मनरेगा घोटाले में सिर्फ सचिव पर गिरी गाज, प्रधामनरेगान व अफसर बचते क्यों नजर आ रहे?

मनरेगा घोटाले में सिर्फ सचिव पर गिरी गाज, प्रधान व अफसर बचते क्यों नजर आ रहे?

लोकायुक्त को भेजी गई शिकायत में सतर्कता जांच की मांग, महराजगंज जिले के जोगिया ग्राम पंचायत का मामला

लखनऊ/महराजगंज।
उत्तर प्रदेश के महराजगंज जिले में मनरेगा योजनांतर्गत हुए बड़े घोटाले का मामला तूल पकड़ चुका है। आरोप है कि ग्राम पंचायत जोगिया में वर्ष 2020-21 के दौरान बिना कार्य कराए ही लाखों रुपये की धनराशि निकाल ली गई। अब यह मामला लोकायुक्त प्रशासन तक पहुँच गया है और जिम्मेदार अफसरों पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

शिकायतकर्ता उमेश प्रसाद ने परिवाद संख्या 1336/2023/04/8023 के तहत दायर अपनी याचिका में बताया है कि ग्राम पंचायत जोगिया में बाउंड्रीवाल निर्माण के लिए 4.76 लाख रुपये तथा टैक्सी स्टैण्ड पुल से मुन्ना पांडे के खेत तक नाला निर्माण कार्य दिखाकर 3.88 लाख रुपये का भुगतान कर दिया गया, जबकि जमीनी स्तर पर कोई कार्य ही नहीं हुआ।

इस प्रकरण की जांच गोरखपुर मंडल आयुक्त की अध्यक्षता वाली त्रिस्तरीय कमेटी ने की थी। जांच में शिकायतें सही पाई गईं और यह स्पष्ट हुआ कि स्वीकृत धनराशि का दुरुपयोग किया गया। जांच रिपोर्ट के आधार पर उपायुक्त (श्रम एवं रोजगार) महराजगंज गौरव सिंह ने तत्कालीन ग्राम पंचायत सचिव फिरोज आलम को निलंबित कर दिया।

लेकिन शिकायतकर्ता का आरोप है कि कार्रवाई केवल सचिव तक सीमित रखकर ग्राम प्रधान व अन्य दोषियों को बचाया जा रहा है। उनका कहना है कि मनरेगा एक्ट 2009 के अनुसार गबन या अपवंचन की स्थिति में दोषियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ब्याज सहित धन की वसूली अनिवार्य है। बावजूद इसके, न तो एफआईआर दर्ज की गई और न ही धन की वसूली सुनिश्चित की गई।

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सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर इस घोटाले में ग्राम प्रधान, वीडीओ, डीसी मनरेगा, सीडीओ और यहां तक कि जिलाधिकारी तक की जवाबदेही क्यों तय नहीं की गई। शिकायतकर्ता का कहना है कि सिर्फ सचिव को बलि का बकरा बनाकर जिम्मेदार अफसरों को बचाया जा रहा है।

लोकायुक्त को भेजी गई शिकायत में पूरे प्रकरण की स्वतंत्र सतर्कता जांच की मांग की गई है। साथ ही सचिव फिरोज आलम के निलंबन आदेश की प्रति भी संलग्न की गई है। अब देखना यह होगा कि लोकायुक्त इस गंभीर प्रकरण में क्या रुख अपनाते हैं।

पर्दाफाश न्यूज़ 24×7 पूछता है—

आखिर ग्राम प्रधान क्यों बचाए जा रहे हैं?

वीडीओ और डीसी मनरेगा की जिम्मेदारी क्यों तय नहीं की गई?

सीडीओ और डीएम की भूमिका पर चुप्पी क्यों है?

गबन की गई रकम की वसूली कब होगी और दोषियों पर एफआईआर कब दर्ज होगी?

जनता का सवाल साफ है— क्या इस घोटाले में असली गुनहगारों पर कार्रवाई होगी या मामला सिर्फ सचिव तक ही सीमित रह जाएगा?

फिलहाल सूत्रों की मानें तो उपरोक्त प्रकरण को लोकायुक्त महोदय ने सी बी आई को सौंप दिया है 

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