घुघली नगर पंचायत कार्यालय में दस्तावेज ‘लापता’ या ‘गायब कराए गए’?

घुघली नगर पंचायत कार्यालय में दस्तावेज ‘लापता’ या ‘गायब कराए गए’?

मुख्यमंत्री संदर्भ के जवाब में अधिशासी अधिकारी की आख्या पर उठे सवाल, व्यवसायी ने लगाए गंभीर आरोप

11 कार्यों के भुगतान में देरी से नाराज व्यवसायी ने नगर पंचायत पर लगाया पक्षपात का आरोप, बोले—भ्रष्टाचार के कारण ‘फाइलें’ दबा दी जाती हैं, जिम्मेदारों की जवाबदेही तय होनी चाहिए।


महराजगंज, 25 मई 2025।
जनपद महराजगंज की नगर पंचायत घुघली एक बार फिर सुर्खियों में है। कारण है – वर्षों पूर्व कराए गए 11 विकास कार्यों का भुगतान रोके जाना और उनके संबंध में मौजूद दस्तावेजों के रहस्यमय तरीके से ‘लापता’ हो जाना। इस पूरे प्रकरण ने न सिर्फ नगर पंचायत प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि शासन-प्रशासन की जवाबदेही पर भी प्रश्नचिह्न लगा दिया है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार, घुघली क्षेत्र के व्यवसायी श्री आलोक, संचालक पास इंटरप्राइजेज, ने वर्ष 2021 से 2023 के बीच नगर पंचायत द्वारा जारी कार्यादेशों के अंतर्गत 11 अलग-अलग कार्य संपन्न कराए थे। इन कार्यों में शौचालय निर्माण, अलाव की व्यवस्था, टिनशेड निर्माण, पेंटिंग कार्य, पार्क की मिट्टी भराई, तथा विधानसभा चुनावों से संबंधित व्यवस्थाएं शामिल थीं। व्यवसायी का दावा है कि इन सभी कार्यों के लिए विधिवत आदेश निर्गत किए गए थे, कार्य पूरे हुए और सभी आवश्यक दस्तावेज समय से नगर पंचायत कार्यालय को सौंपे गए।

मुख्यमंत्री जनसुनवाई पोर्टल पर शिकायत और उलझता तंत्र

कार्य पूरा करने के वर्षों बाद भी जब भुगतान नहीं हुआ तो व्यवसायी ने नवंबर 2024 में मुख्यमंत्री जनसुनवाई पोर्टल पर शिकायत संख्या 40018724019416 के माध्यम से न्याय की मांग की। इस पर नगर पंचायत कार्यालय की ओर से उन्हें नोटिस जारी किया गया जिसमें कार्यादेश की प्रतिलिपियाँ उपलब्ध कराने को कहा गया। शिकायतकर्ता ने तत्काल प्रतिक्रिया देते हुए दिनांक 19 दिसंबर 2024 को स्पीड पोस्ट (EU805203508IN) के माध्यम से सभी दस्तावेज भेजे, जिसकी प्राप्ति की भी पुष्टि नगर पंचायत ने की।

लेकिन हैरानी की बात यह रही कि इसके बावजूद अधिशासी अधिकारी ने मुख्यमंत्री जनसुनवाई सन्दर्भ संख्या 15187250057776 को दिनांक 15 अप्रैल 2025 को यह कहते हुए निस्तारित कर दिया कि “कार्यादेश की छायाप्रति कार्यालय में उपलब्ध नहीं कराई गई है।”

जवाबदेही या लीपापोती?

यह बयान जहां एक ओर आश्चर्यचकित करता है, वहीं दूसरी ओर नगर पंचायत कार्यालय की कार्यशैली पर गंभीर सवाल भी खड़े करता है। हाल ही में अधिशासी अधिकारी द्वारा जिलाधिकारी को प्रेषित पत्रांक 155/न०पं०/जनसुनवाई सन्दर्भ/2025-26 दिनांक 16 मई 2025 में यह स्वीकार किया गया है कि स्पीड पोस्ट से प्राप्त दस्तावेज 20 दिसंबर 2024 को कार्यालय में प्राप्त हुए थे। साथ ही यह भी बताया गया कि 11 कार्यों में से 6 (क्रमांक 01, 02, 08, 09, 10 व 11) की फाइलें कार्यालय में उपलब्ध हैं, जबकि क्रमांक 03, 04, 05, 06 व 07 की पत्रावलियाँ कार्यालय से ‘लापता’ हैं।

