धान खरीद व्यवस्था चरमराई : जीपीएस की धीमी प्रक्रिया, लचर टेंडर प्रणाली और राइस मिलों में भरे स्टॉक ने बढ़ाया भ्रष्टाचार का संदेह

महराजगंज -जिले में धान खरीद प्रक्रिया इन दिनों बुरी तरह प्रभावित है। स्थिति यह है कि अधिकांश धान क्रय केंद्रों पर खरीद तो हो रही है, लेकिन उठान न होने के कारण केंद्र बोरियों से अटे पड़े हैं। किसानों की लंबी कतारें और लगातार बढ़ता स्टॉक इस बात का संकेत है कि जिलास्तरीय धान खरीद व्यवस्था इस वर्ष पूरी तरह चरमराई हुई है।

सबसे बड़ी समस्या वाहनों में जीपीएस लगाने की धीमी गति है। जिले में इस वर्ष शुरुआती चरण में 126 क्रय केंद्र संचालित किए गए थे, जिसके बाद 54 नए केंद्र बढ़ा दिए गए। इन सभी 180 केंद्रों से धान उठान के लिए 126 वाहनों का चयन किया गया था, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि अब तक केवल 63 वाहनों में ही जीपीएस लगाया जा सका है, जबकि शेष गाड़ियां अब भी बिना जीपीएस के खड़ी हैं।

वाहनों का पहला टेंडर तकनीकी खामियों के कारण निरस्त कर दिया गया, जिसके बाद दूसरा टेंडर होने में इतना समय लग गया कि नवंबर का पूरा महीना निकल गया और उठान व्यवस्था ठप पड़ी रही। धान खरीद 1 नवंबर से शुरू हो चुकी थी, लेकिन उठान व्यवस्था नवंबर के अंतिम सप्ताह तक शुरू नहीं हो सकी।

नए 54 केंद्रों के लिए अब तक वाहनों का टेंडर भी जारी नहीं हो सका है। इससे इन केंद्रों पर न सिर्फ खरीद प्रभावित है, बल्कि उठान की कोई ठोस व्यवस्था बन न पाने से स्टॉक लगातार बढ़ता जा रहा है। कई केंद्रों पर बोरियों का ढेर इस स्तर तक पहुंच चुका है कि जगह तक कम पड़ने लगी है।

गणना के अनुसार जिले में 180 क्रय केंद्र हैं, जिन्हें प्रतिदिन 300 क्विंटल प्रति केन्द्र खरीद का लक्ष्य दिया गया है। यानी कुल 54,000 क्विंटल धान प्रतिदिन खरीदने की स्थिति में लगभग 360 ट्रकों की आवश्यकता पड़ेगी लेकिन हकीकत में जीपीएस लगे केवल 63 ट्रक उपलब्ध हैं। दो ट्रक प्रति केंद्र की जरूरत भी पूरी नहीं हो पा रही है।

सबसे अहम सवाल जिले की राइस मिलों की स्थिति को लेकर उठ रहा है। जब क्रय केंद्रों पर उठान नहीं हो पा रहा, पर्याप्त ट्रक उपलब्ध नहीं हैं, जीपीएस भी आधे वाहनों में नहीं लगा है, तो राइस मिलों के प्रांगण धान की बोरियों से लबालब कैसे भरे हुए हैं?

यह स्थिति भ्रष्टाचार की ओर इशारा करती है। आरोप है कि कई मिलों पर बिना उठान प्रक्रिया के, बिना जीपीएस ट्रैकिंग के ही धान खरिदा जा रहा है। इससे खरीद नीति 2025–26 की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।

इसके अलावा, यह भी चर्चा है कि कुछ स्थानों पर क्रय केंद्रों पर किसानों से फिंगर-आधार सत्यापन करवाकर खरीद दिखा दी जाती है, जबकि असल में धान सीधे मिलों में खरीद लिया जाता है। इससे मजदूरों की मजदूरी, ढुलाई और प्रक्रियागत खर्च में भारी बचत होती है—यही वजह है कि व्यवस्था को जानबूझकर कमजोर रखा जा रहा है।

जिला खाद्य एवं विपणन अधिकारी का दावा है कि जिन वाहनों में जीपीएस लग चुका है, उनका संचालन शुरू हो गया है और उठान किया जा रहा है। लेकिन मैदान में दिख रही हकीकत कुछ और ही कहानी बयां करती है। राइस मिलों पर टैक्टर ट्राली की भिड़ और ट्रालीओ में लदा धान राइस मिलों की ओर जाता जगह-जगह आपको दिखाई दे रहा है।

जनपद में आधी दिसंबर बीतने को है, लेकिन अब तक ट्रकों, जीपीएस, टेंडर और उठान की संपूर्ण व्यवस्था दुरुस्त न हो पाना इस बात का संकेत है कि इस वर्ष धान खरीद प्रक्रिया पर शासन की मंशा से अधिक स्थानीय स्तर की लचर व्यवस्था और संभावित भ्रष्टाचार हावी है।

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