सिंचाई विभाग की लापरवाही: अतिक्रमण, टूटी पुलिया और किसानों की दुर्दशा

सिंचाई विभाग की लापरवाही: अतिक्रमण, टूटी पुलिया और किसानों की दुर्दशा

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सिसवा विकास खंड के करमही गांव में सिंचाई विभाग की खामियां उजागर, जनहित के मुद्दे उपेक्षित

सिसवा विकास खंड स्थित करमही गांव में सिंचाई विभाग की गंभीर लापरवाही और जिम्मेदार अधिकारियों की उदासीनता एक बार फिर सामने आई है। गांव में स्थित सिंचाई माइनर की दशा दयनीय है। माइनर पर बना पुलिया, जो सड़क निर्माण के बीच दुर्घटनाओं का केंद्र बन चुका है, आज भी टूटी रेलिंग और अव्यवस्थित संरचना के कारण दुर्घटनाओं को न्योता दे रहा है।

माइनर पर टूटी पुलिया, ठेकेदार ने उठाया अस्थायी कदम

सड़क निर्माण कार्य के तहत पुलिया की रेलिंग के क्षतिग्रस्त होने से वहां आए दिन दुर्घटनाएं हो रही हैं। सड़क निर्माण करने वाले ठेकेदार के सुपरवाइजर ने लोगों की सुरक्षा के लिए टूटी रेलिंग पर मिट्टी के बोरे और बांस-बल्ली लगाकर अस्थायी इंतजाम किया है। हालांकि यह कदम जनहित में उठाया गया है, लेकिन यह सिंचाई विभाग की लापरवाही का जीता-जागता प्रमाण है।

जेई का अजीब बयान: “हमें इससे मतलब नहीं”

मामले की जांच के दौरान मोटरसाइकिल से आए एक व्यक्ति ने निर्माण कार्य में एनओसी की मांग की। जब उनसे परिचय पूछा गया, तो उन्होंने खुद को सिंचाई विभाग का जूनियर इंजीनियर (जेई) बताया। परंतु, जब उनसे विभागीय जिम्मेदारियों के तहत माइनर पर अतिक्रमण और क्षतिग्रस्त संरचना के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा, “हमें इससे मतलब नहीं है। यह राजस्व विभाग का मामला है।”

जेई ने न तो अतिक्रमण के बारे में जानकारी दी और न ही सिंचाई विभाग की जमीन की स्थिति स्पष्ट की। जब उनसे माइनर के संचालन और किसानों को पानी की आपूर्ति से जुड़े सवाल किए गए, तो वे कोई संतोषजनक जवाब देने के बजाय मौके से चले गए।

अतिक्रमण के चलते माइनर की दुर्दशा

ग्राम सभा करमही में सिंचाई विभाग की लगभग दो एकड़ जमीन पर बड़े पैमाने पर अतिक्रमण हो चुका है। माइनर के अगल-बगल झोपड़ियां और पक्के निर्माण कर लिए गए हैं, जिससे न केवल पानी का प्रवाह बाधित हो रहा है बल्कि सिंचाई कार्य भी ठप हो गया है। किसानों का आरोप है कि विभागीय अधिकारियों ने कभी भी इस समस्या को गंभीरता से नहीं लिया।

किसानों की परेशानियां बढ़ीं

माइनर के क्षतिग्रस्त होने और अतिक्रमण के कारण किसानों की फसलें जलमग्न हो जाती हैं। उन्हें सिंचाई के लिए समय पर पानी नहीं मिलता, जिससे उनकी कृषि कार्य प्रभावित होती है। एक तरफ सरकारी योजनाएं किसानों को सशक्त बनाने का दावा करती हैं, वहीं दूसरी ओर सिंचाई विभाग की यह लापरवाही उनकी स्थिति और खराब कर रही है।

जनहित में प्रशासनिक हस्तक्षेप की आवश्यकता

समाजसेवी विनोद तिवारी का कहना है कि यदि सिंचाई विभाग अपनी जिम्मेदारी निभाता, तो आज माइनर की यह दुर्दशा न होती। पुलिया का निर्माण समय पर हो जाता, अतिक्रमण हटता और किसानों को उनकी फसल के लिए पर्याप्त पानी मिलता। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि विभागीय अधिकारी अपने कर्तव्यों से बेखबर हैं।

समस्याओं का समाधान जरूरी

सिंचाई विभाग और प्रशासन को मिलकर इस समस्या का समाधान करना चाहिए।

1. माइनर का पुनर्निर्माण: क्षतिग्रस्त पुलिया को जल्द से जल्द सही किया जाए।

2. अतिक्रमण हटाया जाए: सिंचाई विभाग की जमीन से अवैध कब्जे हटाने के लिए कार्रवाई हो।

3. जलप्रवाह सुनिश्चित किया जाए: माइनर में पानी का सुचारु प्रवाह बहाल कर किसानों की मदद की जाए।

4. जवाबदेही तय हो: संबंधित अधिकारियों पर लापरवाही का दंडात्मक कार्रवाई हो।

 

सिंचाई विभाग की इस लापरवाही को लेकर ग्रामीणों में रोष है। सरकार और संबंधित विभाग को इस दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि जनहित के इन मुद्दों का जल्द समाधान हो सके।