महराजगंज सड़क हादसा: केवल ड्राइवर पर कार्रवाई क्यों?

बिना मान्यता के स्कूल संचालन के लिए जिलाधिकारी और जिला विद्यालय निरीक्षक पर क्यों न हो एफआईआर?
महराजगंज: जिले में हुए भीषण सड़क हादसे ने कई परिवारों को गहरे सदमे में डाल दिया है। धानी-फरेंदा हाईवे पर परीक्षा देने जा रही छात्राओं की गाड़ी का टायर फटने से बड़ा हादसा हुआ, जिसमें तीन छात्राओं की मौत हो गई और 11 अन्य घायल हो गईं। प्रशासन ने घटना के बाद ड्राइवर पर मुकदमा दर्ज कर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली, लेकिन असली सवाल यह है कि बिना मान्यता के स्कूल संचालन की अनुमति किसने दी? क्यों न जिलाधिकारी (डीएम) और जिला विद्यालय निरीक्षक (डीआईओएस) को भी इस लापरवाही के लिए जिम्मेदार ठहराया जाए?
बिना मान्यता के कैसे चल रहा था स्कूल?
उत्तर प्रदेश सरकार की स्पष्ट नीति है कि बिना मान्यता के कोई भी विद्यालय संचालित नहीं होगा। इसके लिए हर साल जिलाधिकारी और जिला विद्यालय निरीक्षक की निगरानी में तहसील व ब्लॉक स्तर पर कमेटी गठित की जाती है, जो जिले के सभी स्कूलों का सत्यापन कर रिपोर्ट सरकार को सौंपती है।
अगर प्रशासन अपनी जिम्मेदारी निभा रहा था, तो फिर यह विद्यालय किसकी मिलीभगत से संचालित हो रहा था? क्या यह महज कागजी खाना-पूर्ति थी, जिससे अवैध विद्यालयों को खुली छूट मिली हुई है? यह स्पष्ट करता है कि जिला प्रशासन की घोर लापरवाही के कारण ये संस्थान फल-फूल रहे हैं और बच्चों की सुरक्षा दांव पर लगी हुई है।
कार्यवाही सिर्फ ड्राइवर पर क्यों?
इस पूरे मामले में सबसे चिंताजनक बात यह है कि प्रशासन ने कार्रवाई के नाम पर केवल वाहन चालक के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया। सवाल यह उठता है कि ड्राइवर से ज्यादा जिम्मेदारी उन अधिकारियों की नहीं है जो बिना मान्यता के स्कूलों को संचालित होने दे रहे हैं? अगर नियमों का सही से पालन किया गया होता, तो यह स्कूल कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त होता और सुरक्षित परिवहन सुविधा उपलब्ध कराता, जिससे यह हादसा टाला जा सकता था।
जिम्मेदार अधिकारियों पर कब होगी कार्रवाई?
आज जब यह दुर्घटना हो गई है, तब अधिकारी संवेदना प्रकट कर रहे हैं, लेकिन क्या वे इस लापरवाही की जिम्मेदारी लेंगे? अगर बिना मान्यता के विद्यालय संचालित हो रहे हैं, तो इसकी पूरी जवाबदेही जिलाधिकारी और जिला विद्यालय निरीक्षक की बनती है। वे हर साल यह रिपोर्ट पेश करते हैं कि कोई भी गैर-मान्यता प्राप्त विद्यालय नहीं चल रहा, फिर यह स्कूल कैसे संचालित हो रहा था?
यदि सरकार वास्तव में न्याय चाहती है, तो उसे सिर्फ ड्राइवर पर मुकदमा दर्ज करने के बजाय उन अधिकारियों पर भी एफआईआर दर्ज करनी चाहिए, जिन्होंने अपनी ड्यूटी में कोताही बरती। जब तक बड़े अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई नहीं होगी, तब तक ऐसे हादसे होते रहेंगे और गरीब व मध्यमवर्गीय परिवारों के बच्चे अपनी जान गंवाते रहेंगे।
जनता की मांग: निष्पक्ष जांच और सख्त कार्रवाई
हादसे के बाद पीड़ित परिवारों और स्थानीय लोगों में भारी आक्रोश है। वे मांग कर रहे हैं कि इस दुर्घटना की निष्पक्ष जांच हो और सिर्फ ड्राइवर को ही दोषी ठहराने के बजाय असली गुनहगारों—जिलाधिकारी और जिला विद्यालय निरीक्षक—पर भी कार्रवाई की जाए। जब तक प्रशासनिक अधिकारियों को भी कानून के कठघरे में नहीं खड़ा किया जाता, तब तक इस तरह की घटनाओं को रोक पाना मुश्किल होगा।
सरकार को चाहिए कि वह इस घटना को केवल एक हादसे के रूप में न देखकर, इसे प्रशासनिक लापरवाही के गंभीर उदाहरण के रूप में ले और दोषी अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई करे। तभी इन मासूम छात्राओं की मौत को सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सकेगी।