लक्ष्मीपुर एकदंगा में परफार्मेंस ग्रांट घोटाला उजागर: हाईमास्क लाइट के नाम पर हुआ भ्रष्टाचार का खेल

लक्ष्मीपुर एकदंगा में परफार्मेंस ग्रांट घोटाला उजागर: हाईमास्क लाइट के नाम पर हुआ भ्रष्टाचार का खेल

जिला पंचायत राज अधिकारी का नोटिस हुआ जारी, सेक्रेटरी पवन कुमार गुप्ता पर फर्जी हस्ताक्षर और निविदा घोटाले का आरोप; कार्रवाई की चेतावनी के बावजूद मामले में अब तक चुप्पी

 

महराजगंज जिले की ग्राम पंचायत लक्ष्मीपुर एकदंगा में परफार्मेंस ग्रांट के तहत हुए हाईमास्क लाइट स्थापना कार्य को लेकर बड़ा घोटाला सामने आया है। इस मामले में जिला पंचायत राज अधिकारी श्रेया मिश्रा ने ग्राम पंचायत अधिकारी पवन कुमार गुप्ता को गंभीर अनियमितताओं के आरोप में नोटिस जारी किया है।

जारी पत्र के अनुसार, ग्राम पंचायत में कुल 30 हाईमास्क लाइटों की स्थापना के लिए ₹36.37 लाख की कार्ययोजना स्वीकृत की गई थी। इस कार्य की निविदा पहले ही पूरी होकर मेसर्स शुभ नारायण सिंह कन्स्ट्रक्शन को आवंटित की जा चुकी थी। इसके बावजूद सेक्रेटरी पवन कुमार गुप्ता द्वारा 11 जुलाई 2025 को एक दैनिक समाचार पत्र में नई निविदा प्रकाशित कर दी गई।

अधिकारियों के अनुसार, जब उनसे फोन पर स्पष्टीकरण मांगा गया, तो उन्होंने यह तर्क दिया कि पूर्व फर्म ने कार्य करने से इंकार कर दिया था। लेकिन जब संबंधित पत्रावली मांगी गई, तो उन्होंने 8 अगस्त 2025 तक कोई भी दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया। इससे यह संदेह और गहरा गया कि कहीं फर्म के फर्जी हस्ताक्षर करके पत्रावली में जाली दस्तावेज न रख दिए गए हों।

पत्र में स्पष्ट चेतावनी दी गई है कि यदि सेक्रेटरी पवन कुमार गुप्ता तत्काल सभी संबंधित दस्तावेज प्रस्तुत नहीं करते हैं, तो उन्हें निलंबित किया जाएगा और उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाएगी।

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सूत्रों के अनुसार, लक्ष्मीपुर एकदंगा पंचायत में केवल हाईमास्क लाइट ही नहीं, बल्कि कई अन्य कार्यों में भी जमीन पर काम किए बिना भुगतान कर दिए जाने की शिकायतें सामने आई हैं। ग्रामीणों का कहना है कि ग्राम पंचायत अधिकारी और ठेकेदारों के बीच कमीशनखोरी और मैनेजमेंट का खेल लंबे समय से चल रहा है, जिसकी वजह से किसी भी शिकायत पर ठोस कार्रवाई नहीं होती।

हालांकि इस नोटिस के बाद पूरे क्षेत्र में हड़कंप मचा हुआ है, लेकिन सेक्रेटरी पवन कुमार गुप्ता ने अब तक कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि “सेटिंग” नहीं हुई, तो निविदा किसी दूसरी फर्म को सौंपने की प्रक्रिया अपनाई जा सकती है।

यह मामला न सिर्फ ग्राम पंचायत प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल खड़े करता है, बल्कि इस बात का भी उदाहरण है कि किस तरह सरकारी योजनाओं के धन का बंदरबांट “पेपर पर” कर लिया जाता है। अब देखना यह होगा कि जिला प्रशासन इस पर वास्तविक कार्रवाई करता है या मामला फिर से “फाइलों में दबा” रह जाएगा।

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