ग्राम बागापार में सीलिंग की भूमि पर फर्जी प्रविष्टि का मामला गरमाया

ग्राम बागापार में सीलिंग की भूमि पर फर्जी प्रविष्टि का मामला गरमाया


न्यायालय के आदेशों की आड़ में खतौनी में हेराफेरी, लेखपालों पर मिलीभगत का आरोप

महराजगंज, उत्तर प्रदेश।
ग्राम पंचायत बागापार में सीलिंग के तहत अधिशेष घोषित भूमि पर कथित रूप से फर्जी प्रविष्टि किए जाने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। स्थानीय निवासी कोईल वर्मा ने मुख्यमंत्री को भेजे गए शिकायती पत्र में गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि आराजी संख्या 1464 (साबिक 2867), जो खलिहान व आबादी की जमीन के रूप में दर्ज है, उसे गलत तरीके से श्री विक्रमादित्य सिंह आदि के नाम पर खतौनी में दर्ज करवा लिया गया है। इस प्रक्रिया में लेखपालों की भूमिका पर भी सवाल खड़े किए गए हैं।

शिकायतकर्ता के अनुसार, उक्त भूमि ग्राम समाज की खलिहान व आबादी की भूमि रही है, जो नकल जिल्द बन्दोबस्त 1345 में 1.20 एकड़ बजर के रूप में तथा जो०च० आकार पत्र 41 में 1.80 एकड़ खलिहान के रूप में दर्ज है। आकार पत्र 2क में यह भूमि खलिहान व आबादी के रूप में दर्शाई गई है। यह भूमि प्रार्थी के पैत्रिक मकान के समीप स्थित है, जिसके चारों तरफ अन्य ग्रामीणों के भी पक्के मकान और सहन बने हुए हैं।

गौरतलब है कि ग्राम बागापार में वर्ष 1995 में सीलिंग के तहत 34.61 एकड़ भूमि को अधिशेष घोषित किया गया था, जिसके विरुद्ध विक्रमादित्य सिंह द्वारा उच्च न्यायालय, इलाहाबाद में रिट याचिका संख्या 32807/1997 दाखिल की गई थी। न्यायालय द्वारा 30 मई 2013 को पारित आदेश का हवाला देते हुए आरोपित पक्ष ने आराजी 1464 को खतौनी में अपने नाम पर दर्ज करवा लिया, जबकि यह भूमि अधिशेष भूमि की श्रेणी में थी।

शिकायत में यह भी आरोप है कि लेखपाल जनकराज द्वारा शिकायत संख्या 20018718002431 में गलत आख्या दी गई, जिसमें उक्त भूमि को विक्रमादित्य सिंह का भूमिधरी बताया गया। इसके पश्चात सुनील यादव नामक लेखपाल द्वारा भी दूसरी शिकायत (संख्या 80018725002458) में उक्त भूमि को निजी खलिहान बताकर गलत विवरण प्रस्तुत किया गया। प्रार्थी का कहना है कि इस भूमि पर कोर्ट अमीन द्वारा भी मकान दर्शाया गया है, जबकि राजस्व विभाग की फसली रिपोर्ट में इसे धान की खेती के लिए उपयोग में लाया जाना दर्शाया गया है।

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इसी विवादित भूमि को आधार बनाकर विक्रमादित्य सिंह ने महराजगंज के सिविल कोर्ट में वाद संख्या 1069/2023 भी दायर किया है, जो इस समय न्यायालय में विचाराधीन है। शिकायतकर्ता का आरोप है कि यह सब लोक सेवकों की मिलीभगत से किया गया है और इससे न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने का प्रयास हो रहा है।

प्रार्थी ने मुख्यमंत्री से मांग की है कि इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच कराई जाए, फर्जी प्रविष्टि को निरस्त किया जाए तथा दोषी अधिकारियों के विरुद्ध कठोर विधिक कार्यवाही की जाए।

यह मामला ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि से जुड़े विवादों में सरकारी अधिकारियों की संलिप्तता को उजागर करता है और शासन की पारदर्शिता एवं जवाबदेही पर बड़ा सवाल खड़ा करता है।

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