थानाध्यक्ष से ना बनाते ही एमएलसी ने खोला मोर्चा!

एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह के लेटरपैड पर दर्ज हुई शिकायत,राजन विश्वकर्मा के बचाव में लगाएं गंभीर आरोप
महराजगंज। जनपद महराजगंज में एक बार फिर सियासत और पुलिस व्यवस्था की टकराहट सुर्खियों में आ गई है। विधान परिषद सदस्य (एमएलसी) देवेंद्र प्रताप सिंह द्वारा पुलिस अधीक्षक को भेजे गए शिकायती पत्र ने जिले की राजनीति में हलचल मचा दी है। पत्र में थाना कोठीभार के थानाध्यक्ष अखिलेश कुमार सिंह पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं, लेकिन इसके पीछे छिपी हकीकत और उद्देश्य पर भी कई सवाल खड़े हो रहे हैं।
एमएलसी ने अपने पत्र में कई मामलों का उल्लेख किया है, परंतु सबसे महत्वपूर्ण और विवादित बिंदु क्रमांक 10 है जिसमें सभासद, प्रतिनिधि क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष , भाजपा नेता अभय उर्फ राजन विश्वकर्मा का जिक्र किया गया है। पत्र में कहा गया है कि दो पक्षों में हुए विवाद के बाद जब राजन थाने पहुंचे, तो थानाध्यक्ष ने विपक्षी पक्ष के प्रभाव में आकर उनका नाम एफआईआर में जोड़ दिया और बाद में ₹20,000 की रिश्वत लेकर नाम हटाया गया।
राजन विश्वकर्मा ने खुद यह स्वीकार किया कि उन्होंने नाम हटाने के लिए रिश्वत दी थी, जो कि भारतीय कानून के तहत स्वयं में एक अपराध है। रिश्वत देना और लेना, दोनों ही भ्रष्टाचार अधिनियम की श्रेणी में आते हैं। इससे यह सवाल उठता है कि क्या प्रशासनिक व्यवस्था में प्रभावशाली लोगों के लिए अलग कानून हैं?
एमएलसी की भूमिका पर उठे सवाल
पत्र में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह राजन विश्वकर्मा के समर्थन में पुलिस पर दबाव बना रहे हैं। यह कोई पहली बार नहीं है जब सिंह का नाम विवादों में आया हो, परंतु इस बार मामला एक ऐसे व्यक्ति से जुड़ा है जिसका आपाराधिक इतिहास पहले से मौजूद है।
राजन विश्वकर्मा के खिलाफ दर्ज मुकदमे:

1. मु0अ0सं0 434/24 – धारा 115(2), 324(4), 351(3), 352 BNS
2. मु0अ0सं0 302/22 – धारा 504, 506 भादवि व 3(1)ध, 3(2)(Va) SC/ST Act
3. मु0अ0सं0 486/23 – धारा 147, 323, 427, 504, 506 भादवि
4. मु0अ0सं0 230/20 – धारा 147, 269, 323, 341, 504, 506 भादवि व महामारी अधिनियम 1897
इन चार मुकदमों में गंभीर धाराएं शामिल हैं, जिनमें मारपीट, धमकी, संपत्ति को क्षति पहुंचाना, जातिसूचक टिप्पणियां, महामारी कानून का उल्लंघन जैसी धाराएं लगाई गई हैं। यह तथ्य एमएलसी के पत्र की मंशा पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है कि क्या वह जनहित में पत्र लिख रहे हैं या एक अपराधिक छवि वाले राजन को बचाने का प्रयास कर रहे हैं?
थानाध्यक्ष पर दबाव न बनने से बढ़ा टकराव
सूत्रों के अनुसार, थानाध्यक्ष अखिलेश कुमार सिंह ने राजन के खिलाफ चल रही जांच और मामले को गंभीरता से लेते हुए इस बार किसी भी राजनीतिक दबाव को स्वीकार नहीं किया। इसी कारण अब एमएलसी ने उनके खिलाफ मोर्चा खोलते हुए उन्हें संगठित अपराध और वसूली जैसे आरोपों में घेरने का प्रयास किया है।
प्रशासनिक सवाल और जनआक्रोश
यह घटनाक्रम न सिर्फ पुलिस की स्वतंत्रता पर हमला है, बल्कि यह सवाल भी उठाता है कि क्या जनता के जनप्रतिनिधि, कानून से ऊपर हैं? यदि हर बार राजन जैसे लोगों को पुलिस से पैसे देकर बचा लिया जाएगा, तो कानून व्यवस्था का क्या होगा?
साथ ही, जनता में भी इस पूरे प्रकरण को लेकर आक्रोश है कि एक जनप्रतिनिधि कानून तोड़ने वालों के साथ खड़ा नजर आ रहा है, जबकि पुलिस को अपने कार्य के लिए निशाना बनाया जा रहा है।
एमएलसी का पत्र सतही रूप से जनहित का प्रतीक दिखता है, परंतु इसके पीछे छिपी मंशा और जिस व्यक्ति के पक्ष में पत्र लिखा गया है, उसका आपराधिक इतिहास देखने के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि यह मामला पुलिस पर दबाव बनाकर अपराधियों को संरक्षण देने का है। ऐसे में प्रशासन को निष्पक्ष जांच कर यह तय करना चाहिए कि दोषी कौन है — पुलिस अधिकारी या राजनीतिक प्रभावशाली लोग?
(रिपोर्ट: मनोज कुमार तिवारी , महराजगंज)