दबाव में झुके जिला विद्यालय निरीक्षक, साधिकार नियुक्ति का मार्ग प्रशस्त

दबाव में झुके जिला विद्यालय निरीक्षक, साधिकार नियुक्ति का मार्ग प्रशस्त

आयुक्त गोरखपुर मंडल ने मांगी आख्या, भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे जिला विद्यालय निरीक्षक

महराजगंज। श्री नारंग संस्कृत महाविद्यालय, घुघली में प्रबंधकीय अधिकारों को लेकर जारी विवाद में नया मोड़ आ गया है। पत्रकार मनोज तिवारी के दबाव में जिला विद्यालय निरीक्षक (डीआईओएस) प्रदीप कुमार शर्मा ने अंततः साधिकार नियुक्ति की प्रक्रिया को आगे बढ़ा दिया है। इस पूरे प्रकरण में भ्रष्टाचार और प्रशासनिक लापरवाही के गंभीर आरोप लग रहे हैं, जिससे शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे हैं।

 

सूत्रों के अनुसार, श्री नारंग संस्कृत महाविद्यालय की प्रबंध समिति का कार्यकाल 03 जनवरी 2025 को समाप्त हो गया था, लेकिन नए चुनाव नहीं कराए गए। जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय द्वारा 26 अक्टूबर 2024 को जारी आदेश के तहत, पूर्व प्रबंधक श्री योगेंद्र तिवारी को शेष कार्यकाल तक के लिए हस्ताक्षर प्रमाणित किया गया था। इसके बावजूद, जब आयुक्त गोरखपुर मंडल ने इस संबंध में आख्या मांगी, तो डीआईओएस कार्यालय ने आनन-फानन में प्रबंधन से जुड़े फैसले लेने शुरू कर दिए।

भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे जिला विद्यालय निरीक्षक

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आरोप है कि डीआईओएस प्रदीप कुमार शर्मा ने एकतरफा तरीके से कार्य किया और पूर्व प्रबंधक योगेंद्र तिवारी के हस्ताक्षरों से प्रेरित वेतन बिल को वापस कर दिया। इसके बाद, प्राचार्य श्री विनोद तिवारी से प्रत्यावेदन प्राप्त कर एक महीने से अधिक समय तक निर्णय को टालते रहे। अंततः, एकल संचालन के लिए सक्षम अधिकारी को पत्र भेज दिया गया, जिससे डीआईओएस की कार्यशैली पर सवाल खड़े हो गए हैं।

शिक्षा विभाग से जुड़े सूत्रों का कहना है कि इस पूरे घटनाक्रम में जिला विद्यालय निरीक्षक की भूमिका संदिग्ध रही है। पत्रकार मनोज तिवारी द्वारा लगातार इस मामले को उजागर किए जाने के बाद प्रशासन पर दबाव बढ़ा, जिसके चलते डीआईओएस को अपनी नीति में बदलाव करना पड़ा।

आयुक्त के आदेश के बाद तेज हुई कार्रवाई

अधिकारियों के अनुसार, आयुक्त गोरखपुर मंडल ने जैसे ही इस प्रकरण पर रिपोर्ट मांगी, डीआईओएस कार्यालय ने तुरंत फैसले लेने शुरू कर दिए। सवाल यह उठता है कि अगर सब कुछ नियमानुसार चल रहा था, तो अचानक इतनी देरी क्यों की गई? क्या डीआईओएस किसी दबाव में थे, या फिर भ्रष्टाचार के आरोपों से बचने के लिए रणनीति बना रहे थे?

शिक्षा विभाग में मचा हड़कंप, जांच की मांग

इस मामले को लेकर शिक्षा विभाग में खलबली मची हुई है। स्थानीय शिक्षकों और महाविद्यालय से जुड़े लोगों ने मांग की है कि इस प्रकरण की उच्चस्तरीय जांच कराई जाए, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि डीआईओएस की भूमिका कितनी पारदर्शी थी।

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रशासन इस पूरे प्रकरण पर क्या कदम उठाता है। क्या जिला विद्यालय निरीक्षक पर लगे आरोपों की जांच होगी, या फिर मामला धीरे-धीरे ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा? शिक्षा विभाग की निष्पक्षता की असली परीक्षा अब शुरू हो चुकी है।