नारंग संस्कृत महाविद्यालय के वेतन विवाद में हाई कोर्ट का अहम फैसला, जिला विद्यालय निरीक्षक का आदेश निरस्त

नारंग संस्कृत महाविद्यालय के वेतन विवाद में हाई कोर्ट का अहम फैसला, जिला विद्यालय निरीक्षक का आदेश निरस्त

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प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन, महाविद्यालय के संचालन में अनियमितताओं पर कसा शिकंजा

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इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 25 सितंबर 2024 को नारंग संस्कृत महाविद्यालय, घुघली से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में फैसला सुनाया, जिसमें जिला विद्यालय निरीक्षक (डीआईओएस) महाराजगंज द्वारा 1 फरवरी 2024 को जारी एकल संचालन के आदेश को अवैध ठहराते हुए रद्द कर दिया गया। यह आदेश महाविद्यालय के प्रबंधन और वेतन विवाद से जुड़ा था, जिसके तहत महाविद्यालय के संचालन में अनियमितताओं का आरोप लगा था। न्यायालय ने डीआईओएस के आदेश को “प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन” और “अधिकारों के दुरुपयोग” की संज्ञा दी, जिससे शिक्षा विभाग में हलचल मच गई है।

विवादों में घिरा महाविद्यालय

नारंग संस्कृत महाविद्यालय वर्षों से विवादों का केंद्र बना हुआ है। महाविद्यालय में फर्जी नियुक्तियों, नकली मार्कशीटों और प्रबंधन से जुड़ी धोखाधड़ियों के कई आरोप लग चुके हैं। इस महाविद्यालय का नाम अक्सर ऐसी घटनाओं से जुड़ता रहा है जो संस्थान की साख पर सवाल खड़े करती हैं। हालिया विवाद उस समय उभरा जब राममूर्ति पाण्डेय ने महाविद्यालय के प्रबंधक पद पर अपना दावा ठोंका। उन पर आरोप है कि उन्होंने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर खुद को महाविद्यालय का प्रबंधक नियुक्त कराने की कोशिश की।

महाविद्यालय के उपाध्यक्ष रमेश वासिल ने 9 अगस्त 2024 को घुघली थाने में राममूर्ति पाण्डेय के खिलाफ एक मुकदमा दर्ज कराया, जिसमें उन पर गंभीर धोखाधड़ी के आरोप लगाए गए। अपराध संख्या 312/2024 के तहत IPC की धाराओं 419, 420, 467, 468 के तहत पाण्डेय पर मुकदमा पंजीकृत हुआ। मामला कोर्ट में पहुँचा, और शिक्षा विभाग पर भी इसकी गाज गिरी।

हाई कोर्ट ने दिया न्याय का पक्ष

न्यायमूर्ति मनीष कुमार की अध्यक्षता में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई की और डीआईओएस के आदेश को अवैध करार दिया। अदालत ने कहा कि जिला विद्यालय निरीक्षक ने अपने अधिकारों से बाहर जाकर आदेश जारी किया था, जिससे महाविद्यालय में अनियमितताओं को बढ़ावा मिला। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि इस प्रकार के आदेश ‘प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों’ के विरुद्ध हैं और इसके परिणामस्वरूप महाविद्यालय में और भी अधिक गड़बड़ियां हुईं।

पुराने विवादों का इतिहास

नारंग संस्कृत महाविद्यालय का विवादों से पुराना नाता है। 2018 में भी यह महाविद्यालय फर्जी नियुक्तियों के मामले में चर्चाओं में आया था, जब तत्कालीन प्रबंधक चंद्रशेखर पाण्डेय के खिलाफ कोतवाली थाने में FIR दर्ज की गई थी। इस मामले में एफआईआर संख्या 0751/2018 दर्ज की गई थी और चंद्रशेखर पाण्डेय को जेल भी जाना पड़ा था। उनकी मृत्यु के बाद महाविद्यालय के उप प्रबंधक योगेंद्र तिवारी को महाविद्यालय का संचालन सौंपा गया था, जो हालिया विवाद का भी प्रमुख बिंदु बना।

राममूर्ति पाण्डेय पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने अपने भाई चंद्रशेखर पाण्डेय की मृत्यु के बाद महाविद्यालय के दस्तावेजों की अनधिकृत कॉपी बनाकर खुद को प्रबंधक के पद पर लाने की कोशिश की। डीआईओएस द्वारा जारी आदेश ने इन अनियमितताओं को और बढ़ावा दिया, जिसे न्यायालय ने अब खारिज कर दिया है।

शिक्षा विभाग में हड़कंप

हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद महाविद्यालय का संचालन पुनः उप प्रबंधक योगेंद्र तिवारी के हाथों में सौंप दिया गया है। इस फैसले के बाद शिक्षा विभाग के उच्चाधिकारियों में हड़कंप मच गया है। सवाल उठ रहे हैं कि जिला विद्यालय निरीक्षक ने आखिर किस दबाव या प्रभाव में आकर ऐसा विवादास्पद आदेश जारी किया। डीआईओएस ने योगेंद्र तिवारी के आवेदन पर विचार क्यों नहीं किया, यह भी एक बड़ा प्रश्न है।

आगे की राह

अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि इस फैसले के बाद शिक्षा विभाग और प्रशासन इस मामले पर क्या कदम उठाते हैं। नारंग संस्कृत महाविद्यालय में हो रही अनियमितताओं पर कड़ा शिकंजा कसना शिक्षा विभाग के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। यह भी देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह फैसला महाविद्यालय को विवादों से मुक्त कर पाएगा, या फिर यह महाविद्यालय भविष्य में भी विवादों का केंद्र बना रहेगा।

इस फैसले ने न्याय और पारदर्शिता के पक्ष में एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है, जिससे भविष्य में शिक्षा संस्थानों में हो रही अनियमितताओं पर रोक लगने की उम्मीद की जा रही है।