नवरात्रि 2024: कष्टों से मुक्ति दिलाने वाली मां चंद्रघंटा और मां कूष्मांडा की उपासना का महत्त्व

शारदीय नवरात्रि के तीसरे और चौथे दिन की पूजा विधि, आहुतियों और मंत्रों से होते हैं विशेष लाभ
नवरात्रि की पावन तिथियां
शारदीय नवरात्रि का पर्व भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व रखता है। यह नौ दिनों का पर्व मां दुर्गा के नौ रूपों की उपासना का पर्व है, जो हर वर्ष आश्विन मास में शुक्ल पक्ष के दौरान मनाया जाता है। 2024 की नवरात्रि 3 अक्टूबर से शुरू हो चुकी है, और इसके तीसरे और चौथे दिन यानी तृतीया और चतुर्थी तिथि का अपना विशेष महत्व है। इन दिनों मां दुर्गा के दो रूपों की पूजा की जाती है – तृतीया तिथि पर मां चंद्रघंटा और चतुर्थी तिथि पर मां कूष्मांडा। इन देवियों की उपासना कष्टों से मुक्ति और रोग-शोक के निवारण के लिए की जाती है।
मां चंद्रघंटा की उपासना (तृतीया तिथि)
नवरात्रि के तीसरे दिन, माता चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। मां चंद्रघंटा का मस्तक अर्धचंद्र से सजा हुआ है, जो उन्हें खास पहचान देता है। देवी का यह रूप शांति, साहस, और शक्ति का प्रतीक है। उनके इस रूप की पूजा करने से साधक को सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है और मणिपुर चक्र जाग्रत हो जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां चंद्रघंटा ने असुरों का संहार अपने घंटे की टंकार से किया था।
मां चंद्रघंटा की पूजा विधि
मां चंद्रघंटा की पूजा तृतीया तिथि के दिन की जाती है। इस दिन साधक को प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण कर मां की पूजा करनी चाहिए। देवी को दूध का भोग लगाना अत्यंत शुभ माना जाता है, जिससे साधक के जीवन में व्याप्त दुखों का निवारण होता है। भक्त ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे’ मंत्र का जाप करके मां चंद्रघंटा की आराधना कर सकते हैं।
मां कूष्मांडा की उपासना (चतुर्थी तिथि)
नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा की उपासना की जाती है। देवी कूष्मांडा को सृष्टि की आदिशक्ति माना जाता है, जिन्होंने अपने उदर से ब्रह्मांड की उत्पत्ति की थी। इसलिए इन्हें कूष्मांडा नाम से संबोधित किया जाता है। इनके पूजन से अनाहत चक्र जाग्रत होता है, जिससे व्यक्ति के सभी रोग और शोक दूर हो जाते हैं। मां कूष्मांडा की पूजा करने से धन-धान्य, समृद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
मां कूष्मांडा की पूजा विधि
चतुर्थी तिथि के दिन मां कूष्मांडा को मालपुआ का भोग लगाना शुभ माना जाता है। ऐसा करने से जीवन की सभी समस्याओं का अंत होता है। मां के उपासकों को ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कूष्मांडा ऐं ह्रीं स्वाहा’ मंत्र का जाप करना चाहिए। इस मंत्र के जाप से भक्तों को मानसिक शांति और शारीरिक स्वास्थ्य में लाभ मिलता है।
शनिदेव की कृपा पाने के उपाय
पौराणिक मान्यता के अनुसार, शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष का स्पर्श और पूजन करने से शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है। ‘ब्रह्म पुराण’ के अनुसार, जो मनुष्य हर शनिवार पीपल के वृक्ष का स्पर्श करते हैं और ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप करते हैं, उन्हें ग्रह पीड़ाओं से मुक्ति मिलती है। इसके अतिरिक्त, पीपल की जड़ में जल चढ़ाने और दीपक जलाने से जीवन में आने वाले कष्टों का निवारण होता है। इस प्रकार की पूजा से शनिदेव का आशीर्वाद प्राप्त होता है और सभी कार्यों में सफलता मिलती है।
विद्यार्थियों के लिए विशेष उपाय
शारदीय नवरात्रि का समय विद्यार्थियों के लिए भी अत्यंत फलदायक माना जाता है। नवरात्रि के दौरान विद्यार्थियों को गायत्री मंत्र का जाप करते हुए खीर की आहुति देनी चाहिए। इस प्रक्रिया से छात्रों को एकाग्रता बढ़ाने में मदद मिलती है और उनकी शिक्षा में उत्तम लाभ प्राप्त होता है। 21 या 51 आहुतियां देना विशेष रूप से प्रभावकारी माना जाता है।
नवरात्रि में जप करने का महत्व
नवरात्रि के दिनों में ‘ॐ श्रीं ॐ’ मंत्र का जाप करना अत्यंत शुभ माना गया है। इस मंत्र के उच्चारण से मन की शांति प्राप्त होती है और आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में प्रगति होती है। यह मंत्र साधक के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है और सभी प्रकार के नकारात्मक प्रभावों से रक्षा करता है।
उपसंहार
शारदीय नवरात्रि का यह पर्व भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है। मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा, विशेष मंत्रों का जाप, और विधिपूर्वक उपासना से साधक को मानसिक, शारीरिक, और आध्यात्मिक लाभ मिलता है। तृतीया और चतुर्थी तिथि के दिन मां चंद्रघंटा और मां कूष्मांडा की उपासना करने से व्यक्ति के जीवन के कष्ट, शोक, और रोग समाप्त हो जाते हैं, और उसे सुख, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति होती है।