इस आख्या से कई बड़े सवाल खड़े होते हैं—क्या दस्तावेज वास्तव में खो गए या जानबूझकर गायब किए गए? अगर पत्रावलियाँ कार्यालय में उपलब्ध नहीं हैं, तो कौन जिम्मेदार है? और क्या यह केवल एक संयोग है कि जिन कार्यों से संबंधित भुगतान अधिक हैं, उन्हीं की फाइलें गायब हैं?

शिकायतकर्ता की नाराजगी और सवाल

श्री आलोक ने जिलाधिकारी को 16 मई 2025 को पत्रांक 3632-/शिकायत सहायक/2025 द्वारा यह भी स्पष्ट किया है कि दस्तावेज गायब होने की बात सरासर गुमराह करने वाली है, क्योंकि सभी कार्यादेशों की प्रति विधिवत कार्यालय में प्राप्त कराई गई थी और उनकी रसीद भी मौजूद है।

उनका कहना है कि यह मामला सिर्फ उनका व्यक्तिगत मामला नहीं है, बल्कि ऐसे कई ठेकेदार हैं जिन्हें वर्षों से भुगतान नहीं मिला है, और कार्यालयीय हीलाहवाली और भ्रष्टाचार के कारण उन्हें न्याय नहीं मिल पा रहा है। उन्होंने मुख्यमंत्री कार्यालय से अपील की है कि इस मामले की उच्चस्तरीय जांच कराई जाए और दोषियों पर सख्त कार्यवाही की जाए।

घटनाक्रम पर राजनीतिक और सामाजिक हलचल

इस पूरे प्रकरण को लेकर स्थानीय व्यापारियों और ठेकेदारों में रोष व्याप्त है। उनका मानना है कि जब तक ऐसे मामलों में पारदर्शिता नहीं लाई जाएगी और भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम नहीं उठाए जाएंगे, तब तक ईमानदारी से कार्य करने वालों को नुकसान ही उठाना पड़ेगा।

वहीं स्थानीय जनप्रतिनिधियों द्वारा “भ्रष्टाचारमुक्त प्रशासन” के दावे अब सवालों के घेरे में हैं। नगर पंचायत कार्यालय के अंदर दस्तावेजों का ‘गायब हो जाना’ न केवल प्रशासनिक लापरवाही है, बल्कि यह आशंका भी उत्पन्न करता है कि कहीं जानबूझकर भुगतान न करने के उद्देश्य से दस्तावेजों को ‘गायब’ तो नहीं किया गया?

अब आगे क्या?

शिकायतकर्ता ने प्रमुख सचिव, मुख्यमंत्री कार्यालय, नगर विकास विभाग सहित कई उच्चस्तरीय अधिकारियों को पत्र भेजकर निष्पक्ष जांच और भुगतान की मांग की है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि शासन-प्रशासन इस मामले को कितनी गंभीरता से लेता है। क्या मुख्यमंत्री कार्यालय इस संदर्भ की पुनः निष्पक्ष जांच कराकर अधिशासी अधिकारी पर कार्यवाही करेगा, या यह मामला भी अन्य मामलों की तरह फाइलों की धूल में दबकर रह जाएगा?

नगर पंचायत घुघली में दस्तावेजों का लापता होना, जनसुनवाई संदर्भ में भ्रामक आख्या प्रस्तुत करना और वर्षों से कार्य करा चुके व्यवसायी को भुगतान न मिलना—इन सभी बातों ने यह सिद्ध कर दिया है कि स्थानीय निकाय कार्यालयों में पारदर्शिता और जवाबदेही की अब भी भारी कमी है। यदि शासन-प्रशासन इस मामले में तत्परता नहीं दिखाता, तो यह न केवल शिकायतकर्ता के लिए, बल्कि समूची प्रशासनिक व्यवस्था की साख के लिए भी एक बड़ा प्रश्न बन जाएगा।