चार महीनों में फेल हुए ट्रम्प? वादों की हकीकत सामने आई
युद्ध रुकवाने से लेकर इमिग्रेशन और टैरिफ तक… हर मोर्चे पर ट्रम्प प्रशासन को झटका, मस्क ने भी छोड़ा साथ
6 नवंबर 2024—यह तारीख अमेरिकी राजनीति के लिए एक निर्णायक मोड़ थी। डोनाल्ड ट्रम्प, जो 2020 का चुनाव हार चुके थे, 2024 में फिर से राष्ट्रपति चुने गए। उनकी जीत के पीछे उनकी तीखी और स्पष्ट वाणी, राष्ट्रवाद पर आधारित वादे, और अमेरिकी जनता में फैली असंतोष की भावना थी। अपनी विक्ट्री स्पीच में ट्रम्प ने बड़ी घोषणा की थी—“मैं युद्ध शुरू नहीं करूंगा, मैं युद्ध खत्म करूंगा।” उन्होंने कहा कि वे अमेरिका को फिर से महान बनाएंगे—”Make America Great Again” के नारे के साथ। लेकिन अब जब ट्रम्प प्रशासन को चार महीने पूरे हो चुके हैं, तो कई सवाल खड़े हो रहे हैं।
1. क्या वाकई युद्ध रुक पाए?
इजराइल-हमास संघर्ष: शुरुआत में सफलता, फिर असफलत
19 जनवरी 2025 को, ट्रम्प प्रशासन ने इजराइल और हमास के बीच छह हफ्तों का अस्थायी सीजफायर करवाया। इस समझौते के तहत दोनों पक्षों ने युद्धविराम का पालन करना था और कुछ बंधकों को रिहा किया गया। यह एक अहम कूटनीतिक जीत मानी गई, और दुनिया भर में ट्रम्प की प्रशंसा हुई।
लेकिन 18 मार्च को, इजराइली सेना ने ‘ऑपरेशन माइट एंड स्वॉर्ड’ शुरू करते हुए गाजा पर जबरदस्त हवाई हमले किए। हमास ने भी पलटवार किया। युद्धविराम टूट गया और शांति की उम्मीदें ध्वस्त हो गईं। इससे ट्रम्प की मध्यस्थता पर सवाल उठने लगे।
रूस-यूक्रेन युद्ध: एकतरफा कोशिशें, कोई समाधान नहीं
रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर ट्रम्प ने मार्च में सऊदी अरब में शांति वार्ता की पेशकश की। उन्होंने 30 दिन का अस्थायी सीजफायर प्रस्ताव रखा। यूक्रेन ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया, लेकिन रूस ने इसे सिरे से खारिज कर दिया। रूस का कहना था कि वे किसी भी मध्यस्थता को तभी मानेंगे जब यूक्रेन नाटो में शामिल न होने की लिखित गारंटी देगा।
इससे ट्रम्प की अंतरराष्ट्रीय स्थिति कमजोर हुई। न तो युद्ध थमा, और न ही अमेरिका की छवि को कोई बड़ा लाभ मिला।
2. अवैध इमिग्रेशन पर क्या हुआ?
ट्रम्प ने एक बड़ा वादा किया था—दक्षिणी बॉर्डर से अवैध इमिग्रेशन रोकने का। उन्होंने कहा था कि वे “सख्त और प्रभावी” कदम उठाएंगे।
जनवरी 2025 में उन्होंने ‘ऑपरेशन बॉर्डर लॉकडाउन’ शुरू किया। इसमें टेक्सास और एरिज़ोना में हजारों नेशनल गार्ड्स तैनात किए गए।
परन्तु आंकड़े बताते हैं कि फरवरी और मार्च में बॉर्डर पार करने वाले अवैध प्रवासियों की संख्या में केवल 8% की गिरावट आई है। इसके बावजूद मानवाधिकार संगठनों ने ट्रम्प प्रशासन की नीतियों को “अमानवीय” करार दिया है। मेक्सिको सरकार ने भी विरोध दर्ज कराया है।
वहीं, कोर्ट ने भी कुछ नियमों को “संविधान के विरुद्ध” करार देते हुए रोक लगा दी है।
3. व्यापार और टैरिफ नीति: मस्क का साथ छूटा
ट्रम्प ने अमेरिका के बाहर काम कर रहीं कंपनियों पर भारी टैरिफ लगाने का प्रस्ताव दिया था, ताकि वे देश के अंदर निवेश करें। उन्होंने इसे “अमेरिकन वर्कर्स फर्स्ट” नीति बताया।
जनवरी 2025 में ट्रम्प ने चीन, भारत और वियतनाम से आयात होने वाले कुछ इलेक्ट्रॉनिक्स और गाड़ियों पर 25% टैरिफ लगा दिया। इससे टेक इंडस्ट्री और कार मैन्युफैक्चरर्स में हलचल मच गई।
एलन मस्क, जो शुरू में ट्रम्प के समर्थन में थे, ने अप्रैल में बयान दिया—“यह नीति इनोवेशन की हत्या करेगी और टेस्ला जैसे ब्रांड्स को नुकसान पहुंचाएगी।” इसके बाद मस्क ने सरकारी पैनल से इस्तीफा दे दिया।
टेस्ला, ऐप्पल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों ने चेतावनी दी है कि इन टैरिफ्स से अमेरिकी उपभोक्ताओं को महंगे दाम चुकाने पड़ेंगे।
4. अंतरराष्ट्रीय रिश्ते: अकेले पड़ते अमेरिका का संकेत?
ट्रम्प की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति ने यूरोप और नाटो देशों के साथ अमेरिका के रिश्तों को प्रभावित किया है। फ्रांस और जर्मनी के नेताओं ने कहा है कि अमेरिका अब “विश्व नेतृत्व” की भूमिका निभाने से पीछे हट रहा है।
ट्रम्प ने संयुक्त राष्ट्र की फंडिंग में भी कटौती करने की बात की है। इससे अमेरिका की वैश्विक छवि कमजोर हुई है।
ट्रम्प की वापसी, पर दिशा अस्पष्ट
चार महीने में यह साफ हो गया है कि ट्रम्प की नीतियां कागजों पर जितनी आकर्षक थीं, जमीनी हकीकत में उन्हें लागू करना उतना आसान नहीं है। युद्धों को रोकने की कोशिशें अधूरी रहीं, इमिग्रेशन और टैरिफ नीति पर विवाद गहराया, और अंतरराष्ट्रीय मंच पर अमेरिका का असर कम हुआ।
हालांकि ट्रम्प अभी भी अपने फैसलों को सही ठहराते हैं और कहते हैं कि “मीडिया एकतरफा रिपोर्टिंग कर रहा है।” लेकिन जनता, विशेषज्ञों और यहां तक कि पहले के सहयोगियों जैसे एलन मस्क की प्रतिक्रियाएं कुछ और ही संकेत देती हैं।
आने वाले महीनों में ट्रम्प प्रशासन को अगर अपनी छवि सुधारनी है तो उन्हें केवल भाषणों से नहीं, ठोस परिणामों से जनता का भरोसा जीतना होगा। वरना यह कहा जा सकता है—“वादों के ट्रम्प, हकीकत में कमजोर साबित हुए।”