय बताकर बेच दी गई।

यह क्रम लगातार चलता रहा और देखते ही देखते लगभग 33 एकड़ भूमि इसी तरह के हेरफेर से बेची गई।

इस तरह से स्टाम्प शुल्क में भी करोड़ों रुपये की चोरी की गई, क्योंकि कृषि भूमि की रजिस्ट्री पर स्टाम्प ड्यूटी बहुत कम लगती है, जबकि आवासीय भूखंड की बिक्री पर अधिक शुल्क वसूल होता है।

लगभग 600 खरीदारों से वसूले करोड़ो

तिरुपति गैलेक्सी द्वारा की गई इस फर्जीवाड़े का शिकार हुए लगभग 600 भूखंड खरीदार।

इनमें अधिकांश मध्यमवर्गीय परिवार और गरीब लोग हैं, जिन्होंने अपनी जीवनभर की कमाई जोड़कर एक छत का सपना देखा था।

इन खरीदारों से 50 से 55 करोड़ रुपये तक वसूले गए।

लेकिन आज तक किसी को कब्ज़ा नहीं दिया गया।

पीड़ित खरीदार बताते हैं कि जब भी वे प्लॉट की मांग करते हैं, तो उन्हें ऑफिस के चक्कर लगवाए जाते हैं, और यदि ज्यादा दबाव डालते हैं तो उन्हें धमकियां दी जाती हैं।

 

बिना लेआउट, बिना प्राधिकरण अनुमति की प्लॉटिंग

यह पूरा प्रकरण पूरी तरह से अवैध है।

न तो इस प्लॉटिंग का कोई लेआउट गोरखपुर विकास प्राधिकरण (GDA) से पास कराया गया।

न ही किसी सक्षम अधिकारी को सूचना दी गई।

यही कारण है कि जब भी इस भूमि पर निर्माण की कोशिश हुई, गोरखपुर विकास प्राधिकरण का बुलडोज़र मौके पर पहुँच गया और निर्माण ध्वस्त कर दिया गया।

इससे यह साबित हो गया कि संबंधित जमीन पर कोई भी निर्माण कार्य पूरी तरह अवैध है और खरीदारों को कभी भी वैध कब्ज़ा नहीं दिया जा सकता।

 

अनुसूचित जाति और तालाब की भूमि पर भी कब्ज़ा

इस घोटाले का एक और गंभीर पहलू यह है कि जिस 33 एकड़ भूमि पर रजिस्ट्री हुई है, उसमें—

लगभग 70% भूमि अनुसूचित जाति (SC) काश्तकारों की थी।

कानून के मुताबिक, अनुसूचित जाति की भूमि बिना सक्षम प्राधिकारी की अनुमति के बेची ही नहीं जा सकती, लेकिन इस मामले में बिना अनुमति के रजिस्ट्री करा ली गई।

इतना ही नहीं, लगभग 35 से 40% भूमि तालाब (Pal/ताल) घोषित है।

इसके बावजूद इस तालाब की जमीन को भी प्लॉटिंग में शामिल कर दिया गया और लगभग 300 खरीदारों को बेच दिया गया।

असल में, तालाब की भूमि सरकारी संपत्ति होती है और इस पर किसी भी तरह का कब्ज़ा या विक्रय पूरी तरह गैरकानूनी है।

 

प्रशासनिक लापरवाही या मिलीभगत?

सबसे बड़ा सवाल यह है कि इतनी बड़ी हेराफेरी बिना प्रशासनिक मिलीभगत के संभव ही नहीं।

स्टाम्प विभाग को कैसे पता नहीं चला कि बार-बार कृषि भूमि खरीदकर तुरन्त आवासीय भूमि के रूप में बेची जा रही है?

रजिस्ट्री कार्यालय में अधिकारियों ने कैसे अनुसूचित जाति की भूमि बिना अनुमति के रजिस्ट्री कर दी?

तालाब और सरकारी भूमि को प्लॉटिंग में शामिल करने पर राजस्व विभाग क्यों चुप रहा?

इन सवालों का जवाब प्रशासन को देना होगा।

पीड़ितों की पुकार – न्याय कब मिलेगा?

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लगभग 600 खरीदार आज भी न्याय की उम्मीद में दर-दर भटक रहे हैं।
उनका कहना है कि:

> “हमने अपनी ज़िंदगी की पूँजी लगाई थी, अब घर के बजाय धोखा मिला है। न प्लॉट मिला, न पैसा वापिस हो रहा है। ऊपर से धमकियाँ दी जा रही हैं।”

 

खरीदारों का यह भी कहना है कि यदि जल्द ही जांच और कार्यवाही नहीं हुई तो वे सामूहिक आंदोलन करने को बाध्य होंगे।

प्रमुख आरोपी और सोसाइटी का नाम सामने आया

इस पूरे घोटाले की जड़ क्रेता KDS एसोसिएट जरिए प्रोपराइटर श्रीमती निर्मला देवी पत्नी अविनाश चौरसिया, निवासी डी – 196 परमेश्वर निवास, बसारतपुर, पूर्वी शिवपुरम, निकट चतुर्वेदी हास्पिटल तहसील सदर ,जनपद गोरखपुर हैं।
इसी नाम से खरीदी गई लगभग 33 एकड़ भूमि

आज यह नाम गोरखपुर में अवैध प्लॉटिंग और जनता से ठगी के प्रतीक के रूप में चर्चा में है।

 

जांच और कार्यवाही की मांग

इस मामले में जरूरी है कि—

1. जिलाधिकारी गोरखपुर उच्चस्तरीय जांच कराएँ।

2. आर्थिक अपराध शाखा (EOW) से धोखाधड़ी और करोड़ों रुपये की वसूली की जांच हो।

3. स्टाम्प शुल्क चोरी का आकलन कर, दोषियों से राजस्व की भरपाई कराई जाए।

4. 600 पीड़ित खरीदारों को प्लॉट या धनवापसी सुनिश्चित की जाए।

5. दोषियों पर IPC 420 (धोखाधड़ी), 467/468/471 (फर्जी दस्तावेज), 406 (आपराधिक विश्वासघात), स्टाम्प एक्ट और राजस्व संहिता के तहत मुकदमा दर्ज हो।

मौजा जहदा ताल का यह घोटाला गोरखपुर ही नहीं बल्कि पूरे पूर्वांचल का सबसे बड़ा भूमि घोटाला माना जा रहा है। यह मामला न केवल 600 परिवारों की जिंदगी से जुड़ा है, बल्कि शासन को करोड़ों रुपये के राजस्व नुकसान और प्रशासनिक तंत्र की मिलीभगत पर भी बड़ा सवाल खड़ा करता है।

जब तक इस पर निष्पक्ष जांच और कठोर कार्यवाही नहीं होती, तब तक पीड़ितों को न्याय मिलना कठिन है।

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